रविवार, 29 जून 2025

उत्तर प्रदेश में प्राथमिक विद्यालयों के छात्र संख्या के आधार पर मर्जर नीति पर एक प्राथमिक अध्यापक के उद्गार

 क्या होगा 

अगर गांव के प्राथमिक विद्यालय बंद हो जाएंगे ?  

                                         जितेन्द्र कुमार गौड़

मैं पिछले 5 वर्ष से एक गांव के प्राथमिक विद्यालय में अध्यापन का कार्य कर रहा हूं इन 5 वर्षों में मैंने एक बड़ा अनुभव किया है कि गांव का विद्यालय सिर्फ नौनिहालों की शिक्षा का केंद्र ना होकर एक ऐसा जीवंत स्थान होता है जो पूरे गांव को एक सजीव ऊर्जा से सदैव भरा हुआ रखता है ।

    आप किसी भी दिन गांव में जाइए स्कूल ही एकमात्र ऐसा स्थान मिलेगा जहां आपको रौनक,उत्साह,अनुशासन और जीवन देखने को मिलेगा गांव का विद्यालय नौनिहालों की शिक्षा का केंद्र ना होकर सामाजिक, सांस्कृतिक चेतना का भी केंद्र बिंदु होता है यही एकमात्र वह जगह होती है जहां पर शासन,प्रशासन से लेकर विभागीय बैठक होती हैं। स्वास्थ्य के टीकाकरण से लेकर स्वच्छता अभियान,मतदाता रैली तक इसी गांव के विद्यालय में संभव हो पाती हैं ।

    यह गांव का स्कूल ही होता है जहां माता-पिता अपने बच्चों को भेज कर निश्चिंत होकर अपने कार्यों को करते हैं क्योंकि उन्हें विद्यालय पर भरोसा होता है कि वहां उनके बच्चे पढ़ ही नहीं रहे बल्कि सुरक्षित भी हैं गणतंत्र दिवस हो या स्वतंत्रता दिवस, पर जो प्रभात फेरी गांव में निकलती है और उसमें जो नारे लगाए जाते हैं वह देशभक्ति के साथ-साथ स्वच्छता, समानता और शिक्षा की ज्योति जलाते हैं ।

    दूसरा पहलू यह भी है कि आज भी गांव में ऐसे बहुत से गरीब परिवार हैं जो अपने बच्चों को निजी विद्यालयों में पढ़ाने में असमर्थ हैं। निजी विद्यालयों की फीस व किताबों का खर्चा इतना हो जाता है जिसे वो वहन करना हर किसी के वश की बात नहीं है। मैं जिस गांव में अध्यापन का कार्य करता हूं , उस गांव में अकसर अभिभावकों से मिलने जाता रहता हूं तो मैने ऐसे बहुत से परिवार देखे हैं जिनके पास रहने के लिए घर तक नहीं है । वे बड़ी मुश्किल से जीवन का गुजारा कर रहे हैं । उनकी स्थिति इतनी दयनीय है कि वो अपने बच्चों को पौष्टिक आहार तक नहीं दे सकते । वो किस प्रकार से अपने बच्चों को निजी विद्यालय में पढ़ा सकते हैं । उनके बच्चों को पौष्टिक आहार भी विद्यालय मध्याह्न योजना से ही मिलता है । इस योजना के तहत स्कूल के सभी बच्चों को प्रत्येक दिन मध्यांतर में पौष्टिक आहार दिया जाता है , जिससे गरीब बच्चों का स्वास्थ्य भी ठीक रहता है । इस मिड डे मील योजना का एक लाभ ये भी है कि इससे बच्चे रोजाना विद्यालय आते हैं , इसके अतिरिक्त डीबीटी के माध्यम से प्रत्येक बच्चे को स्कूल यूनिफॉर्म, बैग आदि के लिए भी पैसा आता है जिससे , गरीब अभिभावकों को भी काफी सहूलियत मिलती है और उन्हें बच्चों की यूनिफॉर्म बगैरा के लिए ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है । 

    कई गांवों में प्राथमिक विद्यालय के साथ साथ आंगनबाड़ी भी संचालित होती हैं जिसमें 3 से 6 वर्ष तक के बच्चों को बाल वाटिका के तहत शिक्षा दी जाती है , शिक्षा के साथ साथ उनके आहार का भी ध्यान रखा जाता है । स्कूल मर्ज होने से कई नुकसान देखने के लिए मिलेंगे गरीब बच्चे तो शिक्षित होंगे नहीं साथ ही साथ स्कूल बंद होने से स्कूल में काम कर रही रसोइयों की भी सेवा समाप्त हो जाएगी ,जिससे उनकी जीविका पर भी संकट आ जाएगा । नौकरी बड़ी हो या छोटी , जिसकी जाती है न उसका पूरा परिवार इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता । बच्चों से श्रम कराना अपराध है लेकिन जब गरीब मां बाप अपने बच्चों को पढ़ा ही नहीं पाएंगे तो उनसे श्रम करवाएंगे जिससे बाल श्रम को बढ़ावा मिलेगा और हमें नई पौधों के हाथों में किताबों की बजाय औजार देखने के लिए मिलेंगे । और जब बच्चे ही शिक्षित नहीं होंगे तो समाज किस दिशा में जाएगा , ये सोचने का विषय है ।सबसे बड़ा नुकसान बालिकाओं की शिक्षा पर होगा क्योंकि अभिभावक अपनी बेटियों को एक गांव से दूसरे गांव तो भेजेंगे नहीं इससे बालिकाओं की शिक्षा पर बहुत बुरा असर पड़ेगा और सरकार का वह नारा बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ धरा का धरा रह जाएगा ।

    कम नामांकन को लेकर विद्यालय मर्ज किए जा रहे हैं। कम नामांकन कभी भी स्कूल की उपयोगिता का मापदंड नहीं हो सकता । विद्यालय केवल एक भवन नहीं है वह गांव की पहचान है और मर्ज होने से या पहचान छीन ली जाएगी। शिक्षा नीति का उद्देश्य विद्यालयों को गिनती में समेटना नहीं होता है  वरन् हर बच्चे तक शिक्षा का अधिकार पहुंचाना है । मैं यह नहीं कह रहा की सुधार मत करो मैं यह कह रहा हूं कि सुधार वहां करो जहां जरूरत है गांव से उनके विद्यालय मत छीनो नहीं तो आने वाले वर्षों में गांव तो रहेंगे लेकिन उनकी आत्मा नहीं रहेगी ।

    गांव का स्कूल सिर्फ एक संस्था नहीं है वह शिक्षा के साथ-साथ भरोसे और उम्मीद का प्रतीक है इसी प्रतीक को बचाना हमारे साथ-साथ सरकार की भी जिम्मेदारी है इस प्रतीक को बंद मत करो नहीं तो गांव के भविष्य के साथ-साथ विद्यार्थियों के भविष्य की खिड़की भी बंद हो जाएगी ।