सोमवार, 20 अप्रैल 2015

जश्न का मूल प्रसन्नता में हैः


किसी भी जश्न का मूल उपलब्धियों को लेकर अपनी प्रसन्नता जाहिर करना और अपने मित्र जनों को उस प्रसन्नता में सहभागी बनाना है। प्रसन्न रहना व प्रसन्न रखना व्यक्ति, परिवार व समाज सभी का ध्येय रहता है। निम्नलिखित संस्कृत के श्लोक में भी प्रसन्न रहने के महत्व को स्पष्ट किया है-

प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते।।

अर्थात प्रसन्न रहने से सम्पूर्ण दुखों को दूर करने में सहायता मिलती है। मन प्रसन्न होने से मानसिक तनाव नहीं होता और बुद्धि भी स्थिर (स्थिरप्रज्ञ) रहती है जिससे प्रज्ञापराध नहीं हो पाते।
इस प्रकार अपने प्रयासों की सफलता पर प्रसन्नता का अनुभव करना और जश्न मनाकर उसमें अपने संबन्धियों को ही नहीं प्रतिस्पर्धियों को भी सम्मिलित करना अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होता है।

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