बुधवार, 1 जुलाई 2009

प्रेम करती, चूमती वह रो उठी....................

प्यार आज भी पुराने तरीके से ही किया जाता है।

जी हाँ, प्यार आज भी पुराने तरीके से ही किया जाता है। यह गीत मुझे अपने शोध अध्ययन के दौरान डॉ.वी.सी.सिन्हा की पुस्तक श्रम अर्थशास्त्र जो २००१ में मयूर पेपरबैक्स, नौएडा, द्वारा प्रकाशित हुई, में मिला। आइये आप भी इस यथार्थवादी गीत का आनंद लीजिये और विचार कीजिये क्या मानव प्यार के बिना मानव बना रह सकता है? इस संबन्ध में ग्लेजर के स्वचलन गीत का हिन्दी अनुवाद दृष्टव्य है :-

स्वचलन गीत( Song of automation)


``एक सोमवार की सुबह

मैं फैक्ट्री देखने गया।

जब मैं वहाँ पहुँचा,

वह निर्जन थी-बिल्कुल सुनसान।

न तो मुझे `जो´ मिला न `जैक´, न ही `जॉन´ न `जिम´,

मुझे कोई भी न दिखा-

कोई भी नहीं:

हाँ, बटन, घंटिया व

(लाल,पीली,नीली,हरी) बत्तियां

जरूर पूरी फैक्टरी में थीं।


क्या-क्या था?-यह जानने के लिए,

मैं फोरमैन के ऑफिस में

घूम-घूम कर चलता रहा।

उसके चेहरे पर सीधे देखकर,

मैंने पूछा-``क्या हो रहा है?´´

उत्तर जानते हैं क्या मिला?

उसकी आँखे लाल, हरी, नीली होती गयीं,

तब मुझे सहसा भान हुआ कि,

फोरमैन की कुर्सी पर रॉबोट बैठा था।

उस फैक्टरी में चारों तरफ चलता रहा-ऊपर-नीचे,

आर-पारलोट-पोट कर मैंने वहाँ की,

सभी बटनों, घंटियों और बत्तियों को देखा।

रहस्य जैसा लगा मुझे,

यह सब कुछ।

मैंने पुकारा-``फ्रैंक, हैंक, आइस, माइक,रॉय, राय, डॉन,डैन,बिल,फिल,फ्रैड,पीट।´´

जबाब में एक मशीन जैसी तेज आवाज आई-

``ये सब तुम्हारे लोग पुराने हो चुके।´´
मैं सहम गया और चिंतित हो उठा,

जब फैक्टरी से निकला,

मैं अस्वस्थ था।

मैंने कम्पनी के प्रेसीडेंट से मिलना चाहा,

उसके ऑफिस में पहुँचने पर देखा-

वह भौंहें चढ़ाए, मुँह बनाए दरवाजे के बाहर दौड़ा चला आ रहा था,

क्योंकि प्रेसीडेन्ट के स्थान पर मशीननुमा अधिकारी डटा था।

मैं घर चला आया,

जब पत्नी को,

हमेशा चाहने वाली पत्नी को :

फैक्टरी के बारे में कह सुनाया,

प्रेम करती, चूमती वह रो उठी।

ये सब बटन औ´ बत्तियाँ

तो मैं नहीं समझता,

लेकिन इतना जरूर जानता हूँ-

प्यार आज भी पुराने तरीके से ही किया जाता है।´´

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