प्रबंधन मूलतः संसाधनों का किया जाता है । मानव भी अपने आप में एक संसाधन है । सामान्यत सभी देशों के सभी विभागों में मानव को एक संसाधन के रूप में स्वीकार किया जा चुका है, किंतु मानव संसाधन से हमारा आशय मानव के समय से होता है। मानव संसाधन को प्रशिक्षित करके उसकी गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है किंतु मानव संसाधन को भविष्य के लिए संरक्षित करके नही रखा जा सकता। क्योंकि मानव का समय ही संसाधन है और उसका संरक्षण सम्भव नहीं है।
कालचक्र अविरल चलता रहता है, इसे आज तक कोई रोक नहीं पाया है। भविष्य में भी इसमें सफलता मिलने की कोई आशा नहीं है। जिस वस्तु या संसाधन पर हमारा नियंत्रण ही नहीं है, उसका प्रबंधन भी सम्भव नहीं है। हाँ, समय अपनी गति से चलता है। अतः समय की गति के साथ हम किए जाने वाले कार्यों का प्रबंधन कर सकते हैं। हम कब क्या कार्य करें ? इस पर हमारा नियंत्रण है, अतः स्वयम पर नियंत्रण करके ही हम किए जाने वाले कार्यों को प्रबंधित करके समय का सदुपयोग कर सकते हैं। अध्यात्म में इसे ही संयम कहा जाता है।
हमें इस वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए कि समय पर नियंत्रण सम्भव नहीं है। अतः उसे प्रबंधित नहीं किया जा सकता, हम कार्यों का प्रबंधन करके ही विकास के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। समय के साथ कार्यों का समन्वय ही कार्य प्रबंधन है जिसे हम गलतफहमी में समय प्रबंधन कहते हैं।
1 टिप्पणी:
प्रबंधन को समझाने के लिए धन्यवाद। उम्मीद है इस विषय पर आपकी कलम और चलेगी।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
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