रविवार, 15 मार्च 2020

करियर

कैरियर के आधार


प्रत्येक व्यक्ति शानदार कैरियर चाहता है। सभी माता पिता अपने बच्चे या बच्ची को उच्च पद पर बैठा देखना चाहते हैं। बच्चे के जन्म से पूर्व ही माँ-बाप और दादा-दादी या नाना-नानी अपनी सोच के आधार पर शानदार कैरियर की कल्पना कर लेते हैं। प्राचीन काल में शादी को सबसे अधिक महत्व दिया जाता था। शादी के लिए युद्ध तक होते थे। बच्चे के जन्म से पूर्व ही उसकी शादी निश्चित कर दी जाती थी। वर्तमान में इसी प्रकार की सोच कैरियर के सम्बन्ध में विकसित होने लगी है। बच्चे के जन्म से पूर्व ही उसके कैरियर के बारे में सोच लिया जाता है। 
ईस्वी सन् 2008 की घटना है। मेरा बेटा कक्षा 6 का विद्यार्थी था। एक दिन विद्यालय से ़आते ही बड़े शिकायती लहजे में बोला, ‘पापा! मेरी क्लास में सबको पता है कि बड़ा होकर कौन? क्या? बनेगा, केवल मुझे ही नहीं पता कि मैं क्या बनूँगा? कुछ देर तो मैं भी सोच में पड़ गया कि यह कहना क्या चाहता है? उसके प्रश्न को समझने के बाद मैंने उत्तर दिया था, ‘बेटा! मैं तुम्हें देश के एक श्रेष्ठ नागरिक के रूप में विकसित होते हुए देखना चाहता हूँ। तुम्हें कौन सी आजीविका का चुनाव करना है? इसका निर्णय उचित समय पर तुम्हें ही करना है। मैं केवल मार्गदर्शन कर सकता हूँ, अपनी इच्छाओं को थोपूँगा नहीं। तुम उसी कार्य का चुनाव करना जिसमें तुम्हें आनन्द की प्राप्ति हो।’ किसी अज्ञात दार्शनिक का कथन है कि तुम उसी काम का चुनाव करो, जिसमें तुम्हें आनन्द आता हो और फिर तुम्हें जीवन भर काम नहीं करना पड़ेगा।
          उसका प्रश्न सही सन्दर्भ में था। उसकी कक्षा में आने वाले सभी विद्यार्थियों को उनके अभिभावकों ने बताया हुआ था कि उन्हें क्या बनना है? सामान्यतः ऐसा ही होता है। माँ-बाप अपनी अपेक्षाओं को अपनी संतानों पर थोपते हैं। अधिकांश माता-पिता बच्चे के गर्भ में आते ही विभिन्न प्रकार की कल्पनाएँ कर लेते हैं। उसके सम्पूर्ण जीवन को अपनी इच्छानुसार निर्धारित कर देना चाहते हैं। जैसे- माता किसी बच्चे को नहीं किसी प्रशासनिक अधिकारी, डाॅक्टर, इंजीनियर, राजनेता को ही जन्म देने वाली हो। कई बार पारिवारिक परिवेश से ही बच्चे को उनके परिवार द्वारा सोचा गया कैरियर मिल भी जाता है। व्यक्ति में योग्यता, निष्ठा और लगन हो तो ऐसा व्यक्ति भी अपने प्राप्त हुए कैरियर में सफलता का प्रदर्शन कर पाता है। 
           भूतपूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे राजीव गांधी को प्रधानमंत्री का पद उनकी माँ की हत्या के बाद विरासत में मिल गया था। कालान्तर में श्री गांधी एक सफल व प्रभावी प्रधानमंत्री सिद्ध हुए। देश को तकनीकी विकास की ओर ले जाने और नवोदय विद्यालय जैसी आदर्श संस्थाओं का निर्माण उनकी महत्वपूर्ण देन कही जा सकती हैं। 
           इसी प्रकार प्रशासनिक अधिकारियों के बच्चों को वह वातावरण व सुविधाएँ प्राप्त हो जाती हैं कि वे आसानी से कैरियर में आगे बढ़ पाते हैं। किन्तु प्राप्त कैरियर में सफलता हमारी सक्षमता, योग्यता, निष्ठा व समर्पण के ऊपर निर्भर करती है। विरासत में प्राप्त राजनीतिक कैरियर को स्वर्गीय राजीव गांधी ने जिस प्रकार प्रभावी रूप से प्राप्त किया था। उस प्रकार से उनके बेटे राहुल गांधी नहीं सभाल पाये और वे अभी तक केवल संघर्ष करते हुए दिखाई दे रहे हैं। काफी बड़ी संख्या में राजनीतिक विचारकों का दृष्टिकोण है कि कांग्रेस पार्टी को हाशिये पर लाने का कार्य श्री राहुल गांधी ने ही किया है। अतः हमें विरासत में प्राप्त कैरियर की अपेक्षा अपनी अभिरूचि, अभिक्षमता, योग्यता और सक्षमता के आधार पर ही अपने कैरियर का चुनाव करना चाहिए। तभी हम अपने और अपने कैरियर दोनों के साथ न्याय कर पाते हैं। 
