बुधवार, 29 अप्रैल 2015

जश्न मनाएँ! जश्न के नशे में डूबें नहीं


जी हाँ! मानव एक सामाजिक प्राणी है। अपने सुःख -दुखों को वह अपने परिवार व मित्र गणों के साथ बाँटकर अपने आपको हल्का महसूस करता है। निःसन्देह जिस प्रकार काम करने के लिए विश्राम व मनोरंजन करके तरोताजा होना आवश्यक है, ठीक उसी प्रकार से अपनी उपलब्धियों के बारे में जानकारी देने के लिए अल्पकालिक जश्न मनाना भी न केवल अपने आपको बल्कि दूसरों को भी अभिप्रेरित करता है। हम मशीन तो हैं नहीं कि बिना भावनाओं के अपने कार्य में लगे रहें। अपने कार्य की प्रशंसा प्राप्त करके हमें जिस आनंद की अनुभूति होती है, वह सुस्वाद भोजन करने से भी नहीं होती।

        कार्य की स्वीकृति हमें अभिप्रेरित करती है। अभिप्रेरणा काम करने की आन्तरिक शक्ति को जगाती है। अतः अपनी उपलब्धियों पर आनन्द मनाना दूसरों को अपने आनंद में सहभागी बनाना व्यक्ति की मानसिक स्थिरता, संतुलन व समाज की स्थिरता के लिए आवश्यक है। हमें अपनी छोटी-बड़ी सभी उपलब्धियों पर आनंद की अनुभूति होती है और होनी भी चाहिए। अपनी इस अनुभूति को बाँटकर हम अपने परिवारीजनों को भी आनंदित कर देते हैं। यही नहीं हम अपने आसपास के वातावरण को सुखद व प्रतिस्पर्धी बनाकर दूसरों को भी सफलता की ओर कदम बढ़ाने को अभिप्रेरित करने में भी सफल होते हैं। यह आवश्यक भी है किंतु सफलता का जश्न इतना अधिक न हो जाय कि हम आगे की सीढ़ी पर चढ़ना ही भूल जायँ। हमें अपनी प्रत्येक उपलब्धि का जश्म मनाना ही चाहिए किंतु ध्यान रहे- जश्न मनायें; उसके नशे में डूबे नहीं। अभी जीवन यात्रा में बहुत सी सफलताएँ शेष हैं।

गुरुवार, 23 अप्रैल 2015

उपलब्धियों को स्वीकार करें!


जो उपलब्धि हमें हासिल हुई है। उसके स्वागत के लिए सबसे पहले आवश्यक है कि हम उसे स्वीकार करें। कई बार देखने में आता है कि हम अपनी उपलब्धियों को स्वीकार ही नहीं करते या उन्हें कमतर आँकते हैं। अरे! भाई आप ही अपनी उपलब्ध्यिों को स्वीकार नहीं करेंगे तो आपकी उपलब्धियों को और कौन स्वीकार करेगा? जश्न मनाना वास्तव में उपलब्धियों को स्वीकार करना है। उपलब्धियाँ हमें और अधिक उपलब्धियाँ हासिल करने को अभिप्रेरित करती हैं। अतः हमें अपनी प्रत्येक उपलब्धि को स्वीकार करना चाहिए। हमें जश्न मनाने के लिए बड़ी-बड़ी उपलब्धियों की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता नहीं है। यदि हम बड़ी उपलब्धियों की प्रतीक्षा ही करते रहे तो शायद कभी जश्न मनाने का अवसर ही न मिल पाये। 


          किसी विद्यार्थी को जश्न मनाने के लिए परीक्षाफल आने की तिथि की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता ही नहीं है। वस्तुतः परीक्षा पास करना कोई उपलब्धि नहीं है। उपलब्धि तो ज्ञान प्राप्त करना है। परीक्षा तो प्राप्त ज्ञान की किसी संस्था द्वारा मान्यता मात्र है। अतः जब विद्यार्थी किसी विशेष विषय में किसी समस्या को समझकर उसका समाधान करने में सफल हो जाता है तो यह उसकी उपलब्धि है और इस पर उसे जश्न मनाने का पूरा-पूरा अधिकार है। हाँ! यह अलग बात है कि वह अपनी इस उपलब्धि को अपनी माँ के साथ बाँटकर और माँ के हाथ से एक गिलास दूध का पीकर कुछ क्षणों के लिए जश्न का आनंद उठाये और अपनी इस उपलब्धि से अभिप्रेरित होकर अगली समस्या को समझने के प्रयास करना आरंभ कर दे। आपका मित्र आपसे नाराज है और आप उसे मनाने का प्रयास कर रहे हैं, आपके प्रयास सफल हुए और आप अपने मित्र की नाराजी को दूर कर लेते हैं तो आपकी महत्वपूर्ण उपलब्धि है और आप अपने मित्र के साथ इस सफलता पर जश्न मनाएँ और अपनी मित्रता को और भी अधिक घनिष्ट बनायें।


