सोमवार, 21 जून 2010

मानव संसाधन प्रबंध : द्वितीय भाग

मानव संसाधन प्रबंध




मानव संसाधन प्रबंध को समझने के लिए इसके संरचनात्मक अर्थ को समझते हैं। यह तीन शब्दों से मिलकर बना है, मानव, संसाधन व प्रबंध। मानव संसाधन प्रबंध पर चर्चा करने से पूर्व इन तीनों के अलग-अलग अर्थ जानना उपयोगी होगा।

1. मानव- मानव शब्द का अर्थ बड़ा ही सामान्य है। मानव (human being) में स्त्री व पुरूष दोनों ही सम्मिलित हैं। प्राचीन समय में महिलाओं के विकास पर कोई ध्यान नहीं, दिया जाता था, यहां तक कि दास-प्रथा के समय दासों को भी मानवीय अधिकारों से वंचित रखा जाता था। वर्तमान में  मानव के अन्दर दोनों सम्मिलित हैं। यद्यपि मानव में सभी उम्र के व्यक्ति सम्मिलित किए जाते हैं, तथापि उद्योग व व्यवसाय के क्षेत्र में कार्य करने की क्षमता रखने वाले व्यक्तियों को ही मानव के अर्थ में सम्मिलित करके अध्ययन में सुविधा रहेगी।

2. संसाधन(resource)- मानव आदि काल से ही विकास की ओर प्रवृत्त रहा है। प्रारंभ में उसकी आवश्यकताएं अत्यन्त सीमित थी किन्तु समय के साथ-साथ उसने उत्तरोत्तर अपने जीवन स्तर का उन्नयन किया है। उसकी आवश्यकताओं पर इच्छाएं हावी होने लगी हैं। मानव विभिन्न वस्तुओं व सेवाओं की आवश्यकता व इच्छा महसूस करता है। वह अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए विभिन्न वस्तुओं को जुटाता है, उत्पादन करता है, उपयोगिता बढ़ाता है। उसकी आवश्यकता व इच्छाओं की पूर्ति के लिए उत्पादन कार्य में योग देने वाले साधन ही संसाधन कहलाते हैं, जैसे- भूमि, पूंजी, तकनीक, श्रम, प्रबंध व उद्यम आदि।
डॉ जिमरमैन के अनुसार, "संसाधन का अर्थ किसी उद्देश्य की प्राप्ति करना है, यह उद्देश्य व्यक्तिगत आवश्यकताओं तथा सामाजिक लक्ष्यों की पूर्ती करना है." वास्तव मैं ऐसा कोई भी पदार्थ जिसे अधिक उपयोगी वस्तुओं में रूपांतरित किया जा सकता है, संसाधन कहलाता है. डॉ जिमरमैन ने लिखा   है, "संसाधन होते नहींमानव के सहयोग से बन जाते हैं. "  इस प्रकार हम कह सकते हैं कि कोई भी प्राकृतिक संपदा तभी संसाधन का रूप ले सकती है, जब मनुष्य ने उसे प्रयोग करने की तकनीकी क्षमता प्राप्त कर ली हो.
कहा जा सकता है किसी वस्तु को संसाधन तब कहा जा सकता है, जब -
१-मानव द्वारा वस्तु का उपयोग संभव हो.
२.इस वस्तु या पदार्थ का रूपान्तरण अधिक मूल्यवान व उपयोगी वस्तु में किया जा सकता हो.
 इन संसाधनों को दो वर्गो में वर्गीकृत किया जा सकता है, सजीव संसाधन व निर्जीव संसाधन। श्रम, प्रबंध व उद्यम सजीव संसाधन हैं, जो निर्जीव संसाधनों का विकास कर उनकी उपयोगिता बढ़ाते हैं।

3. प्रबंध (management)- ``पूर्व-निर्धारित उद्देश्यों को सर्वोत्तम व मितव्ययिता पूर्ण ढंग से प्राप्त करने के लिए लोगों के साथ मिलकर कार्य कराने की प्रक्रिया को प्रबंध कहा जाता है।´´ एक समय था, जब लोगों से येन-केन-प्रकारेण कार्य कराने को ही प्रबंध कहा जाता था किन्तु आधुनिक समय में यह स्थापित हो चुका है कि श्रम, प्रबंध व उद्यम मानवीय साधन हैं और मानवीय साधन अन्य साधनों का उपयोग करते हैं। अत: अन्य साधनों का मितव्ययिता पूर्वक उपयोग करके अधिकतम व गुणवत्तायुक्त कार्य, मानवीय साधनों के शोषण से नहीं वरन् उनका विकास करके, उन्हें अभिप्रेरित व सन्तुष्ट करके ही, कराया जा सकता है। वास्तविकता यह है कि सभी उत्पादन मानव के द्वारा मानव के लिए हैं तथा मानव संसाधन का विकास करके, न केवल मानव संसाधन अधिक उपयोगी हो जाता है, वरन् वह अन्य साधनों का भी सर्वोत्तम व मितव्ययितापूर्ण उपयोग करके अधिकतम उत्पादन प्राप्त करता है।



उपरोक्त के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है उत्पादन के क्षेत्र में मानव, न केवल भौतिक संसाधनों का प्रबंध करता है, वरन् वह स्वयं में एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जिसके प्रबंधन के द्वारा न केवल उसकी उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है, वरन् मानव संसाधन के प्रबंधन से अन्य संसाधनों की उपयोगिता बढ़ाकर न्यूतम् लागत व प्रयासों से अधिकतम् परिणामों को प्राप्त किया जा सकता है। मानव संसाधन प्रबंध उत्पादन के सजीव संसाधन श्रम, प्रबंध व उद्यम का प्रबंध करता है अर्थात मानव संसाधन प्रबंध, प्रबंध का भी प्रबंध करता है तथा मानव संसाधन प्रबंध, प्रबंध का ही भाग है। अत: इसे समझने के लिए प्रबंध के अर्थ व परिभाषा को समझना भी उपयोगी रहेगा।

कोई टिप्पणी नहीं: