निर्णय लेने की प्रक्रिया ही निर्णयन कहलाती है। निर्णय लेने की प्रक्रिया निर्णय की श्रेष्ठता व गुणवत्ता को सुनिश्चित करती है। निर्णय की गुणवत्ता व उपयुक्तता उसकी सफलता का आधार लिखती है। देर से किया गया निर्णय अवसरों को खो देता है तो उतावलेपन में लिया गया निर्णय प्रयासों को असफल होने का आधार तय करता है। अतः निर्णय न तो अत्यधिक जल्दबाजी में होने चाहिए और न ही विचार-विमर्श में इतना समय लगाना चाहिए कि निर्णय लेने में देर हो जाय और अवसर ही गँवा बैठे। अतः निर्णय के लिए आवश्यक है कि निर्णय निर्णयन प्रक्रिया का पालन करते हुए, उचित समय पर, उचित व्यक्ति या व्यक्तियों द्वारा लिए जाने चाहिए।
निर्णय लेने के लिए आवश्यक है कि सर्वप्रथम हम स्वीकार करें कि निर्णय लेना हमारा उत्तरदायित्व है। निर्णय लेने के अधिकार को अधिकार के रूप में ही समझा जाता है, जबकि प्रत्येक अधिकार के साथ उसके उचित प्रयोग का कर्तव्य व उत्तरदायित्व भी जुड़ा होता है। निर्णय लेने वाले व्यक्ति को सर्वप्रथम उस निर्णय के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले परिणामों का उत्तरदायित्व स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
सामान्य मानव में यह कमजोरी देखी जाती है कि वह निर्णय करने का अधिकार तो चाहता है किन्तु उसका उत्तरदायित्व दूसरे व्यक्ति पर थोपने की कोशिश करता है। सामान्यतः व्यक्ति निर्णयन लेने के उत्तरदायित्व को स्वीकार करना नहीं चाहता। सरकारी क्षेत्रों में यह अक्सर देखा जाता है कि निर्णय लेने की जिम्मेदारी को एक-दूसरे पर टालने के चक्कर में देर से निर्णय होते हैं और परियोजना की लागत बढ़ जाती है।
अतः यह आवश्यक है कि निर्णयन की जवाबदेही स्पष्ट रूप से निर्धारित होनी चाहिए। हम व्यक्तियों को निर्णयन प्रक्रिया में प्रशिक्षित करें ताकि वे निर्णयन के उत्तरदायित्व से बचने की कोशिश न करें। निर्णय लेने में जोखिम समाहित होता है। जोखिम लेने की हिम्मत सभी में समान रूप से नहीं हुआ करती। जो जोखिम उठाकर सही समय पर सही निर्णय लेकर सही क्रियान्वयन कर लेते हैं। सफलता उन्हीं के चरण चूमती है।
व्यक्तिगत व पारिवारिक जीवन में भी निर्णय लेने की जिम्मेदारी को एक-दूसरे पर टालने के उदाहरण देखे जा सकते हैं। कुछ ऐसे उदाहरण भी मिल सकते हैं कि हम दूसरों के बारे में शीध्रता से निर्णय लेते हैं और उन पर अपने निर्णय थोप देते हैं, जबकि अपने बारे में निर्णय लेते समय हम जोखिम लेने से डरते हैं और निर्णय लेने में देरी होने के कारण अवसर हाथ से निकल जाता है।
स्मरण रखें अवसर किसी की प्रतीक्षा नहीं करता। सर्वप्रथम यह निर्धारित करना आवश्यक है कि अमुक निर्णय लेने की जिम्मेदारी किसकी है? जिम्मेदारी निर्धारित करने का सबसे प्रमुख आधार यह है कि जो उस निर्णय को क्रियान्वित करता है और जो उससे प्रभावित होता है उसे ही निर्णय करना चाहिए या उसे निर्णय प्रक्रिया में आवश्यक रूप से सम्मिलित होना चाहिए। यदि व्यक्तियों का समूह प्रभावित होता है तो समस्त समूह को निर्णय प्रक्रिया में सम्मिलित करना चाहिए। हाँ, निर्णय करने की क्षमता का आकलन भी आवश्यक है। निर्णय करने की क्षमता न होने के कारण ही बच्चों से सम्बन्धित निर्णय उनके अभिभावकों द्वारा किए जाते हैं।
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