             वैसे मानव के कैरियर की सफलता के लिए कोई सूत्र विकसित नहीं किया जा सकता। ऐसा भी नहीं कहा जा सकता कि परिवार द्वारा सुझाये गये कैरियर में सफलता नहीं मिलेगी और न ही यह कहना संभव है कि व्यक्तिगत अभिरूचि के आधार पर चुने गये कैरियर में ही सफलता की गारण्टी होगी। हाँ! जहाँ परिवार और व्यक्ति दोनों का सुन्दर समन्वय से कैरियर का चुनाव किया जाय, वहाँ सुविधाजनक व सफल कैरियर की संभावनायें अधिक हो जाती हैं।
सुविधा संपन्न पारिवारिक वातावरण सभी को सुलभ हो जाय, यह आवश्यक नहीं होता। पारिवारिक वातावरण और सोच के आधार पर कभी-कभी व्यक्ति अपने कैरियर को स्वीकार भी नहीं कर पाता और वह अपनी सक्षमता, योग्यता और अभिरूचि के आधार पर भिन्न-कैरियर को पसंद करता है। संसार में जन्म लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति अपनी अभिक्षमता रखता है, प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अभिरूचि और तदनुरूप अपने सपने होते हैं। जिनके पास अपने सपने नहीं होते या कमजोर होते हैं, वे अपने माता-पिता या अभिभावकों के सपनों को ही स्वीकार कर लेते हैं। ऐसा न करने पर उन्हें अपने परिवार से असहयोग का भय भी होता है। कभी-कभी अपने संबन्धों के सम्मान में वे स्वयं ही अपने सपनों को त्याग देते हैं। जो व्यक्ति अपनी अभिरूचि और अभिक्षमता के आधार पर अपने सपनों को जीने के प्रयत्न करते हैं, उन्हें तुलनात्मक रूप से अधिक परिश्रम और संघर्ष करना पड़ता है। यदि परिवार और अभिभावकों से असहयोग का सामना करना पड़े तो परिस्थितियाँ और भी मुश्किल हो जाती हैं। 
             कैरियर कभी भी सोचने मात्र से नहीं बन जाता। इसके लिए पूर्व, वर्तमान और भविष्य की परिस्थितियाँ आधार का कार्य करती हैं। इन्हीं आधारों पर कैरियर रूपी भवन का निर्माण होता है। महाभारत काल की अभिमन्यु की कहानी जिसमें माता के गर्भ में रहते हुए चक्रव्यूह वेधन की विद्या सीखने का प्रसंग आता है, आनुवांशिक प्रभाव की और संकेत करती है। कैरियर के सन्दर्भ में भी यह बात किसी हद तक सही सिद्ध होती है। भारतीय वर्ण व्यवस्था जिसमें कार्य विभाजन का स्पष्ट आधार था, भी उस ओर संकेत करती है कि पारिवारिक व्यवसाय में कैरियर बनाना तुलनात्मक रूप से सहज होता है। यही कारण था कि कार्य के आधार पर बनी हुई वर्ण-व्यवस्था कालान्तर में जन्म आधारित वर्ण व्यवस्था में बदल गयी। 
          ब्राह्मण की संतान  ब्राह्मण, क्षत्रिण की संतान क्षत्रिय, वैश्य की संतान वैश्य और शूद्र की संतान शूद्र व्यवसाय में निपुणता हासिल कर सके ये उनके लिए सुविधाजनक था। सुविधाजनक अवश्य था किंतु ऐसी स्थिति में वैयक्तिक विभिन्नताओं की अवहेलना होती है। व्यक्तिगत अभिरूचि, अभिक्षमता और वैयक्तिक लक्ष्यों को नजरअंदाज करना भी न व्यक्ति के लिए उचित है और न समाज के हित में है। 
