समय ही जीवन है!
मानव समय के साथ-साथ आदत निर्माण करते हैं। एक बार जब आदत निर्माण हो जाती है, तब वह हमारे व्यवहार का महत्वपूर्ण भाग बन जाती है। आदतों को प्रयत्नों द्वारा बदला भी जा सकता है। अतः व्यवहार भी प्रयासों द्वारा बदला जा सकता है। एक अध्येता के अनुसार नवीन व्यवहार लगभग चालीस दिनों में आदत में परिवर्तित हो जाता है। व्यवहार में होने वाला यह परिवर्तन ही तो शिक्षा या अधिगम कहलाता है। इस व्यवहार परिवर्तन को आवश्यकतानुसार नियोजित और नियंत्रित किया जा सकता है।
जब हम जीवन की बात करते हैं, तो विचार का विषय है जीवन क्या है? जीवन कितना है? के उत्तर में हम संभावित आयु के बारे में बात करते हैं। इसका आशय तो यही हुआ न कि हमें जितना समय सक्रिय रूप में मिलता है वही जीवन है। यदि कोई व्यक्ति कोमा में चला जाता है और कुछ करने की स्थिति में नहीं रहता तो हम कहते हैं कि यह भी कोई जीवन है? इससे तो मौत ही भली कई बार तो निष्क्रिय व जीवित व्यक्ति के लिए इच्छा मृत्यु की बात भी की जाती है। इस सबसे स्पष्ट होता है कि वास्तव में हमें सक्रिय अवस्था में उपलब्ध समय ही जीवन है। इसे दूसरे अर्थ में इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि उपलब्ध समय का सदुपयोग करना ही तो जीवन जीना है।
जीवन की सफलता की बात की जाती है तो समय के सदुपयोग पर आकर ही टिकती है। फील्ड के अनुसार, ‘‘सफलता और असफलता के बीच की सबसे बड़ी विभाजक रेखा को इन पाँच शब्दों में बताया जा सकता है कि ‘मेरे पास समय नहीं है।’ वस्तुतः समय तो सबके पास बराबर ही होता है। प्रत्येक व्यक्ति के दिन में 24 घण्टे, माह में 30 दिन व वर्ष में 365 दिन ही होते हैं। फिर यह कैसे हो सकता है कि एक व्यक्ति तो प्रत्येक कार्य के लिए कह देता है कि मेरे पास समय नहीं है, जबकि दूसरा प्रत्येक कार्य के लिए समय निकाल लेता है और अपने जीवन में सफलता के झण्डे गाढ़ता जाता है। यह प्रबंधन कला का ही कमाल है। समय के महत्व को बेंजैमिन फ्रैंक्लिन के कथन, ‘समय ही पैसा है।’ से भी समझा जा सकता है। फ्रैंक्लिन आगे कहते हैं, ‘सामान्य आदमी समय को काटने के बारे में सोचता है, जबकि महान व्यक्ति सोचते हैं इसके उपयोग के बारे में।’
कार्ल मार्क्स ने संसार के सामने नया चिन्तन रखा। वे श्रम प्रबंधन के हामी थे। उन्होंने स्पष्ट रूप से लिखा, ‘‘किसी के गुणों की प्रशंसा करने में अपना समय व्यर्थ मत करो, उसके गुणों को अपनाने का प्रयास करो।’’ वास्तविक रूप से किसी के गुणों की प्रशंसा का कोई लाभ प्रशंसा करने वाले को नहीं मिलने वाला, जब तक कि वह उनको अपने आचरण का अंग ना बनाये। भारत में ही नहीं विदेशों में भी मूर्ति पूजा ने इसी अवगुण के कारण मानव गति को विकास के पथ पर धीमा किया है; जब हम किसी महान पुरूष के आदर्शो व आचरण के अनुकरण करने की अपेक्षा पूजा का पाखण्ड करने लगते हैं, तब हमारा आचरण असत्य पर आधारित हो जाता है। जिन लोगों को भी हम अपने आदर्शो या महान व्यक्तियों की सूची में सम्मिलित करते हैं, वे अपने समय के उपयोग के कारण ही उस स्थान पर पहुँचे हैं। अमेरिका के भूतपूर्व न्यायाधीश चार्ल्स इवान्स हग्स के अनुसार- ‘‘लोग अधिक काम से कभी नहीं मरते, वे अपनी शक्ति के अपव्यय और चिन्ता के कारण मरते हैं।’’ (Men do not die from over-work. They die from
dissipation and worry.) अतः अपने समय को चिन्ता में नहीं काम करने में लगाना जीवन प्रबंधन का महत्वपूर्ण घटक है।
प्रसिद्ध चिंतक बर्नाड शॉ ने भी अनुपयोगी समय को ही सुख-दुख का मूल कारण बताया है, ’’अपने सुख -दुख के विषय में चिन्ता करने का समय मिलना ही, आपके दुख का कारण होता है।’’ वास्तविक रूप से चिन्ता करने से कोई परिणाम नहीं निकलता, योजना बनाकर कार्य करना ही उपलब्धियाँ प्राप्त करने का एकमात्र रास्ता है। अतीत और भविष्यत की चिन्ता मत करो। सदैव वर्तमान में जीओ। वर्तमान से ही भविष्यत बनता है। अतीत से सीख ली जा सकती है किन्तु अतीत को बदला नहीं जा सकता। अतः अतीत पर अधिक समय नष्ट करने का कोई मतलब नहीं है। भविष्यत का आधार वर्तमान में हमारे द्वारा समय के सदुपयोग से ही बनता है। वास्तविकता यही है कि समय का सदुपयोग करते हुए कार्य करते हुए हमें थकान कम होती है, हमारी अधिकांश थकान उस कार्य के बारे में सोचने से होती है, जिसे वास्तव में किया ही नहीं है। किसी अज्ञात चिंतक का कथन है,‘मानसिक यानि दिमागी कार्य की अपेक्षा मनुष्य उस कार्य से थकता है,जिसे वह करता ही नहीं है।
अतः समय के महत्व को समझें। समय का सदुपयोग कर्म करने में है। चौधरी मित्रसेन आर्य के अनुसार, सच्चे मन से पुरुषार्थ करना ही सफलता का मूल मंत्र है। पुरुषार्थ समय को विस्तार दे देता है। सफलता के पथिक को समय के पल-पल का उपयोग करना होगा, क्योंकि इसका संरक्षण नहीं किया जा सकता। कार्यो का समय के साथ सच्चा तालमेल जीवन प्रबंधन में सफलता का महत्वपूर्ण आधार सिद्ध होता है।
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