शनिवार, 2 मई 2015

जश्न मनायें, किंतु रूकें नहीं!


हमें अपने कार्य करने के सामान्य प्रक्रम में दिन-प्रतिदिन अनेकों सफलता मिलतीं हैं, किन्तु हम गलती यह करते हैं कि हम सफलता को सफलता के रूप में स्वीकार नहीं करते या किसी सफलता के जश्न में डूब जाते हैं और अपने अगले कदम को भुलाकर किसी अवसर को गवाँ देते हैं। दिन-प्रतिदिन किए जाने वाले प्रयासों से हम कदम-कदम पर सफलता प्राप्त करते ही हैं। हमें इन सफलताओं की अनुभूति करते हुए इन पर जश्न मनाते हुए अपनी विकास यात्रा के अगले पड़ाव की यात्रा संपन्न करनी है। हमें प्रत्येक सफलता को स्वीकार कर उस पर जश्न मनाते हुए अगली सफलता की कहानी की रूप रेखा तैयार करनी चाहिए। ध्यान रखने की बात यह है कि सफलता का जश्न नशे में परिवर्तित नहीं होना चाहिए कि हम अपने कर्तव्य पथ से भी भटक जायँ। आइंस्टाइन के अनुसार, ‘‘खुश व्यक्ति अपने वर्तमान से इतना संतुष्ट होता है कि वह भविष्य के बारे में ज्यादा नहीं सोच सकता।’’ अर्थात अधिक प्रसन्नता भी भविष्य की योजनाओं से विमुख कर सकती है। 
सामान्यतः लोग जश्न को आराम व आनंद का प्रतीक मानते हैं। आराम करो ! आराम करो ! आराम करो !  कार्य करते समय आराम करना सीखिये। मेरा आग्रह है कि आप काम करते समय ही जश्न मनाना सीखिए। जब हम रोचक और उत्साह से ओतप्रोत होकर कार्य करते हैं तो कभी नहीं थकते और कार्य करने में ही जश्न के आनंद की अनुभूति होने लगती है। जश्न हमें आगे बढ़ने के लिए अभिप्रेरित करे, न कि अवकाश लेकर समय बर्बाद करने का काम करे। हमें काम से अलग होकर जश्न मनाने की मनोवृत्ति को त्याग कर काम करके जश्न मनाने की शुरूआत करने की नवीन परंपरा डालनी होगी। हमें प्रत्येक उपलब्धि को स्वीकार कर उसका जश्न मनाना चाहिए किंतु कभी भी अपनी सफलता की यात्रा में रूकें नहीं।

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