         पारिवारिक व सामाजिक अनुशासन और व्यवस्था के साथ ही ध्यान रखने की बात है कि वैयक्तिक स्वतंत्रता का भी अपना महत्व है। इस बात को नजरअन्दाज करने के कारण ही कार्य के आधार पर किया गया वर्ण विभाजन कालान्तर में जन्म आधारित जाति व्यवस्था में परिवर्तित हो गया, जिसके दुष्परिणाम वर्तमान समय में समाज और व्यक्ति दोनों को ही भुगतने पड़ रहे हैं। 
              अतः कैरियर के लिए सबसे अधिक उचित यह है कि व्यक्तिगत अभिरूचि, अभिक्षमता और योग्यता के आधार पर व्यक्ति को अपने लक्ष्य तय करके अपने सपने साकार करने के अवसर मिलें। हाँ! व्यक्ति को अपने कैरियर का चुनाव करते समय अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि, उपलब्ध संसाधन, अपनी अभिरूचि, अभिक्षमता, योग्यता और सक्षमता पर विचार अवश्य कर लेना चाहिए। क्योंकि हम जो सोचते हैं, वही प्राप्त कर लें यह आवश्यक नहीं होता। हाँ! प्रभावशाली वही सिद्ध होता है, जो सोचता है और सोचे हुए को करता भी है।
इस सन्दर्भ में जुलाई 1999 की एक घटना स्मरण आ रही है, जो इस विषय को स्पष्ट करने में सहायक हो सकती है। लेखक उस समय नवोदय विद्यालय, चंबा, हिमाचल प्रदेश में अनुबंध आधार पर पी.जी.टी. वाणिज्य के रूप में नियुक्त हुआ था। उसी समय कक्षा 11 में नवीन प्रवेश हुए थे। कक्षा 11 में एक छात्रा जागृति बड़ी ही रूचि के साथ अध्ययन करती थी। अध्यापन के समय उसकी जागरूकता देखकर बड़ी प्रसन्नता होती थी। विश्वास था कि वह कक्षा में बहुत अच्छा निष्पादन करेगी। हो सकता है कि संभागीय स्तर पर टाॅपरों में उसकी गिनती हो। इसी सोच के साथ अध्ययन-अध्यापन सुचारू चल रहा था कि एक दिन एक छात्रा ने बताया, ‘सर, जागृति का प्रवेश उसके पापा ने विज्ञान वर्ग में करा दिया है। इसके बावजूद यह आपकी कक्षा में बैठ रही है। 
          पूछताछ करने पर पता चला कि उस छात्रा की रूचि वाणिज्य में थी और उसने स्वच्छा से वाणिज्य का चयन कर लिया था। किंतु जब उसके पिता को इस बात की जानकारी हुई तो वे काफी नाराज हुए और उस पर दबाब डालकर उसका प्रवेश विज्ञान वर्ग में करा दिया। शायद छात्रा भी अपने अभिभावकों के समक्ष अपनी इच्छा को अभिव्यक्त नहीं कर पायी या उसके अभिभावकों ने समझा नहीं। छात्रा ने अपनी तरफ से जोर देकर विषयों का चुनाव नहीं किया और मन मारकर अपने अभिभावकों के निर्णय को झेल लिया। हाँ! दिल से स्वीकार नहीं किया था क्योंकि उसके बाद भी लगभग एक सप्ताह तक मेरी कक्षा में बैठती रही, जब तक कि उसे डाँटकर उसकी कक्षा में नहीं भेज दिया गया। 
              मैं उस समय अनुबंध आधार पर नियुक्त एकदम नया अध्यापक था। अभिभावक से इस सन्दर्भ में कोई बात करने का साहस ही न हुआ। साहस क्या इस तरह का कोई विचार ही मेरे मन में नहीं आया था। आज की स्थिति होती तो मै एक बार अभिभावकों से सम्पर्क करके समझाने का प्रयत्न अवश्य करता। बाद में मैं भी उस विद्यालय से आ गया और जागृति में आगे के कैरियर के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है किंतु लेखक का मानना है कि वह विज्ञान की अपेक्षा वाणिज्य अधिक अच्छा निष्पादन करती। अतः कैरियर के मामले मेे व्यक्ति को वैयक्तिक स्वतंत्रता मिलना आवश्यक है। इससे न केवल व्यक्ति अधिक विकास करेगा, वरन समाज को भी विशेषज्ञ सेवाओं के रूप में लाभ होगा।


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