राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 भारत की विकास गाथा में तीव्रता लाने का इक्कीसवीं सदी का महत्वपूर्ण दस्तावेज है। किसी भी देश के विकास का आधार शिक्षा ही होती है। शिक्षा से ही साहित्य, संगीत, कला, सभ्यता व संस्कारों का संरक्षण, संवर्धन व आदान-प्रदान संभव होता है। शिक्षा का आधार भाषा होती है। किसी भी प्रकार की अभिव्यक्ति के लिए भाषा एक अनिवार्य घटक है। बोली और लिपि दोनों ही किसी भी भाषा के अनिवार्य तत्व हैं। भाषा के बिना किसी भी सभ्यता का विकास संभव नहीं है। भाषा के माध्यम से ही साहित्य, संगीत, कला, सभ्यता व संस्कृति का संरक्षण, परिवर्धन व एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के मध्य हस्तान्तरण संभव होता है। भाषा शिक्षा के लिए अनिवार्य घटक है। शिक्षा के लिए ही क्यों? विचार के लिए किसी न किसी भाषा का अस्तित्व होना आवश्यक है।
भारतीय स्वतंत्रता के बाद से ही भारत की राजनीति में भाषा को विवाद में घसीटा जाता रहा है। भाषा विवाद के समाधान के लिए ही सन् 1956 में अखिल भारतीय शिक्षा परिषद ने त्रिभाषा सूत्र को मूल रूप में अपनी संस्तुति के रूप में मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में रखा था और मुख्यमंत्रियों ने इसका अनुमोदन कर दिया था। कोठारी कमीशन 1964 ने भी इस सूत्र को प्रतिपादित किया। 1968 व 1986 की शिक्षा नीतियों में भी त्रिभाषा सूत्र पर जोर दिया गया। वास्तविकता यह है कि अभी भी देश में त्रिभाषा सूत्र को लागू नहीं किया जा सका है। 2020 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति त्रिभाषा सूत्र के साथ भाषा विविधता और बहुभाषावाद पर जोर देती हुई भारतीय भाषाओं के संरक्षण व संवर्धन की बात करती है। नीति आठवीं अनुसूची की 22 भाषाओं के संरक्षण के लिए प्रत्येक भाषा की अकादमी स्थापित करने की बात करती है।
नीति दस्तावेज के अनुसार पिछले 50 वर्षो में हमने 220 भाषाओं को खो दिया है। यूनेस्को ने 197 भारतीय भाषाओं को लुप्तप्राय घोषित किया है। अनेक भाषाएं लुप्त होने के कगार पर हैं, विशेषकर वे भाषाएं जिनकी लिपि नहीं है। नीति दस्तावेज में इस प्रकार की स्थिति के लिए चिंता व्यक्त की है। नीति सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण व विकास की बात करती है।
कई बार समाचारों में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर राजनीतिज्ञों द्वारा हिंदी थोपने के आरोप लगाए गए हैं। इस प्रकार के किसी भी प्रकार के संकेत नीति दस्तावेज में नहीं हैं। नीति दस्तावेज भारतीय भाषाई्र विविधता का सम्मान करती है। इसमें सभी भारतीय भाषाओं के संरक्षण व विकास का आधार विकसित करने की बात की गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का अनुच्छेद 22 भारतीय भाषाओं, कला और संस्कृति का संवर्धन शीर्षक से है। इस अनुच्छेद के 20 उप-अनुच्छेद हैं, जिनमें से 17 उप अनुच्छेद भाषाओं से संबन्धित हैं। इसी से स्पष्ट होता है कि शिक्षा नीति में भाषाओं को कितना महत्व दिया गया है।
कोई भी नीति अपने आपमें संपूर्ण नहीं होती। नीति के आधार पर उसे लागू करने के लिए कार्यक्रम बनाए जाते हैं। नियमों का निर्धारण किया जाता है। संसाधनों का आवंटन किया जाता है। आवंटित संसाधनों का इष्टतम प्रयोग करके सुविचारित लक्ष्यों को प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है। केवल अच्छी नीतियाँ बनाने से परिणामों की प्राप्ति नहीं हो सकती। लागू करने वाले मानव संसाधन द्वारा स्व-प्रेरित होकर लक्ष्य के प्रति समर्पित होकर नीतियों को लागू करने की आवश्यकता पड़ती है। भारत में इसकी कमी देखी जाती रही है। अच्छी से अच्छी नीतियों को लालफीताशाही का शिकार बनाकर असफल सिद्ध कर दिया जाता रहा है। त्रि-भाषा सूत्र को लागू करना और शिक्षा के लिए सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत आवंटन करना कोठारी आयोग की रिपोर्ट से ही योजना व नीतियों का भाग रहा है। इतने लंबे समय के बाद भी आज तक इन दोनों को व्यावहारिक रूप से लागू नहीं किया जा सका है।
अतः आवश्यकता इस बात की है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को धरातल पर उतारने के लिए कार्य किया जाए। संसाधनों का पर्याप्त आवंटन किया जाए। कड़ाई के साथ लागू किया जाय और भ्रष्टाचार की बीमारी से इसे बचाया जाए। हाल ही में राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी के द्वारा आयोजित नीट परीक्षाओं में जिस प्रकार की शिकायतें आई हैं और उच्चतम न्यायालय को हस्तक्षेप करना पड़ा है। इस प्रकार की कमजोर प्रणाली से शिक्षा नीति को सही अर्थो में लागू करना हो पाएगा, संदेह पैदा करता है। अतः नीति को राजनीति से दूर रखकर, केवल प्रचार-प्रसार तक सीमित न रहकर सही अर्थो में लागू किए जाने की आवश्यकता है। भाषाई विविधता के माध्यम से शिक्षा प्रदान करने की नीति को लागू करना निःसन्देह राष्ट्र की कला, साहित्य, संस्कृति व संगीत जैसी जीवन की आधारभूत आवश्यकता को संरक्षण करने, विकसित करने व स्थानान्तरित करने में सफलता प्रदान करेगा।
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