रविवार, 30 दिसंबर 2018

समय प्रबंधन-2

वर्तमान समय में हम किसी से बातचीत में सामान्यतः पहला या दूसरा प्रश्न यह करते हैं, ‘और भाई! क्या हो रहा है?’ इस प्रश्न का उत्तर भी बड़ा ही सामान्य होता है, ‘कुछ नहीं ऐसे ही टाइमपास हो रहा है।’ यह अधिकांश व्यक्तियों के बीच के वार्तालाप का भाग रहता है। यही यह निर्धारित करता है कि व्यक्ति समय की बर्बादी कर रहा है या समय का निवेश कर रहा है। जब व्यक्ति यह कहता है कि वह कुछ नहीं कर  रहा है। तब यह स्पष्ट है कि वह सबसे अमूल्य दुर्लभ संसाधन समय को बर्बाद कर रहा है। क्योंकि समय का संचय तो संभव नहीं है। यदि आप समय का सदुपयोग नहीं कर रहे हो तो उसे बर्बाद ही कर रहे हो। इसके अतिरिक्त समय के सन्दर्भ में अन्य कोई विकल्प तो उपलब्ध ही नहीं है। बैंजेमिन फ्रेंकलिन के अनुसार, ‘सामान्य व्यक्ति समय को काटने के बारे में सोचता है और महान व्यक्ति सोचते हैं समय का उपयोग करने के बारे में।‘
                आओ हम समय प्रबंधन अर्थात् टाइम मैनेजमेण्ट शब्द के शाब्दिक अर्थ पर विचार करते हुए आगे बढ़ें। समय प्रबंधन समय और प्रबंधन दो शब्दों के मेल से बना है। इसको पूरी तरह समझने के लिए इन दोनों ही शब्दों पर अलग-अलग विचार कर लेना अधिक उपयोगी रहेगा।
                  समय बड़ा ही चर्चित शब्द है। विकीपीडिया के अनुसार, ‘समय एक भौतिक राशि है। जब समय बीतता है, तब घटनाएँ घटित होती हैं तथा चलबिंदु स्थानान्तरित होते हैं। इसलिए दो लगातार घटनाओं के होने अथवा किसी गतिशील एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक जाने के अंतराल को समय कहते हैं। समय नापने के यंत्र को घड़ी अथवा घटीयंत्र कहा जाता है।’
                   हमारी समस्त गतिविधियाँ समय के बारे में चर्चा करते हुए ही बीतती हैं? कई बार हम कहते हैं बड़ा मुश्किल समय है, खैर कोई बात नहीं, धैर्य रखो ये भी निकल जायेगा। कोई कहता है, उसके तो दिन फिर गये। कोई-कोई तो जमाना खराब है कहकर वर्तमान को ही कोसने लगता है। विभिन्न समयों में समय के विभाजन के भी अलग-अलग तरीके रहे है। समय को क्षण, घड़ी, पल, सेकिण्ड, मिनट, घण्टे आदि में ही नहीं, इसे पहरों में भी बांटा जाता रहा है। समय की अनेक इकाई प्रचलित हैं। भाषा अध्यापक समय को भूत, वर्तमान व भविष्य काल कहकर पढ़ाते हैं। सामान्यतः अपने कर्म की कमी को भी समय के गले मढ़ दिया जाता है। बुरा समय व अच्छा समय कहकर अपनी कठिनाइयों को भी समय से जोड़ दिया जाता है। कुल मिलाकर समय की बात सभी करते हैं किंतु समय को बांधना किसी के वश की बात नहीं है। अब इतने महत्वपूर्ण तत्व की सर्वस्वीकृत परिभाषा देना भी अपने वश की बात नहीं है। समय को आदि और अन्त में नहीं बांधा जा सकता तो इसको परिभाषा में कौन बांध सकता है?
                    समय की परिभाषा करना इस पुस्तक के लिए आवश्यक भी नहीं है। यहाँ पर समय को एक संसाधन के रूप में देख सकते हैं। समय को व्यक्ति और वस्तु दोनों के सन्दर्भ में देखा जा सकता है। व्यक्ति और वस्तु दोनों का ही उपयोगी जीवन काल होता है। उपयोगी जीवन काल के पश्चात् वस्तु का निस्तारण कर दिया जाता है। व्यक्ति के जीवन काल के बाद व्यक्ति के शरीर का भी विभिन्न समुदायों में विभिन्न प्रकार से निस्तारण किया जाता है जिस सम्मानित शब्द अन्तिम संस्कार के नाम से जाना जाता है।

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