बुधवार, 23 मई 2012

क्या वह निर्णय सही था? - प्रथम भाग


क्या वह निर्णय सही था?- प्रथम भाग

`मैंने निर्णयन व निर्णय प्रक्रिया´ आलेख में लिखा था, सामान्य व्यक्ति निर्णय प्रक्रिया का पालन नहीं करता और वह सहज बोध के आधार पर भावना में आकर तुरंत निर्णय कर लेता है जबकि प्रबंधक निर्णयन प्रक्रिया का पालन करके निर्णय लेता है, सामान्य व्यक्ति व प्रबंधक में यही अंतर होता है। इस सन्दर्भ में सामान्य व्यक्ति के रूप में विद्यार्थी जीवन में भावुक होकर एक निर्णय लिया था कि मैं न तो अपनी शादी में दहेज लूँगा और न ही ऐसी शादी में जाऊँगा जिसमें दहेज का लेन-देन किया जा रहा हो।
           संपूर्ण प्रकरण कुछ इस प्रकार था-
लगभग 1989-90 या 1990-91 सत्र की बात है। मैं और मेरे एक साथी श्री विजय सारस्वत दोनों ही ट्यूशन पढ़कर वापस लौट रहे थे। हम लोग दहेज के खिलाफ चर्चा कर रहे थे। मथुरा में जमुना तट से होकर रास्ता था। जब मेरे मित्र दहेज के खिलाफ कुछ अधिक ही भावुक हो रहे थे, मैंने उनका हाथ पकड़ा और उन्हें नीचे जमुनाजी के घाट पर ले गया। मैंने उनके हाथ में जमुना जल देकर कहा, `बहुत बड़ी बातें बनाने की जरूरत नहीं है। हम अपने आप से शुरूआत करेंगे। संकल्प करो कि अपनी शादी में किसी भी प्रकार से दहेज नहीं लेंगे और न ही ऐसी किसी शादी में भाग लेंगे जिसमें दहेज का लेन-देन किया जाना हो।´ 
        मैंने विजयजी को संकल्प दिलाया किन्तु उन्हें इसका ख्याल भी न रहा कि वे मुझे भी ऐसा ही संकल्प कराते किन्तु चूँकि मैंने उन्हें संकल्प कराया था। अत: यह संकल्प मेरे पर भी समान रूप से लागू था।
        परिणाम यह रहा कि मैं आज तक किसी शादी में सम्मिलित नहीं हो पाया। यहाँ तक कि घनिष्ठ मित्र श्री विजय सारस्वत जी की शादी में भी नहीं। अपने भाई और बहनों की शादी में भी नहीं। 
        आज जबकि मैं प्रबंधन के अन्तर्गत निर्णयन व निर्णयन प्रक्रिया की चर्चा कर रहा हूँ कि मेरा वह निर्णय एक सामान्य आदमी का निर्णय था और उससे मेरे सिवा कोई प्रभावित भी नहीं हुआ। आज मेरा विचार बन रहा है कि निर्णयन प्रक्रिया के अन्तिम घटक `निर्णय का पुनरावलोकन कर सुधारात्मक कार्यवाही करना´ के अन्तर्गत अपने भावुकता में सामान्य आदमी की हैसियत से लिए गये उस निर्णय को निर्णयन प्रक्रिया की कसौटी पर कसूँ और यदि वह ठीक नहीं था तो उसको बदल दूँ। क्योंकि जिद पूर्वक बिना किसी औचित्य के भीष्म की तरह किसी संकल्प पर टिके रहने की गुंजाइश प्रबंध सिद्धांतों में नहीं है। अगले आलेख में इस निर्णय को निर्णयन प्रक्रिया की कसौटी पर कसेंगे। 

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