गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

उपलब्धियों को स्वीकार करें!


जो उपलब्धि हमें हासिल हुई है। उसके स्वागत के लिए सबसे पहले आवश्यक है कि हम उसे स्वीकार करें। कई बार देखने में आता है कि हम अपनी उपलब्धियों को स्वीकार ही नहीं करते या उन्हें कमतर आँकते हैं। अरे! भाई आप ही अपनी उपलब्ध्यिों को स्वीकार नहीं करेंगे तो आपकी उपलब्धियों को और कौन स्वीकार करेगा? जश्न मनाना वास्तव में उपलब्धियों को स्वीकार करना है। उपलब्धियाँ हमें और अधिक उपलब्धियाँ हासिल करने को अभिप्रेरित करती हैं। अतः हमें अपनी प्रत्येक उपलब्धि को स्वीकार करना चाहिए। हमें जश्न मनाने के लिए बड़ी-बड़ी उपलब्धियों की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। यदि हम बड़ी उपलब्धियों की प्रतीक्षा ही करते रहे तो शायद कभी जश्न मनाने का अवसर ही न मिल पाये। 


          किसी विद्यार्थी को जश्न मनाने के लिए परीक्षाफल आने की तिथि की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता ही नहीं है। वस्तुतः परीक्षा पास करना कोई उपलब्धि नहीं है। उपलब्धि तो ज्ञान प्राप्त करना है। परीक्षा तो प्राप्त ज्ञान की किसी संस्था द्वारा मान्यता मात्र है। अतः जब विद्यार्थी किसी विशेष विषय में किसी समस्या को समझकर उसका समाधान करने में सफल हो जाता है तो यह उसकी उपलब्धि है और इस पर उसे जश्न मनाने का पूरा-पूरा अधिकार है। हाँ! यह अलग बात है कि वह अपनी इस उपलब्धि को अपनी माँ के साथ बाँटकर और माँ के हाथ से एक गिलास दूध का पीकर कुछ क्षणों के लिए जश्न का आनंद उठाये और अपनी इस उपलब्धि से अभिप्रेरित होकर अगली समस्या को समझने के प्रयास करना आरंभ कर दे। आपका मित्र आपसे नाराज है और आप उसे मनाने का प्रयास कर रहे हैं, आपके प्रयास सफल हुए और आप अपने मित्र की नाराजी को दूर कर लेते हैं तो आपकी महत्वपूर्ण उपलब्धि है और आप अपने मित्र के साथ इस सफलता पर जश्न मनाएँ और अपनी मित्रता को और भी अधिक घनिष्ट बनायें।


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