2. पारिवारिक कर्तव्य:
व्यक्ति जन्म के समय अत्यन्त निरीह प्राणी होता है। यहाँ तक कि वह अपनी माँ का स्तन अपने मुँह में लेकर अपने आप दुग्ध पान भी नहीं कर सकता। यदि उसे असंरक्षित छोड़ दिया जाय तो निश्चित रूप से उसके जीवन का अन्त हो जायेगा। व्यक्ति को उसके माँ-बाप केवल जन्म ही नहीं देते हैं वरन् उसका लालन-पालन भी करते हैं। लालन-पालन व्यक्ति के विकास की प्रक्रिया का ही एक अंग है। इस लालन-पालन का कार्य केवल माँ-बाप के द्वारा ही नहीं किया जाता। संपूर्ण परिवार इस कार्य में जी जान से जुट जाता है।
परिवार के सभी सदस्य नन्हे-मुन्ने के लिए अपने व्यक्तिगत आराम व सुख-सुविधाओं को त्यागकर भी आनन्द की अनुभूति करते हैं। अतः स्वाभाविक ही है कि व्यक्ति के समर्थ होने पर अपने परिवार के प्रति भी कर्तव्य होते हैं। उसका कर्तव्य होता है कि जिस प्रकार से उसके पालन-पोषण व विकास में उसके परिवार ने योगदान दिया है, उसी प्रकार परिवार के समस्त सदस्यों के सुख-दुख में सहभागीदार बनते हुए परिवार की सुरक्षा, संरक्षा व विकास के लिए प्रतिबद्धता के साथ कार्य करें।
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