मंगलवार, 6 जनवरी 2015

जीवन स्तम्भ के आधार स्तम्भ- १२

3. सामाजिक कर्तव्यः 

कहा जाता है कि व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। परिवार भी समाज की ही एक लघु रचना है। समाज ही व्यक्ति व परिवार की सुरक्षा, संरक्षा व विकास का आधार निर्धारित करता है। समाज के बिना न तो व्यक्ति और न ही परिवार सुखद व गौरवपूर्ण जीवन जी सकता है। समाज के प्रति कर्तव्यों में लापरवाही केवल समाज के विकास में ही व्यवधान पैदा नहीं करती वरन् व्यक्ति व समाज का अस्तित्व भी खतरे में पड़ जाता है। अधिक वैयक्तिक स्वतंत्रता या कहा जाय कर्तव्यहीनता की स्थिति समाज के लिए ही नहीं स्वयं परिवार व व्यक्ति के लिए भी चिंताजनक स्थितियों का निर्माण करती है। 
      वर्तमान समय में हिंसा, आतंकवाद, अपहरण, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, निकटतम् संबन्धियों के साथ बलात्कार और घरेलू हिंसा जैसे अपराधों के निरंतर बढ़ने का कारण निःसन्देह असीमित स्वतंत्रता अर्थात स्वच्छन्दता की सीमा तक स्वतंत्रता की चाह है। जब व्यक्ति प्रकृति द्वारा स्थापित व्यवस्था के विरूद्ध समलैंगिक यौन संबन्धों की स्वतंत्रता की चाह करने लगेगा, तब वह कैसे सुरक्षित रह पायेगा? जब सामाजिक मूल्यों को ही मटियामेट किया जायेगा, तब सामाजिक संरक्षण कैसे मिल सकेगा? ऐसी स्थिति में कड़े से कड़े कानून भी स्थितियों में सुधार नहीं कर सकते, क्योंकि कानून का कार्य तो अपराध हो जाने के बाद प्रारंभ होता है। सामाजिक मूल्य ही व्यक्ति के आचरण को परिमार्जित व नियंत्रित करते हैं। जब सामाजिक मूल्यों को ही नजरअन्दाज करने की प्रतृत्ति पनपेगी तो प्रत्येक व्यक्ति ही अपराधी के रूप में सामने आयेगा। भूतपूर्व उप-प्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल लोहियाजी के कथन का उल्लेख किया करते थे, ‘लोकराज लोक लाज से चलता है।’ ध्यातव्य है कि कानून अपराधियों के लिए होते हैं। व्यक्ति का आचरण, पारिवारिक व सामाजिक गतिविधियाँ सामाजिक मूल्यों व परंपराओं के आधार पर ही चलते हैं। लोक व्यवस्था तो लोक लाज से ही चलती है।
       इससे भी बढ़कर हम कहें कि व्यक्ति में प्रेम का अंकुर ही समाज का आधार होता है। ‘वास्तव में प्रेम समर्पण का नाम है, ‘प्रेम की सीमारेखा जहाँ समाप्त होती है, वहीं से अधिकारों की बातें शुरू होती हैं। प्रेम तो अपने साथ सब कुछ देना जानता है। अधिकार की फिर भी मर्यादा होती है; प्रेम की नहीं।’ कर्तव्यों का अनुपालन किसी दायिव्त के अन्तर्गत न करके यदि प्रेम के आधार पर किया जाय तो संसार स्वर्ग बन जाय और प्रत्येक व्यक्ति सफलता की अनुभूति कर सकेगा। महान दार्शनिक व अर्थशास्त्री चाणक्य के अनुसार, ‘जीवन एक पुष्प है, और प्रेम उसका मधु’। इस प्रकार यदि प्रेम कर्तव्य का आधार बन जाय तो सफलता के मार्ग की सभी बाधाएँ समाप्त होती जायेंगी और जो काम अधिकार व कानून नहीं कर पाता वह कार्य सहजता से होने लगेंगे।
    अतः व्यक्ति को अपने सामाजिक कर्तव्यों के प्रति कभी भी लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। सामाजिक कर्तव्यों का निर्वाह, सामाजिक पंरपराओं का अनुपालन व सामाजिक मूल्यों का विकास व्यक्ति व परिवार सभी के ही हित में होता है। व्यक्ति के जीवन प्रबंधन में समाज का योगदान ही नहीं होता, वरन् व्यक्ति के जीवन प्रबंधन का आधार ही समाज होता है।

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