सम्बन्धों का प्रबंधन : रक्षा का बंधन
मानव जीवन का आधार उसका सामाजिक होना है। तभी तो कहा जाता है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। ऐसा नहीं है कि मनुष्य ही एकमात्र सामाजिक प्राणी है, अन्य प्राणियों में भी सामूहिक रहन-सहन व सामाजीकरण के लक्षण देखे जाते हैं किन्तु बुद्धिमान होने के कारण मनुष्य की स्थिति विशेष हो जाती है। मनुष्य ज्ञान के आधार पर संबन्धों के महत्व को समझकर चिन्तन व मनन के आधार पर अपने व्यवहार को नियिन्त्रत व समाज के अनुकूल करता है। कहा गया है कि विद्या वही है, जिससे मनुष्य स्वयं को पहचाने। मनुष्य स्वयं को पहचान कर ही अपनों के साथ संबन्धों का स्थापन व निर्वहन करता है। यूरिपेडीज ने कहा है, ``प्रत्येक व्यक्ति सब बातों में निपुण नहीं हो सकता, प्रत्येक व्यक्ति की विशिष्ट उत्कृष्टता होती है।´´ सभी व्यक्तियों की उत्कृष्टता का प्रयोग करके ही समाज उत्कृष्ट बन सकता है। हमें इसी कार्य को करना है और यह कार्य हो सकता है सुप्रबंधन के द्वारा।
वाल्टर वियेरा के अनुसार, ``संसाधनों के प्रबंधन के साथ-साथ संबन्धों का प्रबंध भी आना चाहिए।´´ संबन्धों का यह प्रबंध सभी व्यक्तियों की उत्कृष्टता का प्रयोग करके समाज को उत्कृष्ट बनाने का कार्य कर सकता है। दिन-प्रतिदिन के कार्यों में हम सभी संबन्धों को ध्यान में नहीं रख पाते। अत: ऐसे संबन्धों के प्रबंधन के लिए जिनकी ओर दैनिक गतिविधियों में ध्यान नहीं दे पाते मानव से त्योहारों व उत्सवों का आयोजन किया जाता है। उत्सव संबन्धों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं।
रक्षाबंधन उसी कड़ी में एक मजबूत बंधन है। रक्षाबंधन केवल भाई-बहन के बीच का बंधन ही नहीं है, वरन् प्राचीन काल से ही राजा-प्रजा, पुरोहित-यजमान आदि सभी के बीच का बंधन माना जाता रहा है। सीमा-प्रहरियों को रक्षा-सूत्र बांधने का भी विशेष रिवाज देखने को मिलता है। रक्षा का दायित्व केवल पुरूष वर्ग का ही नहीं है। वर्तमान समय में किसी भी क्षेत्र में नारी भी पीछे नहीं है। वर्तमान समय में ही क्यों प्राचीन काल से ही नारी पुरूष की संरक्षिका रही है। अत: आज हम सभी संबन्धों के प्रबंधन की ओर ध्यान देते हुए अपने-अपने कर्तव्यों और दायित्वों के अनुरूप एक-दूसरे की रक्षा का संकल्प करते हुए एक-दूसरे की उत्कृष्टता का प्रयोग करके समाज को उत्कृष्टता की ओर ले जाने का संकल्प करें। नर-नारी एक दूसरे के प्रतिस्पर्धी नहीं हैं, एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों की अपनी-अपनी उत्कृष्टताएं हैं। अत: दोंनो की उत्कृष्टता का प्रयोग करते हुए परिवार व समाज को उत्कृष्टता की ओर ले जाया जा सकता है।
आओ रक्षाबंधन के इस पावन पर्व पर हम संकल्प करें कि हम एक दूसरे की मर्यादाओं का सम्मान करते हुए आपसी सम्बंधों का प्रबंधन करेंगे। यही नहीं एक-दूसरे के विकास का पूरा प्रयत्न करते हुए राष्ट्र व विश्व का विकास सुनिश्चित करेंगे और इसका सूत्र होगा - "प्रतिस्पर्धा नहीं, समन्वय; संघर्ष नहीं, समपर्ण।"
इसी के साथ सभी को रक्षाबंधन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं।
मंगलवार, 24 अगस्त 2010
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1 टिप्पणी:
बढिया संदेश .. आपको रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
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