सोमवार, 29 जून 2009

भारतीय नारी ही प्रबंधन की प्राचीनतम् जननी

भारतीय नारी ही प्रबंधन की प्राचीनतम् जननी है


जब हम प्रबंध की बात करते हैं, तो हम पश्चिमी विश्व की ओर देखने लगते हैं। हमारा मानना है कि प्रबंधन एक नया विषय है। प्रबंधन के सिद्धांतों के जन्मदाता के रूप में हेनरी फेयोल व वैज्ञानिक प्रबंध के जन्मदाता के रूप में एफ.डब्ल्यू.टेलर के नाम की चर्चा आती है। यहाँ विचार करने की बात है, क्या इनसे पूर्व प्रबंधन का अस्तित्व नहीं था? हम विचार करें तो पायेंगे कि प्रबंधन का जन्म तो मानव सभ्यता के विकास के साथ ही हो गया था। प्रबंध का मूल उद्देश्य न्यूनतम् संसाधनों से अधिकतम संतुष्टि प्राप्त करना होता है। इस कार्य को हम प्रारंभ से ही करते आ रहे हैं। प्रबंधन के क्षेत्र में हमारी महिलाओं का कोई सानी नहीं है। अभावों व विरोधाभासों के बीच कितनी कुशलता के साथ महिलायें गृह-प्रबंधन करती आई है, वह क्या प्रबंधन नहीं था?

वास्तविकता यह है कि कार्य पहले होता है, और सिद्धांत उसके बाद आते हैं। प्रबंधन कोई नया विषय नहीं है। यह उतना ही पुराना है, जितनी मानव सभ्यता। मारकर लाये गये पशु के माँस को पकाकर घर के सारे सदस्यों को तृप्त करना व योजनानुसार उसके कुछ भाग को अतिथियों के लिए सुरक्षित रख लेना भी तत्कालीन प्रबंधन ही था। हमारे यहाँ की अशिक्षित महिलायें भी प्रबंध में इतनी निपुण पाई जातीं हैं कि उनके सामने बड़े-बडे़ प्रबंधशास्त्री पानी भरने लगें। आज विभिन्न वैज्ञानिक व तकनीकी विकास के कारण संसाधनों की बहुलता है। ऐसे समय में उपलब्ध संसाधनों का प्रयोग करके अधिकतम उत्पादन प्राप्त करना बहुत अधिक जटिल कार्य नहीं है। वह भी समय था जब संसाधनों के अभाव में भी रास्ते निकालकर परिवार ही नहीं सामाजिक उत्तरदायित्वों की पूर्ति भी करने के प्रयत्न किये जाते थे।

वस्तुत: प्रबंधन विज्ञान की अपेक्षा कला अधिक है। इसी द्रष्टिकोण से विचार करना चाहिए कि भले ही हमारे यहाँ प्रबंध के बड़े-बड़े सिद्धांत नहीं गढे़ गये फिर भी हमारे यहाँ पारिवारिक व्यवस्था में ही नहीं सामाजिक व्यवस्था में भी प्राचीन काल से ही प्रबंधन का प्रयोग होता रहा है। उस समय गलाकाट -प्रतियोगिता व भविष्य को दाव पर लगाकर विकास नहीं किया जाता था। उस समय वास्तव में सातत्य विकास किया जाता था। प्रकृति से जितने संसाधनों को प्राप्त किया जाता था, उतना ही उनका संरक्षण भी किया जाता था। यह सब हमारी परंपराओं के द्वारा ही होता था और इसके मूल में थी महिलायें। मेरे विचार में भारतीय नारी से अधिक कुशल प्रबंधक कोई हो ही नहीं सकता। यही कारण है कि आज भी वह हर क्षेत्र में सफलता के झंडे लगा रही है। वास्तव में प्रबंधन के जनक हेनरी फेयोल या टेलर नहीं थे। वरन भारतीय नारी ही प्रबंधन की प्राचीनतम् जननी है।

2 टिप्‍पणियां:

अजित गुप्ता का कोना ने कहा…

प्रबंधन के एक गुरु है शारू रांगणेकर, वे यही लिखते है कि यदि प्रबंधन सीखना हो तो अपनी पत्‍नी से सीखो। इसी विषय पर उनकी पुस्‍तक है। लेकिन आज का पश्चिमि प्रबंधन रोटी, कपड़े का प्रबंधन नहीं सिखाता, पूर्व में था कि जो हमारी आवश्‍यकता है उसका प्रबंधन। लेकिन अब है कि आवश्‍यकता उत्‍पन्‍न करो। अब व्‍यापार का प्रबंधन है। संतुष्‍ट मत बनो, जिद करो। जो कमीज 100 रू में आती है उसी पर किसी कम्‍पनी का टेग लगाकर 1500 कैसे वसूले जाते है इसका प्रबंधन।
विषय बहुत ही अच्‍छा उठाया है, इसके लिए बधाई।

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी ने कहा…

ब्लोग पर आने व टिप्पणी देने के लिये बहुत-बहुत धन्यवाद!
आप जिस प्रबंधन की बात कर रहे हैं, वास्तव में वह प्रबंधन नहीं है और न ही व्यापार. व्यापारी भी समाज के प्रति उत्तरदायी होता है, अन्यथा उसे ठग ही कहा जा सकता है. प्रबंधन के लिये मानवीय चिन्तन की आवश्यकता है. वह आज की अधिकार पिपासु नारियों में भी नहीं है. प्रबंधन समाज के हित में व्यक्ति का विकास करता है.