बुधवार, 22 अप्रैल 2015

जश्न मनाते हुए अपनी अगली योजना में जुट जाइये ना

जश्न मनाने के अवसर: 


आप रात को यह तय करके सोते हैं कि आप प्रातःकाल जल्दी उठेंगे और अपने कार्य निपटायेंगे। आप प्रातःकाल बिना किसी अलार्म के और बिना किसी के उठाये स्वयं उठ जाते हैं तो आपको सफलता मिली ना। आज की सबसे पहली सफलता। अब यह तो आपके ऊपर निर्भर है कि आप सफलता को स्वीकार करके प्रसन्नता की अनुभूति करें। आनन्द का उपभोग करें या यह सोचकर कि आपको कितना काम करना पड़ता है कि आप चैन से सो भी नहीं सकते। यह विचार करके अपने आप के लिए तनाव का सृजन करें। अरे भाई! दिन की पहली सफलता पर प्रसन्न होकर जश्न मनाते हुए अपनी अगली योजना में जुट जाइये ना। आपकी पहली सफलता अगली सफलता की अभिप्रेरक बन कर आपको आगे बढ़ने में मदद करेगी।
           आप रेलवे रिजर्वेशन के लिए कतार में खड़े हैं और अन्ततः आपने आरक्षण करा ही लिया। आपको कन्फर्म टिकट मिल गई। आपने सफलता प्राप्त की है और आपको इस सफलता के लिए आनन्दित होना ही चाहिए। इसी प्रकार दिनभर आप अनेकों सफलताएँ प्राप्त करते हैं फिर आप प्रत्येक सफलता पर आनन्दित क्यों नहीं होते?
आपको बस से यात्रा करनी है। आपको लग रहा है कि आपको बिलंब हो गया है बस मिलना मुश्किल है। आप शीघ्रता से बस अड्डे की ओर प्रस्थान करते हैं। आपके पहुँचने से पूर्व ही बस चल चुकी थी किंतु दौड़कर आप बस को पकड़ ही लेते हैं। आपको सफलता मिली ना! यही नहीं आपको अनपेक्षित रूप से बस में सीट भी मिल गई और वो भी खिड़की वाली। अब और क्या बाकी है आपको सफलता की अनुभूति करने में। सफलता की अनुभूति करने में कंजूसी क्यों? आप अपने सहयात्री को एक मुस्कान देकर अपने आनंद में सम्मिलित कर सकते हैं। आप और किसी के साथ अपनी प्रसन्नता को बाँट न सकें तो मन ही मन प्रसन्न तो हो ही सकते हैं। अपने चेहरे पर मुस्कराहट तो आने दीजिए। फिलहाल आपको तीन-तीन उपलब्धियाँ एक साथ मिली है, उनके आनंद को भावी आशंकाओं से प्रभावित मत होने दीजिए। 

           आपकी पत्नी ने बड़े चाव से खाना बनाया है और खाना स्वादिष्ट व पौष्टिक दोंनों ही कसौटियों पर खरा उतरता है; आपकी पत्नी बधाई की पात्र हैं, उन्हें बधाई दीजिए और उन्हें उनकी सफलता पर आनन्द का अनुभव करने दीजिए हो सके तो कुछ क्षणों के लिए ही सही उनके साथ उनकी सफलता के आनन्द में स्वयं जुड़ जाइये। यह तात्कालिक सफलता व उसकी अनुभूति आपके दांपत्य जीवन को सफलता की ओर ही अग्रसर करेगी। अपने प्रयासों की सफलता ही तो जीवन की सफलता की ओर ले जाती है। ये छोटी-छोटी सफलताएँ ही आपके द्वारा किये जाने वाले प्रयासों को ओर ताकत देंगी। आपको अभिप्रेरणा प्राप्त होगी और आपको अविरल कर्मरत रहने की आदत पड़ जायेगी। दूसरे शब्दों में आपको सफल होते रहने की आदत पड़ जायेगी।


