रविवार, 2 मार्च 2014

सफ़लता का राज

सफलता को जानें-स्वीकार करें


सफलता सर्वप्रिय शब्द है। सभी व्यक्ति सफल होना चाहते हैं। एक छोटा बच्चा भी अपने प्रयासों में सफलता पाकर फूला नहीं समाता। आप कभी बच्चों को खेलते हुए देखिए, खेल में सफल होकर बच्चे कितने आनन्द का अनुभव करते हैं। बच्चा अपने माँ-बाप या अपने अभिभावकों से कोई बात मनवाना चाहता हैं और उसके प्रयास के फलस्वरूप हम उसकी बात मान लेते हैं; अपने प्रयासों के सफल होने पर वह कितना खुश होता है। कभी अनुभूति करके तो देखिए।
         इसी प्रकार सफलता हमें भी अच्छी लगती हैं, किन्तु मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यों-ज्यों दवा की। हम जैसे-जैसे बड़ें होते हैं, अपने प्रयासों में प्रबंधन को नजरअन्दाज करने लगते हैं। हम जैसे-जैसे बड़े होते हैं, यह भूल जाते हैं कि हम जो भी प्रयास सुप्रबन्धित ढंग से करते हैं वे उनका परिणाम सुफल लेकर आता है। हम सफलता की कामना करते हैं और शायद सफल होते भी हैं, किन्तु सफलता की अवधारणा को न समझने के कारण, सफलता का आनन्द नहीं ले पाते। हमें जीवन में प्रतिदिन सफलताएं मिलती हैं। आवश्यकता है उन्हें समझने और उनका यथोचित जश्न मनाने की।        
         सफलता को समझे बिना हम उसका आनन्द नहीं उठा सकते यह ठीक उसी प्रकार है कि औषधि आपके पास है किन्तु आप उसके महत्व व उपयोग को न जानने के कारण अस्वस्थ हैं; जैसे ही आपको पता चलता है कि अरे! यही तो औषधि है जिसके सेवन से आरोग्य प्राप्त कर में आनन्द का उपभोग कर सकता हूँ। आप आनन्द के हकदार हो जाते हैं अर्थात पहले से ही उपलब्ध संसाधनों से आप आनन्द का उपभोग करने लगते हैं। यही बात सफलता के आनन्द का उपभोग करने के लिए भी है। सफलता सुप्रबंधन के साथ किए गये आपके प्रयासों का एक अनिवार्य परिणाम होता है और सफलता आनन्द प्राप्त करने का संसाधन है। दूसरे शब्दों में हम कहें सफलता ही तो व्यक्ति को आनन्द की अनुभूति कराने का जादू है, आओ हम इस जादू का परिचय प्राप्त करें।



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