गुरुवार, 25 मार्च 2021

अपने लिए जियें

 आओ स्वार्थी बनें


हम सब लोग अक्सर धर्म, कर्म और पर्मार्थ की बातें करते हैं। अपने साथियों को अक्सर टोकते हैं कि बड़े स्वार्थी हो आप तो? मन्दिर, मस्जिद, गिरिजाघर और अन्य धार्मिक स्थलों पर भीड़ बड़ती ही जा रही है। लोग दान व चन्दा देने में भी कंजूसी नहीं करते। भारत के कई मन्दिरों की आय कई उद्योगों से भी अधिक मिलेगी।
    इतने धार्मिक व्यक्ति होते हुए भी भ्रष्टाचार में, अनाचार में, व्यभिचार में अनैतिकता में, सामूहिक बलात्कार व अप्राकृतिक कुकर्म जैसे नराधम अपराध भी हमारे यहां क्यों बढ़ रहे हैं? कई बार यह भी देखने में आता है कि इस प्रकार के पशुता वाले कृत्यों में समाज में इज्जत का लबादा ओढ़े व्यक्ति सम्मिलित होते हैं या उनको बचाने के प्रयत्न करते हैं। यही नहीं अपने सम्बन्धी अपराधी को बचाने के लिये कई बार कुतर्क दिया जाता है कि किसी को बचाने के लिये बोला गया झूठ झूठ नहीं माना जाता। इस तरह के समाज के ठेकेदारों से अच्छा है कि हम अपने लिए जीने की घोषणा कर दें। दूसरों को सुधारने की अपेक्षा अपने आप को सुधारने के प्रयत्न करें। दूसरों को सीख देने के स्थान पर स्वयं सीख लें और अपने जीवन में सुधार करें।
    अतः आइये हम दूसरों के लिए नहीं, अपने लिए जीना सीखें। दूसरों के लिए जीने का दंभ त्यागकर वास्तविकता को स्वीकार करें कि हम केवल अपने आप के लिए जी रहे हैं। हम अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिये सेवा का दिखावा न करें। मैंने कहीं किसी अज्ञात विचारक का विचार पढ़ा था कि जब बुरा व्यक्ति अच्छा दिखने का ढो़ंग करता है तो वह और भी बुरा हो जाता है। अतः आइये हम और भी बुरा बनने से बचें और स्वीकार करें कि हम अपने लिये जी रहें हैं, हम नितान्त स्वार्थी हैं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है को मैं नितांत स्वार्थी हूं।
    सभी से आग्रह है कि वे विचार करें और इस तथ्य को स्वीकार करें कि वे अपने लिये जी रहे हैं और स्वार्थी हैं। स्वीकारोक्ति से ही सुधार का मार्ग निकलता है।www.rashtrapremi.com

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