सोमवार, 20 अप्रैल 2015

जश्न का मूल प्रसन्नता में हैः


किसी भी जश्न का मूल उपलब्धियों को लेकर अपनी प्रसन्नता जाहिर करना और अपने मित्र जनों को उस प्रसन्नता में सहभागी बनाना है। प्रसन्न रहना व प्रसन्न रखना व्यक्ति, परिवार व समाज सभी का ध्येय रहता है। निम्नलिखित संस्कृत के श्लोक में भी प्रसन्न रहने के महत्व को स्पष्ट किया है-

प्रसादे सर्वदुःखानां हानिरस्योपजायते।
प्रसन्नचेतसो ह्याशु बुद्धिः पर्यवतिष्ठते।।

अर्थात प्रसन्न रहने से सम्पूर्ण दुखों को दूर करने में सहायता मिलती है। मन प्रसन्न होने से मानसिक तनाव नहीं होता और बुद्धि भी स्थिर (स्थिरप्रज्ञ) रहती है जिससे प्रज्ञापराध नहीं हो पाते।
इस प्रकार अपने प्रयासों की सफलता पर प्रसन्नता का अनुभव करना और जश्न मनाकर उसमें अपने संबन्धियों को ही नहीं प्रतिस्पर्धियों को भी सम्मिलित करना अत्यन्त महत्वपूर्ण सिद्ध होता है।

शनिवार, 18 अप्रैल 2015

सफलता को स्वीकार करें-

जश्न मनायें


भारत में ‘सात वार नौ त्यौहार’ की कहावत प्रचलित है। इसका आशय है कि भारत उत्सवप्रिय देश है। हमारे यहाँ सप्ताह में सात दिन होते हैं तो नौ त्योहार देखने को मिलेंगे। कहने का आशय यह है कि हमें उत्सव मनाने में विशेष आनन्द की अनुभूति होती है। हमारे यहाँ जन्म उत्सव का अवसर है तो मरण का भी उत्सव मनाया जाता है। जमीन खरीदना, मकान बनबाना ही नहीं घर के लिए किसी नवीन वस्तु का क्रय करना भी प्रसन्नता का अवसर माना जाता है और लोग आपसे पार्टी माँगना प्रारंभ कर देते हैं। आपने परीक्षा पास की है तो मिठाई बाँटने का अवसर है, तो घर में किसी मेहमान के आने का अवसर भी पकवान बनाने का सबब बनता है। इस प्रकार जश्न मनाना हमें अपनी उपलब्धियों की अनुभूति कराता है तो दूसरी ओर अपने सुखों में दूसरों को सम्मिलित करने का अवसर भी मिलता है। यही नहीं दूसरों की नजर में अपने को ऊँचा दिखाने का इससे अच्छा अवसर और कौन सा मिलेगा? अपने अहं की संतुष्टि भी जश्न मनाकर अपनी उपलब्धियों के बारे में अपने निकट संबन्धियों को ही नहीं दूरस्थ परिचितों को भी सूचित करके मिलती है।
हम उत्सव मनाने का अवसर ही तलाशते रहते हैं। इस उत्सवप्रियता ने प्राचीन काल में बहुत से परिवारों को आर्थिक रूप से बर्बाद भी किया है। हाँ, एक बात अवश्य है कि उत्सव मनाकर हम अपने कष्टकर जीवन में कुछ क्षणों के लिए बनावटी सुख की अनुभूति कर सकते हैं। वास्तविक सुख तो काम करते हुए उपलब्धियाँ हासिल करके जश्न मनाने में है अर्थात उत्सव मनाने के लिए अपने काम से अलग होने या दूसरों को काम से अलग करने में किसी भी प्रकार की समझदारी नहीं है। जीवन को निरर्थक आयोजनों या अवकाशों में बर्बाद करने का कोई मतलब नहीं है। निरंतर सफलता के लिए अपने कार्य पर ही जश्न मनाने का आनंद उठाने की प्रवृत्ति का विकास कीजिए।

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2015

स्मार्ट प्रबंधक बन सफलता की राह

-ःमुस्कराहट सफलता को आमत्रित करती हैः-


फेसबुक पर निम्नलिखित पंक्तियां देखने को मिली आओ आप भी इन पंक्तियों को आत्मसात कीजिए। संसार में कितने ही दुख हों किंतु कोई भी व्यक्ति दुख पसंद तो नहीं करता। संसार में रोना भले ही पड़ता हो किंतु लोग रोना तो नहीं चाहते

