शनिवार, 18 अप्रैल 2015

सफलता को स्वीकार करें-

जश्न मनायें


भारत में ‘सात वार नौ त्यौहार’ की कहावत प्रचलित है। इसका आशय है कि भारत उत्सवप्रिय देश है। हमारे यहाँ सप्ताह में सात दिन होते हैं तो नौ त्योहार देखने को मिलेंगे। कहने का आशय यह है कि हमें उत्सव मनाने में विशेष आनन्द की अनुभूति होती है। हमारे यहाँ जन्म उत्सव का अवसर है तो मरण का भी उत्सव मनाया जाता है। जमीन खरीदना, मकान बनबाना ही नहीं घर के लिए किसी नवीन वस्तु का क्रय करना भी प्रसन्नता का अवसर माना जाता है और लोग आपसे पार्टी माँगना प्रारंभ कर देते हैं। आपने परीक्षा पास की है तो मिठाई बाँटने का अवसर है, तो घर में किसी मेहमान के आने का अवसर भी पकवान बनाने का सबब बनता है। इस प्रकार जश्न मनाना हमें अपनी उपलब्धियों की अनुभूति कराता है तो दूसरी ओर अपने सुखों में दूसरों को सम्मिलित करने का अवसर भी मिलता है। यही नहीं दूसरों की नजर में अपने को ऊँचा दिखाने का इससे अच्छा अवसर और कौन सा मिलेगा? अपने अहं की संतुष्टि भी जश्न मनाकर अपनी उपलब्धियों के बारे में अपने निकट संबन्धियों को ही नहीं दूरस्थ परिचितों को भी सूचित करके मिलती है।
हम उत्सव मनाने का अवसर ही तलाशते रहते हैं। इस उत्सवप्रियता ने प्राचीन काल में बहुत से परिवारों को आर्थिक रूप से बर्बाद भी किया है। हाँ, एक बात अवश्य है कि उत्सव मनाकर हम अपने कष्टकर जीवन में कुछ क्षणों के लिए बनावटी सुख की अनुभूति कर सकते हैं। वास्तविक सुख तो काम करते हुए उपलब्धियाँ हासिल करके जश्न मनाने में है अर्थात उत्सव मनाने के लिए अपने काम से अलग होने या दूसरों को काम से अलग करने में किसी भी प्रकार की समझदारी नहीं है। जीवन को निरर्थक आयोजनों या अवकाशों में बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है। निरंतर सफलता के लिए अपने कार्य पर ही जश्न मनाने का आनंद उठाने की प्रवृत्ति का विकास कीजिए।

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