मंगलवार, 16 सितंबर 2014

5. निर्देशन:

 निर्देशन प्रबंधन प्रक्रिया का आवश्यक तत्व है। नियुक्तिकरण के पश्चात अपने सहायकों व सहयोगियों को आवश्यकतानुसार कार्य करने के संबन्ध में विभिन्न प्रकार के निर्देश देने की आवश्यकता पड़ती है। ये निर्देश अपनी तरफ से भी दिये जा सकते हैं या फिर कार्य करने के लिए नियुक्त व्यक्ति के माँगने पर भी दिए जा सकते हैं। निर्देशन का अर्थ है- संगठन में लगे व्यक्तियों को बताना कि उन्हें क्या करना है? कैसे करना है? कब करना है? व्यक्तियों को अपना-अपना काम पूरी तत्परता, योग्यता व सक्षमता के साथ करने के योग्य बनाना और यह देखना कि वे उसे उसी प्रकार करें। निर्देशन प्रबंधन का वह कार्य है जो संगठित प्रयासों को उनके उद्देश्य की और आगे बढ़ाता है। निर्देशन की सफलता के लिए आवश्यक है कि निर्देश स्पष्ट, व्यावहारिक, सुसंगत, सार्थक व उपयुक्त हों।
                   निर्देशन कार्य के अन्तर्गत सामान्यतः निम्नलिखित चार उप-कार्यो को सम्मिलित किया जाता है-

क. नेतृत्व,
ख. अभिप्रेरण,
ग. संप्रेषण, तथा
घ. पर्यवेक्षण।

निर्देशन वास्तविक रूप से संगठन को सक्रिय करता है। नियोजन, संगठन व नियुक्तियाँ तो कार्य से पूर्व की तैयारी है। कार्य की विश्वसनीयता, गति व प्रभावशीलता तो कुशल निर्देशन पर ही निर्भर है। निर्देशन के द्वारा ही संगठन नियोजन के अन्तर्गत निर्धारित किये गये कार्यो को करने में सक्षम होता है।
निर्देशन के अन्तर्गत आदेश देना भी सम्मिलित होता है किंतु आदेश अधिकार सत्ता की औपचारिकता से नहीं वरन् नेतृत्व कुशलता के साथ अभिप्रेरित करते हुए दिए जाने चाहिए, जिसके अन्तर्गत अनुयायी स्वयं ही आदेश पालन करने को प्रतिबद्ध हों। निर्देशन का संप्रेषण सुनिश्चित करना और कार्य का पर्यवेक्षण करना भी निर्देशन के अन्तर्गत प्रबंधक की जिम्मेदारी है।

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