मुस्कराते रहो तो दुनिया
आपके कदमों में होगी।
वरना आँसुओं को तो,
आँखें भी पास नहीं रखतीं।

       अतः हमें स्मरण रखना होगा कि तकनीक हमारी मुस्कराहट को या हमारे प्रियजनों की मुस्कराहट को न चुरा ले। हमारी खिलखिलाहट हमारे अच्छे स्वास्थ्य की निशानी तो है ही, अच्छे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक भी है। यही नहीं हमारी खिलखिलाहट हमारे प्रियजनों को भी आनन्दित करती है। स्मरण रखें किसी भी तकनीक का प्रयोग तभी तक करें, जब तक वह संबन्धों को घनिष्ठता प्रदान करे। तकनीक आपके संबन्धों में बाधक न बने।  
       हाँ! तकनीक आवश्यक है। तकनीक का प्रयोग अवश्य करें। हाँ यह स्मरण रखें कि तकनीक हमारा उपयोग न करने लगे। आखिर तकनीक हमारे लिए है, हम तकनीक के लिए नहीं। तकनीक जीवन को सुविधाजनक व आनन्दपूर्ण बनाने के लिए है; वह तनाव का कारण न बने इसका ख्याल हमें रखना होगा। इसके लिए उचित व आवश्यक तकनीक के चयन, प्रयोग व प्रबंधन के द्वारा हमें तकनीकी का स्मार्ट प्रयोग करना होगा। तकनीक के उचित प्रयोग से ही हम स्मार्ट प्रबंधक बन सफलता की राह पर निरंतर बढ़ सकेंगे।

गुरुवार, 16 अप्रैल 2015

छोटे-छोटे काम करके ही देश-दुनिया में बड़े बदलाव

कन्फ्यूशियस का जवाब

कन्फ्यूशियस के समय चीन बड़े उतार-चढ़ाव के दौर से गुजर रहा था।


 सभी के मन में अराजकता और रक्तपात फैलने का भय समाया हुआ


 था। सरकार का एक नुमाइंदा ऐसे माहोल में कन्फ्यूशियस को खोज 


रहा था। आखिर कार उसने  कन्फ्यूशियस को पा ही लिया। वे एक


 पेड़ के नीचे ध्यानमग्न बैठे थे। सरकारी प्रतिनिधि ने सम्मान सहित 


अभिवादन किया और उनके निकट बैठ गया। उसने बड़े ही अदब से


 निवेदन किया, ‘इस समय में हमें आपका मार्गदर्शन चाहिए। आप 


सरकार की सहायता करें, वरना यह देश बिखर जाएगा।’


कन्फ्यूशियस यह सुनकर कुछ बोले नहीं, सिर्फ मुस्करा दिए।


 वह व्यक्ति बोला, ‘आपने हमें सदैव कर्म करने की ही सीख दी है,


 आपने ही हमें देश और दुनिया के लिए हमारे कर्तव्यों के प्रति 


जागरूक किया है। आप देश को बचाने के लिए कुछ करें।



कन्फ्यूशियस ने कहा, ‘मैं देश के लिए प्रार्थना कर रहा हूँ। उसके


 बाद में मोहल्ले के व्यक्तियों की मदद करने जाऊँगा। अपने परिवेश से


 जुड़ा रहते हुए अपनी सीमाओं के भीतर काम करके ही हम सभी का 


हित कर सकते हैं। यदि हम दुनिया को बचाने के उपाय ही खोजते


 रहेंगे तो हमारे हाथ कुछ नहीं आयेगा। राजनीति से संबद्ध होने के 


बहुत से तरीके हैं, उसके लिए मुझे सरकार का अंग बनने की 


आवश्यकता नहीं है।’



