सोमवार, 27 जनवरी 2025

कचरे की समस्या का मूल- भोगी प्रवृत्ति

                                पिस्ता चैधरी, अध्यापिका
                                मेड़ता सिटी, राजस्थान


वर्तमान समय में एक अनदेखी समस्या, जिसकी ओर मीडिया का ध्यान नहीं जा रहा है, समाज में व्याप्त है। समाज की अधिकांश समस्या के मूल में वह समस्या ही है। विभिन्न सतही समस्याओं पर खूब चर्चा और परिचर्चाओं का आयोजन किया जाता है। स्थानीय स्तर हो या राष्ट्रीय स्तर पर, यही नहीं वैश्विक स्तर की अधिकांश समस्याओं के मूल में भी यही मूल समस्या है। परिवार से लेकर वैश्विक स्तर तक की अधिकांश समस्याओं के मूल में है- मनुष्य में बढ़ती भोगी प्रवृत्ति।

जी, हाँ! मानव की भोगी प्रवृत्ति ही अधिकांश समस्याओं के मूल में है। मानव मानव नहीं रह गया है। वह एक उपभोक्ता मात्र बन गया है। उसके भोक्ता मात्र हो जाने के कारण अत्यधिक मात्रा में माँग बढ़ रही है। इस माँग में वृद्धि को विकास का नाम दिया जाता है। उपभोग में अनावश्यक वृद्धि के कारण, असीमित इच्छाओं और उपभोग के कारण असीमित मात्रा में अपशिष्ट उत्सर्जित किए जा रहे हैं। इस प्रवृत्ति के कारण न केवल संसाधनों का अनावश्यक क्षय हो रहा है, वरन देश में कचरे का अंबार खड़ा हो रहा है। लोग अनावश्यक उपभोग की प्रवृत्ति को शौक और मौज का नाम देते हैं। लोगों का यह शौक दुनिया को कितना महँगा पड़ रहा है? इसकी ओर हमारा ध्यान जा ही नहीं रहा है। हम यह नहीं देख पा रहे कि इन शौकिया वस्तुओं के साथ कितना कचरा उड़ेला जा रहा है। हम शौक और मौज के नाम पर जिन वस्तुओं को खरीदते हैं, यही शौकिया वस्तुएँ कुछ दिन बाद स्वयं पर्यावरण के लिए खतरा बन जाती हैं।

दिल्ली के चुनावों में तो कचरा प्रबंधन भी एक मुद्दा बन चुका है। चारों ओर कचरे की समस्या का शोर तो सुनाई दे रहा है, किन्तु इसके मूल को समझने के प्रयत्न नहीं हो रहे हैं। स्वच्छता अभियान, साफ सफाई का नारा, कचरा प्रबंधन को विषय के रूप में मान्यता देना आदि सतही प्रयास किए जा रहे हैं। कचरे को इधर-उधर न फेंके, कचरा कचरा पात्र में ही डालें। नगरपालिका व ग्राम पंचायते कचरे का प्रबंधन करें की चर्चाएँ खूब की जा रही है। यह सारी चर्चाएँ मूल रूप से लीपापोती ही साबित होती हैं।

मैं आह्वान करना चाहती हूँ कि आओ हम इसके मूल को समझें और अपनी भोगी प्रवृत्ति पर अंकुश लगाएँ। केवल शौक पूरा करने के लिए किसी वस्तु को न खरीदें। अपनी आवश्यकताओं का आकलन करें और फिर आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए ही वस्तु खरीदे। जहाँ तक संभव हो सामूहिक उपभोग करने का प्रयास करें। हम कचरा प्रबंधन तो करें ही, साथ ही कचरा उत्पन्न करने से बचें। अनावश्यक उपभोग की प्रवृत्ति को रोककर संसाधनों के अपव्यय को रोककर अपनी भावी पीढ़ियों के लिए छोड़ें। यही नहीं कचरे के उत्पादन को रोककर अपनी भावी पीढ़ियों के लिए सुंदर वातावरण छोड़कर उनके भविष्य को सुन्दर बनाने के प्रयत्न करें।


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