शुक्रवार, 7 जून 2019

समय की एजेंसी-18

समय का नहीं, स्वयं का प्रबंधन


हम यह भली प्रकार समझ चुके हैं कि समय का प्रबंधन संभव नहीं है। समय को रोकना, उसका भण्डारण करना या उसका क्रय-विक्रय संभव न होने के कारण उसका प्रबंधन भी संभव नहीं है। हाँ! हम स्वयं का प्रबंधन कर सकते हैं अर्थात् अपनी क्रियाओं और गतिविधियों का प्रबंधन संभव है। इसे हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि हम समय का प्रबंधन नहीं कर सकते किंतु समय के सन्दर्भ में अपना प्रबंधन कर सकते हैं; अपने कार्यो का प्रबंधन कर सकते हैं।

            आनन्दपूर्ण जीवन जीने के लिए ध्येय, उद्देश्य व लक्ष्यों का निर्धारण करना स्वयं के प्रबंधन के लिए आवश्यक व पहला कदम है। उन्हें प्राप्त करने के लिए योजना बनाना उससे अगला कदम है, क्योंकि प्रबंधन का आरंभ ही योजना से होता है। योजना को याद रखना और स्थायित्व देने के लिए उसे अपनी डायरी में दर्ज करना स्वयं प्रबंधन का तीसरा कदम कहा जा सकता है। विचारपूर्वक बनाई गयी दिनचर्या को अपनी दिनचर्या का अंग बनाकर आत्मसात करना सफलता का आधार बनता है। योजना के अनुसार परिणामों को प्राप्त करना और परिणामों को स्वीकार करते हुए उसका पुनरावलोकन करना स्वयं प्रबंधन के नियंत्रण और आगामी नियोजन दोनों का भाग बनता है। सफलता का श्रेय सहयोगियों को समर्पित कर देना और कमियों के लिए उत्तरदायित्व का निर्धारण करते हुए सुधार करना स्वयं के प्रबंधन के लिए आवश्यक कदम हैं। हम विभिन्न व्यक्तियों और वस्तुओं के प्रबंधन की बात करते हैं किंतु स्वयं के प्रबंधन को नजर अंदाज कर देते हैं। हमारे पास सबके लिए समय होता है किंतु अपने लिए समय नहीं होता। सामान्यतः व्यक्ति स्वयं ही अपनी उपेक्षा करता है।

प्रबंधन विकास का आधार


प्रबंधन संसार के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषयों में से एक है। प्रबंधन ही विकास का आधार है। प्रबंधन ही है जिसकी सहायता से व्यक्ति विकास के झण्डे गाड़ता है। प्रबंधन की सहायता से ही व्यक्ति अपने-अपने क्षेत्रों में सफलता के शिखर की यात्रा संपन्न करते हैं। प्रबंधन ही वह शक्ति है, जो न्यूतनम संसाधनों से अधिकतम् परिणामों की प्राप्ति सुनिश्चित करती है। प्रबंधन ही समस्त संसाधनों की उत्पादकता बढ़ाने वाला तत्व है। यह तथ्य निर्विवाद रूप से स्थापित हो चुका है। अतः हमें समय को या प्रबंधन को परिभाषित करने की आवश्यकता नहीं है। परिभाषाएँ देना या सिद्धांत गढ़ना इस पुस्तक का क्षेत्राधिकार भी नहीं है। इस पुस्तक के माध्यम से लेखक किसी प्रकार की विद्वता प्रमाणित नहीं करना चाहता, क्योंकि जो उसके पास नहीं है; उसको प्रमाणित करने का प्रयत्न, एक झूठ के सिवा कुछ नहीं होगा। लेखक तो जन सामान्य के पास समय की कमी को देखते हुए उसे समय की एजेंसी के बारे में जानकारी देकर लाभान्वित करना चाहता है।
इस संसार में कदम-कदम पर ज्ञान बिखरा हुआ है। ज्ञान भी असीम है। उसका अंश मात्र भी लेखक प्राप्त कर पाया है, ऐसा लेखक को प्रतीत नहीं होता। श्री हरिवंशराय की कविता की भाषा में-

कर यत्न मिटे सब सत्य किसी ने जाना?
नादान वही है, हाय जहाँ पर दाना।
फिर मूढ़ न क्या जग जो उस पर भी सीखे,
मैं सीख रहा हूँ सीखा ज्ञान भुलाना।

अर्थात् युगों-युगों से लोग प्रयत्न करते आ रहे हैं। एक-एक कर सभी नष्ट होते जा रहे हैं। विभिन्न प्रकार के ज्ञान गढ़े जाते रहे हैं किंतु शाश्वत सत्य को आज तक परिभाषित नहीं किया जा सका है। हम जिसे ज्ञान समझते हैं, वही अन्य किसी विद्वान द्वारा असत्य सिद्ध करके अज्ञान सिद्ध कर दिया जाता है। अतः वास्तविक ज्ञान क्या है? इसका निर्णय ही नहीं हो पाया है। 
         वर्तमान में शिक्षाशास्त्री भी मानने लगे हैं कि कोई ऐसा ज्ञान अर्थात् शिक्षा नहीं है, जिसे बच्चे को बाहर से दिया जाय। शैक्षिक मनोविज्ञान की रचनावाद, निर्मितवाद या निर्माणवाद (ब्वदेजतनबजपअपेउ) विचारधारा के अनुसार ज्ञान बाहर से नहीं दिया जा सकता। ज्ञान का निर्माण सीखने वाले के मस्तिष्क में होता  है। यह निर्माण प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। जिसे वातावरण अभिप्रेरित करता है। निष्कर्षतः ज्ञान का कोई रूप अन्तिम नहीं होता, ज्ञान सदैव निर्मित होता रहता है। अतः समय जैसे अनिर्वचनीय तत्व के बारे में परिभाषा देना भी मेरे जैसे व्यक्ति के लिए असंभव जैसा है। हाँ! जन प्रचलित अर्थ को लेते हुए उपलब्ध समय की प्रत्येक इकाई के प्रयोग के द्वारा अपने जीवन को प्रभावपूर्ण बनाना ही इस पुस्तक का उद्देश्य है।


समय अगोचर तत्व के रूप में

जिस प्रकार ज्ञान का कोई अन्तिम रूप नहीं होता, उसी प्रकार समय का भी अन्तिम ज्ञान उपलब्ध नहीं है। ज्ञान की तरह इसे भी परिभाषित करना संभव नहीं है। समय को परिभाषित करना संभव नहीं है, इसकी अवधारणा के बारे में कोई सहमति नहीं बनी है और न ही बन सकती है। समय अगोचर तत्व है, जिसको महाकाल अर्थात्् ईश्वर भी कहा जाता रहा है। इस प्रकार स्पष्ट है कि हम कार्य प्रबंधन नहीं कर सकते। समय के सन्दर्भ में स्वयं का अर्थात्् अपनी गतिविधियों का प्रबंधन कर सकते हैं। समय के सन्दर्भ में अपनी गतिविधियों का प्रबंधन करने का आशय अपनी समयचर्या को पूर्व नियोजित करके उसके अनुसार प्रत्येक पल का उपयोग करने से है। 

2 टिप्‍पणियां:

प्रवीण कुमार पाठक ने कहा…

nice blog sir

प्रवीण कुमार पाठक ने कहा…

आप का ब्लॉग पढ़कर अछा लगा आप की मेहनत अच्छा है