शुक्रवार, 19 जून 2009

नमक उत्पादन में राजस्थान

नमक उत्पादन में राजस्थान


नमक के बिना हम भोजन की कल्पना नहीं कर सकते। नमक किसी भी रसोई का अनिवार्य अंग होता है। रसोई के अलावा नमक के औद्योगिक क्षेत्रों में भी लगभग १४००० उपयोग बताए जाते हैं। नमक ने लोगों के भोजन को स्वादिष्ट बनाया तो गम भी कम नहीं दिए हैं। नमक ने क्या-क्या गुल खिलाए और किस-किस का मापदण्ड बना, इतिहास में इसके प्रमाण मुश्किल से भले ही मिले किन्तु मिल जाते हैं। मैक्सिको, कनाडा, अमेरिका, उत्तरी अमेरिका, पश्चिमी अफ्रीका, फ्रांस, जर्मन और यूरोप के इतिहास में खलबली मचाने में नमक के योगदान को नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। ग्रीस में `नमक हलाली´ की भावना विकसित करने के लिए नमक की अदला-बदली की परंपरा शुरू की गई थी। नमक का उद्योग व रसोई घर में ही स्थान नहीं है बल्कि इसका स्थान साहित्य में भी अप्रतिम है। प्रेमचन्द की कहानी `नमक की दारोगा´ कैसे भूली जा सकती है? यही नहीं नमक को लेकर लाकोक्तियों व मुहावरों का ही कमाल है कि आज भी लुटेरे और डाकू तक नमक हरामी से बचने के लिए नमक की चोरी से बचते हैं।
भारत नमक उद्योग में तीसरे स्थान पर है। राजस्थान भारत में कुल नमक उत्पादन में तीसरे स्थान पर, आयोडीनयुक्त नमक के उत्पादन में दूसरे स्थान पर तथा झील द्वारा नमक के उत्पादन में पहले स्थान पर है। राजस्थान का नमक उद्योग श्रमिकों को रोजगार देने के मामले में वर्ष २००४ व २००५ में क्रमश: तीसरे व चौथे स्थान पर रहा है। भौगोलिक दृष्टि से राजस्थान की जलवायु नमक उत्पादन के लिए अनुकूल पड़ती है। नमक उद्योग आज भी श्रम आधारित उद्योग है और इस क्षेत्र में मशीनी करण बहुत कम हुआ है।
राजस्थान में उत्पादन के दृष्टिकोण से नागौर जिला प्रथम स्थान पर है। प्रमुख नमक उत्पादन स्थलों में सांभर व नांवा क्षेत्र आते हैं। इसके अतिरिक्त डीडवाना, कुचामन, सुजानगढ़, पचपदरा, पोखरण, फलौंदी भी नमक उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। राज्य में नांवा, कुचामन, सांभर, गोविन्दी मारवाड़, फलौंदी रेलवे स्टेशनों पर नमक लदान की सुविधा प्रदान की जाती है। राजस्थान में यद्यपि सांभर में सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई सांभर साल्ट लिमिटेड कार्यरत है, सांभर झील से नमक का उत्पादन उसके द्वारा ही किया जाता है, तथापि नमक उत्पादन में सबसे अधिक योगदान असंगठित क्षेत्र का है। राजस्थान में सांभर और नांवा का नमक उत्पादन में विशेश योगदान है। सांभर में विश्व प्रसिद्ध खारी झील स्थित है तो नावां राजस्थान में नमक उत्पादन में सर्वश्रेष्ठ है। नावां व अन्य निकटवर्ती नमक उत्पादन स्थल अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए बिहार, बंगाल, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, सिक्किम, मणिपुर, दिल्ली, जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब व चण्डीगढ़ सहित 13 राज्यों को सड़क व रेल मार्ग से नमक आपूर्ति करते हैं।
नमक उत्पादन बढ़ाने तथा गुणवत्ता सुधारने के उद्देश्य से राजस्थान में पहली बार सांभर नमक उत्पादन क्षेत्र में 30 लाख रुपये की लागत से मॉडल साल्ट फार्म की स्थापना की गई है। मॉडल साल्ट फार्म नमक विभाग भारत सरकार व सांभर साल्ट लिमिटेड के संयुक्त प्रयासों का नतीजा है। यह साल्ट फार्म 10 एकड़ भूमि में नावां थाने के पीछे स्थित नमक झील पर बनाया गया है। नमक विभाग के अधिकारियों के विचार में दस एकड़ भूमि नमक उत्पादन के लिए मानक है। इससे कम भूमि में किये जाने वाला नमक उत्पादन मात्रा व गुणवत्ता दोनों ही प्रकार से श्रेष्ठता हासिल नहीं कर पाता। अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर नमक का निर्यात करने के लिए गुणवत्ता एक प्रमुख घटक होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मापदण्डों के अनुरूप साधारण नमक में क्लोराइड की मात्रा ९६.५ प्रतिशत से लेकर ९८.५ प्रतिशत हाने की अपेक्षा की जाती है। किन्तु नागौर जिले में होने उत्पादित होने वाले नमक में यह मात्रा ९३ प्रतिशत ही होती है। अत: इस नमक को निर्यात के अनुकूल नहीं माना जाता था। मॉडल साल्ट फार्म के माध्यम से सोडियम क्लोराइउ की मात्रा को ९६ प्रतिशत के स्तर तक लाया जा सकेगा ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही हैं। मॉडल साल्ट फार्म से अन्य उद्यमियों को भी अपनी इकाइयों को सुधारने व उत्पादन की मात्रा, गुणवत्ता व श्रमिकों की कार्यदशाओं को सुधारने में सहायता मिलेगी और राजस्थान नमक उत्पादन में और भी आग बढ़ेगा, ऐसी आशा की जा सकती है।
चलवार्ता 9460274173

4 टिप्‍पणियां:

shama ने कहा…

Anek shubh kamnayon sahit swagat hai!

"Mere bareme" padh ke bada achha laga!

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Kul 13 blogs hain...unki URL in blogs pe milegi...aapko mere blogs pe aaneka snehil nimantran hai!

पंडितजी ने कहा…

डॉ. रास्ट्रप्रेमी जी नमस्कार ,
आपके विचारो को देखा सीधा सपाट किन्तु सरल व्यक्तित्व .
किंतु आपकी बात कि मधुरता कपटी व् धोखेबाज होने का प्रथम प्रमाण है-से मै सहमत नहीं हूँ जैसे फूल में मधुरता उसके खिलने के बाद आती है,आम की मधुरता उसके पकने के बाद आती है वैसे ही मनुष्य में मधुरता उसके ज्ञानवान व विचारवान होने के बाद ही आती है.

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर ने कहा…

nice.narayan narayan

डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी ने कहा…

सतीशजी
आपने जिन विचारो की चर्चा की चर्चा की है, वे मेरे नहीं स्वामी विवेकानन्द जी का कथन है, जो मैनें अपने ब्लोग पर लगाया है. तर्क से कुछ भी सिद्ध किया जा सकता है किन्तु सत्य यही है कि हम अपनी कमजोरियों को मधुरता, प्रिय व व्यवहारिकता के आवरण में ढक कर प्रस्तुत करते हैं और अपने आप को विद्वान होने का भ्रम पालते हैं. मेरा विचार है कि सत्य विद्वता से अधिक आवश्यक व उपयोगी है.