गुरुवार, 4 जुलाई 2024

राष्ट्रीय शिक्षा नीति में आभासी प्रयोगशाला



शिक्षा किसी भी देश के विकास की आत्मा है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में बुनियादी साक्षरता, शिक्षा व आजीविका के पहलू को मानव अधिकार के रूप में स्वीकार किया गया है। मानव विकास के लिए शिक्षा एक घटक मात्र नहीं है, वरन शिक्षा के बिना मानव का अस्तित्व संभव ही नहीं है। शिक्षा ही वह उपकरण है, जो एक प्राणी को सुसभ्य व सुसंस्कृत मानव में परिवर्तित कर देती है। भर्तृहरिरचित नीतिशतकम् में कहा भी गया है-

साहित्य संगीत कला विहीनः साक्षात्पशुः पुच्छविषाणहीनः।

तृणं न खादन्नपि जीवमानस्तद्भागधेयं परमं पशुनाम्।।

अर्थात् जो मनुष्य साहित्य, संगीत, कला से( तीनों ही शिक्षा के मूल तत्व हैं) वंचित होता है, वह बिना पूंछ तथा बिना सींगों वाले साक्षात् पशु के समान है। वह बिना घास खाए जीवित रहता है, यह पशुओं के लिए निःसन्देह सौभाग्य की बात है।

येषां न विद्या न तपोन् दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।

ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्य रूपेण मृगाः चरन्ति।।

जिन मनुष्यों के पास विद्या अर्थात शिक्षा नहीं है, जिनके कर्म तप और दान नहीं हैं। जिनमें ज्ञान, शील, मानवीय गुण और धर्म नहीं हैं। वे इस मृत्यु लोक में भार समान हैं और मनुष्य के रूप में विचरण करने वाले पशु हैं।

    इस प्रकार शिक्षा को मानव जीवन के आधार के रूप में या शिक्षा के अधिकार को मानव अधिकार के रूप में स्वीकार करने में दो मत नहीं हैं। शिक्षा के विकास के लिए प्रत्येक कल्याणकारी राज्य पूरे प्रयास करता है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी इसी दिशा में सार्थक प्रयास है। शिक्षा नीति केवल सिद्धांत की बात नहीं करती। इसमें व्यावहारिक ज्ञान पर भी विशेष ध्यान दिया गया है। प्रयोगात्मक ज्ञान की आवश्यकता को समझते हुए प्रयोगशालाओं के विकास पर भी पर्याप्त ध्यान दिया गया है। यही नहीं प्रयोगशालाओं की उपलब्धता व समय की सीमाओं को समझकर आभासी प्रयोगशालाओं(वर्चुअल लैब्स) को बढ़ावा देने की बात भी की है।

    ‘किसी सिद्धांत को प्रयोग द्वारा सिद्ध किया जा सकता है़।’ अल्बर्ट आइंस्टीन के इस कथन से प्रयोग और प्रयोगशालाओं का महत्व स्पष्ट होता है। यर्थार्थ यही है कि वही विचार या सिद्धांत स्वीकार योग्य है जिसका प्रयोग किया जा सकता है। जिसका प्रयोग न किया जा सकता हो, वह एक असत्य कथन मात्र है। अतः प्रयोग के लिए प्रयोगशालाओं की आवश्यकता होती हैं। प्रयोगशालाएँ अनुसंधानकर्ताओं या वैज्ञानिकों के लिए ही नहीं, नवाचार में लगे व्यक्तियों व ज्ञान पिपाशुओं और विद्यार्थियों के लिए भी आवश्यक हैं।

    संसाधनों की कमी के कारण बहुतायत में प्रयोगशालाओं की उपलब्धता संभव नहीं होती। कई बार जिस समय सीखने वाला आवश्यक समझता है, उस समय उपलब्ध प्रयोगशाला बंद होती है। ऐसी स्थिति में हर स्थान पर और हर समय प्रयोगशाला की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए नवीनतम् तकनीकी का प्रयोग करते हुए आभासी प्रयोगशाला(वर्चुअल लैब्स) की अवधारणा सामने आती है। वर्चुअल लैब का प्रयोग कहीं भी कभी भी किया जा सकता है। इसी कारण राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 में तकनीकी का प्रयोग करते हुए वर्चुअल लैब पर जोर दिया गया है।

    अनुच्छेद 24 आनलाइन और डिजिटल शिक्षा- प्रौद्यागिकी का न्यायसम्मत उपयोग सुनिश्चित करना में 24.4 के अन्तर्गत डिजिटल प्रौद्योगिकी के उद्भव और स्कूल से लेकर उच्चतर शिक्षा के सभी स्तरों तक शिक्षण-अधिगम के लिए प्रौद्योगिकी के उभरते महत्व को देखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रमुख पहलों की सिफारिश करती है। उनमें च. बिन्दु के अन्तर्गत वर्चुअल लैब्स में उल्लेख है कि वर्चुअल लैब बनाने के लिए दीक्षा, स्वयं और स्वयंप्रभा जैसे मौजूदा ई-लर्निग प्लेटफार्म का उपयोग किया जाएगा ताकि सभी छात्रों को गुणवत्तापूर्ण व्यावहारिक और प्रयोग आधारित अनुभव का समान अवसर प्राप्त हो। सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित समूहों (एसईडीजी) के छात्रों और शिक्षकों को पहले से लोड की गई सामग्री वाले टैबलेट जैसे डिजिटल उपकरण पर्याप्त रूप से देने की संभावनाओं पर विचार किया जाएगा और विकसित किया जाएगा।

    वर्चुअल लैब का प्रसार ग्रामीण क्षेत्रों व अन्य कठिनाई वाले क्षेत्रों में विद्यार्थयों व शिक्षकों की कठिनाइयों को कम करेगा। निःसन्देह यह उपयोगी व महत्वपूर्ण व उपयोगी विचार है किन्तु हमें यह देखना होगा कि वर्चुअल लैब के प्रयोग के लिए उन्नत स्तर के उपकरणों व हाईस्पीड इंटरनेट संयोजन की आवश्यकता होगी। इस प्रकार वर्चुअल प्रयोगशालाओं का उपयोग सुनिश्चित करने के लिए उपकरणों व इंटरनेट की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भी लगातार प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। तभी राष्ट्रीय शिक्षा नीति की भावना के अनुरूप वर्चुअल लैब्स का उपयोग सुनिश्चित हो सकेगा।


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