    सन्देश- हम छोटे-छोटे काम करके ही देश-दुनिया में बड़े बदलाव 


ला सकते हैं, सिर्फ बड़ा सोचने से नहीं।



स्रोतः दैनिक जागरण सप्तरंग, पानीपत, दिनांक 15 अप्रेल 2015

मंगलवार, 14 अप्रैल 2015

उचित प्रयोग व्यक्ति की कुशलता के ऊपर निर्भर है

इस प्रकार स्पष्ट है कि तकनीक निश्चित रूप से आवश्यक व अनिवार्य है किन्तु उसका उचित प्रयोग व्यक्ति की कुशलता के ऊपर निर्भर है। हमें सदैव यह याद रखना चाहिए कि कोई भी तरीका किसी कार्य को करने के लिए प्रयुक्त किया जाता है। कार्य महत्वपूर्ण है तरीका नहीं, कल को इस तरीके से भी भिन्न तरीके की खोज कर ली जाय तो हम उस तरीके से काम करने लगेंगे। यही तो तकनीक का नवीनीकरण या अपडेशन है।
तकनीक अपने आप में एक उपकरण मात्र है। उसका प्रयोग तो प्रयोगकर्ता के ऊपर निर्भर होता है। यह ठीक उसी प्रकार है कि हमारे पास एक चाकू है। चाकू एक उपकरण है किंतु चाकू का उपयोग हमारे हाथ में है। हम चाहें तो उससे सब्जी काट सकते हैं। सर्जरी के काम में लेकर किसी की जान बचा सकते हैं। यदि हम चाहे तो चाकू का प्रयोग किसी की जान लेने में भी कर सकते हैं। अब उस चाकू का प्रयोग कैसे भी करें, प्राप्त परिणाम का श्रेय हमें ही मिलेगा, चाकू को नहीं। ठीक यही स्थिति तकनीक के इस्तेमाल में है। हमें ध्यान रखना होगा कि तकनीक हमें अपनों से दूर न कर दे। 
टेलीविजन व इन्टरनेट हमारे परिवार का स्थान नहीं ले सकते। हमें तकनीक का प्रयोग करना चाहिए किन्तु तकनीक के नशे में डूबने से बचना होगा। ऐसा न हो कि आप फेसबुक या ट्विटर पर लगे हों और आपकी पत्नी और बच्चे आपसे बातें करने के लिए तरश जायें। ऐसा न हो कि आप टेलीविजन देखते रहे और आपके परिवार का एक बुजुर्ग सदस्य पानी माँगता ही रह जायँ। ऐसा न हो कि आप टेलीविजन देखने में इतनी मशगूल हो जायँ कि काम से थके हारे आने वाले आपके पतिदेव आपकी मुस्काराहट भरे स्वागत से वंचित हो जायँ। तकनीकी के फेर में पड़ कर आप अपनी मुस्कराहट को मत भुला बैठिए। 

रविवार, 5 अप्रैल 2015

स्वचलन गीत

इस संबन्ध में ग्लेजर के स्वचलन गीत का हिन्दी अनुवाद दृष्टव्य है।

स्वचलन गीत
¼ Song of automation½



‘‘एक सोमवार की सुबह
मैं फैक्टरी देखने गया।
जब मैं वहाँ पहुँचा, 
वह निर्जन थी-बिल्कुल सुनसान।
न तो मुझे ‘जो’ मिला न ‘जैक’, 
न ही ‘जॉन’ न ‘जिम’,
मुझे कोई भी न दिखा-
कोई भी नहींः
हाँ, बटन, घंटिया व
(लाल,पीली,नीली,हरी) बत्तियाँ
जरूर पूरी फैक्टरी में थीं।

क्या-क्या था?-यह जानने के लिए
मैं फोरमैन के ऑफिस में
घूम-घूम कर चलता रहा।
उसके चेहरे पर सीधे देखकर
मैंने पूछा-‘‘क्या हो रहा है?’’
उत्तर जानते हैं क्या मिला?
उसकी आँखे लाल, हरी, नीली होती गयीं,
तब मुझे सहसा भान हुआ कि 
फोरमैन की कुर्सी पर रॉबोट बैठा था।
उस फैक्टरी में चारों तरफ चलता रहा-
ऊपर-नीचे, आर-पार
लोट-पोट कर मैंने वहाँ की
सभी बटनों, घंटियों और बत्तियों को देखा।
रहस्य जैसा लगा मुझे यह सब कुछ।
मैंने पुकारा-‘‘फ्रैंक, हैंक, आइस, माइक,
रॉय, राय, डॉन, डैन, बिल, फिल, फ्रैड, पीट।’’
जबाब में एक मशीन जैसी तेज आवाज आई-
‘‘ये सब तुम्हारे लोग पुराने हो चुके।’’

