रविवार, 9 फ़रवरी 2014

शिक्षा में प्रबन्धन-५

सभी के लिए गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए औपचारिक शिक्षा संस्थान पर्याप्त नहीं हैं। हमें व्यक्ति के जीवन के सभी कार्यस्थलों को विद्यालय के अन्तर्गत लाना होगा। शिक्षा प्रबंधन इस प्रकार से करना होगा कि शयन कक्ष, रसोईघर, भोजन कक्ष, रेलवे स्टेशन, दुकान, कार्यालय, उत्पादन स्थल, यात्री गृह, विश्राम स्थल आदि सभी स्थान सीखने के स्थल बन जायँ। शिक्षा का प्रबंधन करते समय पढ़ाने पर नहीं; सीखने पर बल दिए जाने की आवश्यकता है। शैक्षिक प्रबंधकों को समझने की आवश्यकता है कि सीखने का दर्शन ‘‘गवेषणा, अन्वेषण तथा निरन्तर प्रयास है’’ जिसका अर्थ कम खर्च और अधिक लाभ के सिद्धान्त पर चलकर व्यक्ति व समाज के हित में शैक्षिक व अन्य समस्याओं को सुलझाना है। यह कार्य करने के लिए इवान इलिच का स्कूल रहित समाज (डिस्कूलिंग) तथा फ्रीरे की संवाद शिक्षा व्यवस्था मार्गदर्शन का कार्य कर सकती है। इलिच के अनुसार शिक्षा-सन्दर्भ-खोज सेवा (रेफरेन्स सर्विस) का विस्तार आवश्यक है।
               उपरोक्त प्रस्तुतीकरण के पश्चात् यह स्पष्ट हो जाता है कि सभी के लिए शिक्षा सुनिश्चित करनी है तो शिक्षा को दान की वस्तु से मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित करना होगा। पढ़ाने की जगह सीखने के दर्शन की आवश्यकता है, शिक्षक को उपदेशक की जगह कुशल प्रबंधक बनने की आवश्यकता है। शिक्षक को गुरू गोविन्द की अवधारणा से बाहर निकलना होगा। शिक्षक को स्वयं के कर्तव्यों पर, अपने समर्पण पर भी विचार कर लेना चाहिए। सांख्यिकी का स्थापित तथ्य है- ‘‘परिमाणात्मकता व गुणात्मकता में नकारात्मक सहसम्बन्ध होता हैै।’’ अतः अधिक शिक्षा संस्थाओं की स्थापना की माँग के साथ गुणवत्ता सुनिश्चित करने पर भी ध्यान दिया जाना अत्यन्त आवश्यक है। अन्यथा विद्यालय भ्रष्टाचारी व अपराधियों का ही निर्माण करेंगे और कड़े से कड़े कानून भी समाज को भ्रष्टाचार व अपराध से मुक्त नहीं कर सकेंगे।
               अधिक शिक्षण संस्थानों की स्थापना की अपेक्षा मानव आवास व कार्यस्थल को ही अधिगम स्थल(सीखने के स्थान) के रूप में परिणत करने की आवश्यकता है और इसके लिए शिक्षा में पर्याप्त संसाधनों का आबंटन, नवीनतम तकनीकी के प्रयोग, निरंतर प्रयास व कुशल प्रबंधन की आवश्यकता है। प्रबंधन की तकनीकों (नियोजन, संगठन, कर्मचारीकरण, निर्देशन व नियंत्रण) का शिक्षा में प्रयोग करना अत्यन्त आवश्यक है। शिक्षकों व शैक्षिक प्रशासकों के लिए प्रबंधन की शिक्षा अनिवार्य किए जाने की आवश्यकता है। शिक्षा के व्यवसायीकरण की नहीं, व्यवसाय के शैक्षिकीकरण की आवश्यकता है। शिक्षा व व्यवसाय दोनों का प्रबंधन साथ-साथ किए जाने की आवश्यक है। शिक्षा के प्रबंधन का केन्द्र सरकार, राज्य सरकार व स्थानीय सरकार का ही उत्तरदायित्व नहीं, उद्योग, समाज व प्रत्येक नागरिक का उत्तरदायित्व ही नहीं अधिकार भी है। 


सन्दर्भ सूची:-
1-http://hi.wikipedia.org/wiki/fo”o,
2.hi.wikipedia.org/wiki/Hkkjr     
3-http://www.thehindu.com/news/national/out-of-school-children-and-dropout-a-
4.http://www.census2011.co.in/census/state/jammu+and+kashmir.html
5. शिक्षा के नूतन आयाम, सम्पादक- डॉ.लक्ष्मीलाल के. ओड़/अनौपचारिक शिक्षा- राजेन्द्रपाल सिंह,
 द्वारकानाथ खोसला व नीरजा शुक्ला
6. Comparative Education,M.Ed., MES-055  Block 4, IGNOU
7.भारतीय संविधान के शैक्षिक व भाषिक अनुच्छेदों में हुए संशोधनों का समालोचनात्मक अध्ययन’
(शोध प्रबंध)-डॉ. संतोष कुमार गौड़
ई-मेलः santoshgaurrashtrapremi@gmail.com
वेब ठिकाना www.rashtrapremi.com]www.rashtrapremi.in चलवार्ता 09996388169
जवाहर नवोदय विद्यालय, खुंगा-कोठी, जीन्द-126110 हरियाणा

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