दिल्ली के यातायात का हृदय दिल्ली मैट्रो को कहा जाय तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। मैट्रो के बिना राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की परिवहन व्यवस्था की कल्पना करना संभव नहीं है। मैट्रो दिल्ली की लाइफलाइन भी कही जाती है।
दिल्ली के लिए मैट्रो परिवहन का साधन ही नहीं, जीवन का आधार भी है। दिल्ली मैट्रो में फेशन शो भी देखे जा सकते हैं, तो प्यार की पीगें दिखाते वीडियो भी वाइरल होते हैं। लड़के-लड़कियों की स्वच्छंदता की झांकी दिल्ली मैट्रो में देखी जा सकती है तो नर-नारी समानता के सुंदर उदाहरण भी देखे जा सकते हैं। इसी प्रकार की हजारों कहानियाँ दिल्ली मैट्रो में प्रतिदिन घटती हैं। परिवहन की लाइफलाइन में लाइफ का दर्शन प्रत्यक्ष देखा जा सकता है। वीडियो वाइरल होने के बाद भले ही तथाकथित प्रबुद्ध वर्ग आलोचना करता रहे या प्रशासन जुर्माना लगाता रहे या फिर पुलिस की कार्रवाही होती रहे। व्यस्तता की भाग-दौड़ में प्यार के प्रदर्शन के दो पल भी प्रेम की पीगें बढ़ाते युगल निकाल ही लेते हैं। केवल नर-मादा के प्रेम के ही नहीं मानवता से प्रेम के उदाहरणों की भी कोई कमी मैट्रा में नहीं रहती। इसी प्रकार का एक उदाहरण यहाँ प्रस्तुत है।
10 नवंबर 2024 की संध्या का समय था। दिल्ली मैट्रो में राजीव चैक से नोएडा सैक्टर 62 के लिए सवार हुआ। न्यू अशोक नगर स्टेशन निकल चुका था। सुबह 4 बजे से पूरे दिन अनियोजित यात्रा करने के कारण थकान चेहरे पर साफ झलक रही थी। यद्यपि मैं अपने आपको वृद्ध मानने लगा हूँ किन्तु सरकार व व्यवस्था नहीं मानती। साथी भी मजाक करते हैं कि सर, आपकी जितनी उम्र है, उतनी दिखती नहीं। कई बार मुझे भी लगता है, ‘अभी तो मैं जवान हूँ।’ किन्तु लगने से क्या होता है। उम्र का प्रभाव तो होता ही है। किन्तु सरका की अपनी व्यवस्था है। सरकार वृद्ध मान लेगी तो सेवा से निवृत्त कर देगी। अतः वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में भी नहीं आता, ताकि वरिष्ठ नागरिक के रूप में सीट पर बैठने का दावा करता। खड़े-खड़े ही यात्रा पूरी करनी थी। ऐसी ही स्थिति के लिए मजबूरी का नाम महात्मा गांधी कहावत चलती है। दिल्ली मैट्रो में संध्या के समय सीट पा जाना भाग्य की ही बात कही जा सकती है।
बीच के पोल को पकड़ कर खड़ा था। मैट्रा के रूकने या चलते समय के झटकों से बगल में खड़ी महिला से टकरा न जाऊँ, यह भय भी लगातार बना हुआ था। बचपन से ही कई बार ऐसी घटनाओं या दुर्घटनाओं का सामना करना पड़ा है, जिनके कारण अपरिचित महिलाओं की निकटता से भी भय लगने लगता है। थकान के रहते हुए भी, खड़े होने में भी अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ रही थी। नजरे बार-बार आगे पीछे सीटों पर बैठे यात्रियों की ओर ही देख रही थीं। कोई अगले स्टेशन पर उतरे तो बैठने को स्थान मिले।
आगे महिलाओं के लिए आरक्षित सीट थीं। उन्हीं में से एक पर एक भद्र महिला लगभग पचास के आसपास तो रही ही होंगी। उनकी नजर, मेरी नजरों से टकराईं। उन्होंने मेरी नजरों में सीट की खोज को समझ लिया और अनपेक्षित रूप से अपनी सीट की ओर संकेत करके, उठने का उपक्रम करते हुए पूछा बैठना है? महिला सीट पर महिला बैठी हुई है, उसके द्वारा सीट का प्रस्ताव किया जाना निःसन्देह आश्चर्यजनक था। मस्तिष्क में कल्पना भी नहीं थी। अभी तक महिलाओं को अक्सर महिला होने के फायदे उठाते ही देखा था। महिला होने के नाते कार्यस्थल पर कार्य से बचने के प्रयास या अतिरिक्त सुविधा की माँग करते हुए ही महिलाओं को अक्सर देखा जाता है। महिला के द्वारा अपनी आरक्षित सुविधा को छोड़कर एक अपरिचित पुरूष के लिए प्रस्ताव करने का कार्य महिला में मानवता के भाव का सुंदर प्रदर्शन था, जिसे विनम्रता व सम्मान प्रकट करते हुए अस्वीकार कर दिया।
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