रविवार, 22 फ़रवरी 2015

जीवन प्रबन्ध के आधार स्तम्भ-२३

जीवन समग्रता का नाम हैः


निश्चित रूप से जीवन किसी एक दिन या एक वर्ष का नाम नहीं। जीवन व्यक्ति के बाल्यकाल या युवावस्था का भी नाम नहीं। जीवन व्यक्ति के आनंद के क्षणों या कष्ट के क्षणों का भी नाम नहीं। जीवन हँसने या रोने का भी नाम नहीं है। वस्तुतः जीवन व्यक्ति के संपूर्ण कार्यकलापों का नाम है जिसके अन्तर्गत अतीत, वर्तमान व भावी सभी कार्यकलाप सम्मिलित होते हैं। जीवन अच्छे दिनों का ही नाम नहीं है और न ही जीवन बुरे दिनों का ही नाम है। जीवन तो समग्रता का नाम है, जिसको पाना बहुत जटिल काम है। अतः जीवन के आनंद की अनुभूति करने के लिए जीवन की पूर्णता की प्रतीक्षा करना तो बुद्धिमानी नहीं होगी। जीवन की पूर्णता तो मृत्यु के साथ मानी जाती है। आध्यात्म तो मृत्यु के साथ भी पूर्णता की बात को स्वीकार नहीं करता। अतः प्रत्येक क्षण को समग्रता के साथ जीना ही हमें सफलता की अनुभूति व जश्न मनाने का अवसर दे सकता है।
सामान्यतः विद्यार्थियों से भावी जीवन को सुखद बनाने के लिए वर्तमान में कष्ट सहने की सीख दी जाती है किंतु हम यह भूल जाते हैं कि विद्यार्थी जीवन भी समग्र जीवन का एक भाग है। हम इसे कष्टकर क्यों बनायें? सीखना कष्टकर क्यों हो? सीखना कष्टकर होगा तो विद्यार्थी सीखेगा कैसे? सीखना अपने आप में उपलब्धियाँ पाकर सफलता की अनुभूति करके जश्न मनाने का अवसर क्यों नहीं हो सकता।
एक बार मैं अपने साथी श्री दिल बहादुर मीणा, पी.जी.टी. जीव विज्ञान; के साथ बातचीत कर रहा था। चर्चा का विषय भविष्य के लिए वर्तमान में परिश्रम करने से संबन्धित था। श्री मीणा जी ने बहुत अच्छे तरीके से स्पष्ट किया कि यदि हम जीवन भर बिस्तर ही विछाते रहेंगे तो सोयेंगे कब? मीणाजी का आशय स्पष्ट था कि भावी सुख की आकांक्षा में भविष्य को कष्टकर बनाना किसी भी प्रकार से उचित नहीं कहा जा सकता। मीणाजी की बात शत-प्रतिशत सही थी, सही है और सदैव सही ही रहेगी। हमें आनंद प्राप्ति के किसी भी अवसर को गँवाना नहीं चाहिए। साथ ही यह भी स्मरण रखना है कि आनंद मनाने के लिए रुकना नहीं है। कहा जाता है कि चलती का नाम गाड़ी है। अरे भाई! जीवन भी तो एक गाड़ी ही है, सक्रियता ही जीवन है अतः जश्न मनाने के लिए भी रुकना नहीं है। कोई भी प्रसन्नता ऐसी नहीं हो सकती, जिसके लिए हमें अपनी सफलता की यात्रा को कुछ समय के लिए भी रोकना पड़े। स्मरण रखना है कि अभी तो कुछ कदम ही चले हैं अभी गंतव्य की ओर और भी तीव्र गति से चलना है।

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