रविवार, 20 सितंबर 2009

स्वयं का भी प्रबंधन करें (Self-Management)

स्वयं का भी प्रबंधन करें (Self-Management)


प्रबंध एक प्राचीनतम प्रक्रिया है। मानव सभ्यता के विकास के साथ प्रबंधन का भी विकास हुआ है। भले ही हेनरी फेयोल के प्रबंधन के सिद्धांत उस समय तक विकसित नहीं हो पाये होंगे या ऍफ़ डब्लू टेलर(F.W.Taylor) के वैज्ञानिक प्रबंध का विकास नहीं हुआ होगा, भले ही औद्योगिक क्रांति नहीं हुई होगी, किंतु प्रबंधन का अस्तित्व परिवार में किसी न किसी रूप में अवश्य रहा होगा कारखाने में नहीं, तो रसोई घर में, किसान के कार्य में, गृह-सज्जा में आदि अनेक कार्य किसी न किसी प्रकार प्रबंध की सहायता से ही समपन्न होते रहें होंगे, क्योंकि प्रबंध के बिना सामूहिक जीवन तो क्या व्यक्तिगत जीवन भी मानव के रूप में जीना सम्भव नहीं हैं। हां, प्रबंध के स्तर का विकास शनेः शनेः हुआ । तकनीकी व सिद्धांतों का विकास हुआ और प्रबंध की परिभाषा भी समय के साथ बदलती रही। पहले जहाँ दूसरों से कार्य कराना (getting things done thruogh others) ही प्रबंध माना जाता था वर्त्तमान में प्रबंध औपचारिक दलों में संगठित व्यक्तियों के द्वारा तथा उनके साथ मिलकर काम करने व कराने की कला व विज्ञान है। (getting things done through and with the people.) इस प्रकार प्रबंध दूसरों का ही नही अपना भी किया जाता है।

स्वामी रामतीर्थ ने कहा था दुनिया में एक देन ऐसी है जिसे प्रत्येक व्यक्ति देना चाहता है, लेना नहीं - प्रवचन, उपदेश या आदेश। वास्तव में प्रबंधन में भी दूसरों से कार्य कराना ही सम्मिलित किया जाता रहा, अब इस विचार में परिवर्तन आ रहा है और मानव स्वयं को भी प्रबंध का अंग मानने लगा है। वास्तविकता यही है कि हम दूसरों की अपेक्षा स्वयं को सरलता से बदल सकते हैं और दूसरों को अभिप्रेरित करने के लिए अपने आप का अभिप्रेरण आवश्यक है। स्वयम का प्रबंध व्यक्तिगत जीवन के लिए ही नहीं सार्वजनिक प्रबंधन के लिए भी आवश्यक है क्योकिं हमारी सफलता हमारे सहयोगियों को भी प्रबंध अपनाने के लिए अभिप्रेरित करती है। उपदेश की अपेक्षा अनुकरण अधिक प्रभावी सिद्ध होता है।


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