गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

दैनिक जागरण सप्तरंग, कल्पतरू दिनांक 12 फरवरी 2014 से साभार


कर्तव्यनिष्ठ

एक व्यक्ति दुर्घटना में घायल अपने बच्चे को लेकर चिकित्सालय पहुँचा। जाँच के बाद चिकित्सक ने कहा कि ऑपरेशन होगा। शल्यक्रिया विशेषज्ञ चिकित्सक उस समय चिकित्सालय में उपलब्ध नहीं थे। उन्हें फोन किया गया। चिकित्सक जितना जल्दी आ सकते थे, आ गए फिर भी चिकित्सालय पहुँचने में उन्हें लगभग आधे घण्टे का समय लगा। घायल बच्चे का पिता भड़क उठा, ‘आपको अपना कर्तव्य नहीं पता। आप अस्पताल से गायब हैं, और जब बुलाया जाता है तो इतनी देर से आते हैं.......। चिकित्सक ने कहा- ‘मैं जितनी जल्दी आ सकता था, पहुँच गया......। चिकित्सक बात पूरी कर ही न पाये थे कि बच्चे का पिता बिफर उठा- ‘अगर आपके बच्चे के साथ दुर्घटना घटी होती, तब भी आप इतनी देर से आते?’
       चिकित्सक ने कहा, ‘मुझे बातों में मत उलझाइए, ‘इस समय तुरंत आपरेशन करना होगा। सर्जन आपरेशन करने चले गए। एक घण्टे तक बच्चे के पिता बैचेन रहा। वह संशय में था कि मैंने डाक्टर को जली-कटी सुना दी......डाक्टर वैसे ही लापरवाह है, कहीं..........? वह भगवान से प्रार्थना करने लगा। एक घण्टे बाद सर्जन ने बाहर आकर कहा, बधाई हो, ऑपरेशन सफल रहा............ मुझे जल्दी जाना है, मैं निकलता हूँ, आप नर्स से दवाइयाँ समझ लें...। पिता खुश था, लेकिन वह यह भी सोच रहा था कि डाक्टर तो बड़ा घमण्डी है, दो मिनट बात भी नहीं की । सच, उसे अपना कर्तव्य पता ही नहीं है। पिता नर्स के पास गया। नर्स ने बताया- डाक्टर साहब के बच्चे की मौत एक एक्सीडेण्ट में हो गई है। जब उन्हें फोन करके यहाँ बुलाया गया, तब वे उसकी अंत्येष्टि कर रहे थे। बच्चे का पिता स्तब्ध रह गया।

कथा मर्म- पूरी बात, परिस्थितियों को बिना जाने-बूझे किसी की कर्तव्यनिष्ठा पर प्रश्नचिह्न लगाना उचित नहीं है। हाँ, कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति प्रश्नचिह्न लगाने पर भी अपने कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता और अपने कर्तव्य का निर्वाह करता है।

प्रबंधन सूत्र- कभी भी परिस्थितियों की पूरी जानकारी का विश्लेषण किए किसी व्यक्ति के कार्य पर अपना दृष्टिकोण न थोपें। दृष्टिकोण गलत हो सकता है, तथ्य नहीं। दूसरे व्यक्ति के कार्य पर प्रश्नचिह्न लगाए बिना अपने कर्तव्य का निर्वाह करें।


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