गुरुवार, 21 अगस्त 2014

ध्येय, उद्देश्य और लक्ष्य आदर्शवादी किन्तु यथार्थ के धरातल पर हों


ध्येय, उद्देश्य और लक्ष्य आदर्शवादी


 किन्तु यथार्थ के धरातल पर हों :


हाँ, एक बात का अवश्य ध्यान रखें कि ध्येय, उद्देश्य और लक्ष्यों का निर्धारण भले ही मानसिक क्रिया हो किन्तु ये भौतिक रूप से क्रियान्वित करने के लिए हैं। ये तीनों ही आपस में अन्तर्सम्बन्धित हैं। तीनों क्रमशः आजीवन, दीर्घकालीन, मध्यमकालीन व तात्कालिक हैं। हमारा ध्येय कुछ भी क्यों न हो, हमें उसकी व्यावहारिकता पर अवश्य विचार कर लेना चाहिए। आखिर वह हमारे द्वारा कार्य रूप में परिणत करने के लिए है। कोरे आदर्शवादी या सिद्धान्तवादी ध्येय जो कार्यरूप में ढालने संभव न हों पुस्तकों में ही रहने देने चाहिए। नहीं, शायद उन्हें पुस्तकों में भी नहीं रहने देना चाहिए, अन्यथा वे पुस्तके आडंबर फैलाने वाली बन जायेंगी। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के शब्दों में, ‘‘करने वाला इतिहास निर्माता होता है, सिर्फ सोचते रहने वाला इतिहास के भयंकर रथ-चक्र के नीचे पिस जाता है। इतिहास का रथ वही हाँकता है, जो सोचता है और सोचे को करता भी है।’’ अतः आपका ध्येय, आपके उद्देश्य और आपके लक्ष्य और आपकी योजना कार्यरूप में परिणत करने योग्य होनी चाहिए। 

            हमें ऐसे आदर्शो का ही चुनाव करना चाहिए, जो व्यावहारिक हों, जिन्हें कार्य रूप में परिणत करना संभव हो। हमारे आदर्श यथार्थ में लागू करने के लिए ही होने चाहिए तभी तो हम सफलता प्राप्त कर सकेंगे। अपने ध्येय का निर्धारण करते समय उनका आदर्श रूप तो सुनिश्चित करें ही साथ ही वे यथार्थ वादी भी होने चाहिए। निराधार कल्पनाएँ योजना नहीं हो सकतीं और सफल तो योजना ही होती हैं; कल्पना नहीं। हाँ, कल्पनाओं को कालान्तर में आधार प्रदान करके योजनाओं में बदला जा सकता है। अतः अपने ध्येय, उद्देश्य और लक्ष्यों का निर्धारण यथार्थ के धरातल पर करें किन्तु वे आदर्शवादी अवश्य हों। इन्हें स्थाई व स्मरणीय बनाने के लिए अपनी डायरी में लिखकर रखें और समय-समय पर उन्हें आत्मसात भी करते रहें।

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