मैं सहम गया 
और चिंतित हो उठा,
जब फैक्टरी से निकला, मैं अस्वस्थ था।
मैंने कम्पनी के प्रेसीडेंट से मिलना चाहा;
उसके ऑफिस में पहुँचने पर देखा-
वह भौंहें चढ़ाए, मुँह बनाए
दरवाजे के बाहर दौड़ा चला आ रहा था, 
क्योंकि प्रेसीडेन्ट के स्थान पर 
मशीननुमा अधिकारी डटा था।

मैं घर चला आया,
जब पत्नी को,
हमेशा चाहने वाली पत्नी कोः
फैक्टरी के बारे में कह सुनाया,
प्रेम करती, चूमती वह रो उठी।
ये सब बटन औ’ बत्तियाँ
तो मैं नहीं समझता,
लेकिन इतना जरूर जानता हूँ-
प्यार आज भी पुराने तरीके से ही किया जाता है।’’

शुक्रवार, 3 अप्रैल 2015

तकनीक जीवन के लिये

तकनीक के पहलू पर शिक्षा में तकनीक के प्रयोग के महत्व को स्वीकार करते हुए भी हटचन चेतावनी देते हैं, ‘‘वास्तविक खतरा यह है कि हो सकता है शिक्षा की तकनीक स्वयं शिक्षा के तरीकों एवं उद्देश्यों का निर्धारण करने लगे।’’ हटचिन ने यह चेतावनी शिक्षा के सन्दर्भ में दी है क्योंकि जब उन्होंने यह लिखा है, वे शिक्षा के सन्दर्भ में काम कर रहे थे। हटचन की यह चेतावनी समग्र रूप से जीवन के सन्दर्भ में भी सटीक बैठती है। वास्तव में तकनीक नहीं, जीवन महत्वपूर्ण है। जीवन की सफलता को टुकड़ों-टुकड़ों में मापना संभव नहीं होता, किन्तु प्रत्येक टुकड़ा महत्वपूर्ण होता है। तकनीकी जीवन को समग्रता से जीने के लिए निश्चित रूप से उपयोगी और आवश्यक है किन्तु तकनीक जीवन के लिए है, न कि जीवन तकनीक के लिए।

       आज तकनीक का युग है। जीवन का प्रत्येक क्षेत्र तकनीक से प्रभावित हुआ है। हमारे अंतरंग कक्ष (Bed Room) से कार्य स्थल तक तकनीक प्रभावी हो रही है। तकनीक के इस युग को स्वचलन (Auto Mode) का युग कहा जाने लगा है। स्वचलन में बिना श्रमिकों के कारखाने, बिना मनुष्यों के मशीनें तथा बिना लिपिकों के कार्यालयों की कल्पना सरकार ने अवश्य की है, परंतु इसके सामाजिक परिणाम क्या होंगे, इसे जो ग्लेजर (Joe Glazer) ने अपने स्वचलन गीत ( ैSong of automation) में भली-भाँति व्यक्त किया है। स्वचलन प्रत्येक क्षेत्र में नहीं किया जा सकता और न ही ऐसा किया जाना चाहिए। प्रत्येक कार्य की अपनी सीमाएँ भी होती हैं। हमें उन सीमाओं को ध्यान में रखकर ही आगे बढ़ना चाहिए। स्वचलन की भी अपनी सीमाएँ हैं। उन सीमाओं को ध्यान में रखकर ही यंत्रीकरण व स्वचलन को अपनाना चाहिए। खतरनाक व मानव के लिए असुरक्षित क्रियाओं में ही संपूर्ण यंत्रीकरण व स्वचलन किया जाना उपयुक्त है। मानव हाथों को खाली रखने वाला यंत्रीकरण व्यक्ति व समाज के लिए घातक होता है। 
        अतः यंत्रीकरण व स्वचलन से पहले उन क्रियाओं का निर्धारण कर लेना चाहिए जिनमें स्वचलन आवश्यक है। अपने जीवन में तकनीक को निश्चित रूप से अपनायें किन्तु तकनीक के प्रयोग को निर्धारित करते समय हमें यह याद रखना होगा कि यंत्रीकरण इतना अधिक न हो जाय कि हमारा जीवन ही एक यंत्र बन जाय। मानवीयता के भाव सुविधाओं से अधिक आवश्यक हैं। जीवन मूल्यों को तकनीक के लिए नहीं छोड़ा जाना चाहिए। इस संबन्ध में ग्लेजर के स्वचलन गीत का हिन्दी अनुवाद दृष्टव्य है।