बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

जीवन प्रबन्ध के आधार स्तम्भ

स्वयं का जीवन प्रबंधकः किशोर


जीवन प्रबन्ध का चौथा महत्तवपूर्ण स्तम्भ किशोर-किशोरी स्वयं हैं। इस अवस्था में वे निर्णय क्षमता प्राप्त करने लगते हैं, तर्क करने लगते हैं, कार्य कारण सम्बन्ध को समझने लगते हैं। अतः समस्त निर्णय स्वयं करने की इच्छा रखते हैं। सामान्यतः किशोर-किशोरियों का चिन्तन तीन विषयों ंपर केन्द्रित रहता है-शिक्षा, आजीविका व शादी। वास्तव में ये तीनों ही किसी व्यक्ति के जीवन के लिए अत्यन्त महत्तवपूर्ण हैं, किन्तु दुर्भाग्य से सही वातावरण न मिलने के कारण इनका चिन्तन केवल शादी पर केन्द्रित हो जाता है, जो मां-बाप व शिक्षक द्वारा सही व स्पष्ट मार्गदर्शन न मिलने के कारण होता है। इनमें से प्रत्येक पर विचार करते समय किशोर-किशोरी को कार्य-कारण सम्बन्ध स्थापित करना चाहिए। 
वास्वविक बात यह है कि किशोरावस्था में समझ का विकास अवश्य होने लगता है किन्तु निर्णय करने की क्षमता पूर्णरूप से परिपक्व नहीं हो पाती। अतः किशोर-किशोरियों को निर्णयन प्रक्रिया व परिवार व समाज के प्रति उनके कर्तव्यों से परिचित करवाना चाहिए। उन्हें समझना चाहिए कि शिक्षा व विकास प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए क्योंकि आजीविका व शादी उनके वयस्क होने के बाद ही उचित है और शादी केवल उनका व्यक्तिगत विषय नहीं परिवार व समाज का भी विषय है। उन्हें समझना होगा कि उनकी स्वतंत्रता उनके पारिवारिक व सामाजिक कर्तव्यों के अधीन है। वे अपने परिवार, देश व समाज के संसाधन के रूप में परिवार, देश व समाज के द्वारा विकसित किये जा रहे हैं। अतः वे समाज की निधि हैं और उनको प्रभावित करने वाला प्रत्येक निर्णय परिवार से विचार-विमर्श व सामाजिक हित में होना चाहिए। 
        किशोर-किशोरियों को समझना चाहिए कि शिक्षा में विषय चयन, विद्यालय चयन उनकी अभिरूचि पर आधारित हो। अभिरूचि व क्षमता का आंकलन करके स्वयं विषय निर्धारण करें। माँ-बाप व शिक्षक से इस सम्बन्ध में आवश्यक सलाह अवश्य करें किंतु निर्णय करने का कार्य करने का उत्तरदायित्व उनका स्वयं का है। यदि किशोर-किशोरियों पर उनके स्वाभाविक विकास के प्रतिकूल निर्णय थोपे जायँं तो विनम्रता से दृढ़तापूर्वक अस्वीकार कर देना चाहिए। शिक्षा संबधी निर्णय करने में किशोर की प्रमुख भूमिका होनी चाहिए। आजीविका के क्षेत्र का चयन शिक्षा स्वयं ही कर देती है।  शादी तो व्यक्तिगत, पारिवारिक व सामाजिक संयुक्त उत्तरदायित्व है, जिसका निर्णय भी सभी पक्षों से विचार-विमर्श के बाद ही होना चाहिए। किशोर-किशोरियों को निर्णय करने के वैयक्तिक अधिकार व उत्तरदायित्व से भागना नहीं चाहिए। किशोर-किशोरियों का परमुखापेक्षी बनना उनके स्वयं, परिवार व समाज दोनों के लिए घातक है।
जीवन प्रबन्ध मां, बाप, शिक्षक व किशोर-किशोरी सभी के द्वारा संयुक्त रूप से किया जाना अपेक्षित है। परिवार व समाज का वातावरण जीवन प्रबंधन को गंभीरता से प्रभावित करता है अर्थात परिवार पांचवा महत्तवपूर्ण स्तम्भ है जो जीवन प्रबन्ध से सम्बन्धित है। अतः जीवन प्रबन्ध के लिए वातावरण स्नेहिल, सुखद, विश्वास से परिपूर्ण व सरस होना चाहिए। जीवन प्रबन्ध की आवश्यकता को वर्तमान में इस तथ्य से और स्पष्ट किया जा सकता है कि वर्तमान में अधिसंख्यक छात्र-छात्राएं अपने विषयों, विद्यालयों व शिक्षकों से असन्तुष्ट हैं। अधिसंख्यक कार्मिक अपनी आजीविका से असन्तुष्ट है व अधिसंख्यक व्यक्ति अपने जीवन साथी व परिवार से असन्तुष्ट है। अतः कुशल जीवन प्रबन्ध ही जीवन को सुगम, आनन्दपूर्ण व सन्तुष्टिदायक बना सकता है।

कोई टिप्पणी नहीं: