जो चाहे जैसा करे, हम हैं प्रेम लुटात।
जहां प्रेम की चाह ना, पथ से हम ना जात॥
नर नारी को मान दे, गृह की लक्ष्मी मान।
नारी जब है समझती, पति को देव समान॥
जिस घर बसे गृह लक्ष्मी, नर है देव समान।
अधिकारों की चाह ना, देत कर्म को मान॥
अधिकारों की मांग है, न कर्तव्य का भान
गृह ही नरक बनत है, अपने शत्रु समान॥
आस्था, निष्ठा, विश्वास को, जो मारत हैं चोट।
झूठ बोल छलना करें, खुद का मिले न वोट॥
हमरी बस चाहत रही, सबकी पूरी चाह।
मित्र करें कर्तव्य को, निकले कभी न आह॥
झूठ बोल छलना करें, धन की करत तलाश।
मुखोटे लगाकर फ़िरें, ले रिशतों की लाश॥
दुख का सृजन करत हैं, सुख की करत तलाश।
दिन चैन न रात निदिया, जिन्दा हैं वो लाश॥
सुख उनको ही मिलत है, जो हैं सुख्ख लुटात।
कर्मवीर को सफ़लता, दौलत आत हटात॥
रिशतों को जो मान दें, सुख की हो बरसात।
निज प्रबन्ध ना कर सके, क्या उसकी औकात॥
जहां प्रेम की चाह ना, पथ से हम ना जात॥
नर नारी को मान दे, गृह की लक्ष्मी मान।
नारी जब है समझती, पति को देव समान॥
जिस घर बसे गृह लक्ष्मी, नर है देव समान।
अधिकारों की चाह ना, देत कर्म को मान॥
अधिकारों की मांग है, न कर्तव्य का भान
गृह ही नरक बनत है, अपने शत्रु समान॥
आस्था, निष्ठा, विश्वास को, जो मारत हैं चोट।
झूठ बोल छलना करें, खुद का मिले न वोट॥
हमरी बस चाहत रही, सबकी पूरी चाह।
मित्र करें कर्तव्य को, निकले कभी न आह॥
झूठ बोल छलना करें, धन की करत तलाश।
मुखोटे लगाकर फ़िरें, ले रिशतों की लाश॥
दुख का सृजन करत हैं, सुख की करत तलाश।
दिन चैन न रात निदिया, जिन्दा हैं वो लाश॥
सुख उनको ही मिलत है, जो हैं सुख्ख लुटात।
कर्मवीर को सफ़लता, दौलत आत हटात॥
रिशतों को जो मान दें, सुख की हो बरसात।
निज प्रबन्ध ना कर सके, क्या उसकी औकात॥
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