मंगलवार, 18 नवंबर 2014

कार्य करने का लुफ्त उठाइये:


कार्य करना व्यक्ति का स्वभाव है, मजबूरी नहीं। कार्य के बिना व्यक्ति जी नहीं सकता। सक्रियता तो जीवन की निशानी है, फिर कार्य से थकान कैसी और बोरियत क्यों? हमें इस यथार्थ को समझने की आवश्यकता है कि हम कार्य किसी भावी आराम के लिए नहीं करते, वरन् हमें कार्य करने में ही आराम व आनंद की अनुभूति होती है।
मैकग्रेगर का ल् सिद्धान्त कार्य के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कहा जा सकता है। यह सिद्धांत निम्नलिखित मान्यताओं पर आधारित है-
1. शारीरिक व मानसिक शक्ति का व्यय उतना ही आवश्यक है, जितना कि आराम या खेल। अर्थात प्रत्येक कार्य समान रूप से अरूचिकर नहीं होता, कार्य में रूचि होने पर खेल या आराम की भाँति कार्य भी आनन्द प्रदान करता है।
2. बाह्य नियंत्रण, भय अथवा कठोर अनुशासन ही मनुष्य को कार्य के लिए प्रेरित नहीं करते, वरन् मनुष्य स्वयं निर्देशित व नियंत्रित होता है तथा जिस कार्य को करना उसने स्वीकार किया है, उस कार्य का निष्पादन जिम्मेदारी पूर्वक प्रसन्नता के साथ करता है।
3. कार्य संबन्धी अभिप्रेरण सामाजिक, स्वाभिमान तथा आत्मसम्मान के स्तरों पर श्रेष्ठतम् कार्य निष्पादन का आधार बनता है।
4. व्यक्ति किसी भय या लालच की अपेक्षा सामाजिक स्वीकृति, अनुमोदन व आत्मसंतुष्टि के लिए अधिक व गुणवत्तायुक्त कार्य करता है।
5. व्यक्तिगत व सांगठनिक स्तर पर आने वाली विभिन्न समस्याओं के समाधान हेतु कल्पनाशक्ति, चातुर्य एवं रचनात्मकता सभी व्यक्तियों में पाये जाते हैं, अभिप्रेरित व्यक्ति समस्याएँ गिनाने की अपेक्षा समस्याओं को समाधान की राह बनाकर सफलता प्राप्त करने में ही प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।

वर्तमान प्रजातांत्रिक युग में मैकग्रेगर का ल् सिद्धान्त अधिक उपयोगी है। इस सिद्धान्त को आत्मसात कर कार्य करने वाले व्यक्ति अच्छे प्रबंधक सिद्ध होते हैं। वे अपने सहयोगियों पर आदेश व निर्देश थोपते नहीं, वरन् उनसे विचार-विमर्श करके उन्हें स्वयं ही निर्णय करने व उनको लागू करने का अवसर देते हैं। इससे कार्य करने वाले और कार्य करवाने वाले दोनों को कार्य करने का आनन्द मिलता है।
रूचिकर कार्य को किया जाय या किये जाने वाले कार्य को रुचिकर बना लिया जाय तो निःसन्देह कार्य करने में लुफ्त आयेगा, ठीक उसी प्रकार जैसे फिल्म देखने या किसी मनभावन के साथ डेट पर जाने में आता है। हाँ, आवश्यक यह है कि या तो आप जिस कार्य को आप पसन्द करते हैं उसी को पेशा बना लें या जो आपका पेशा है, उसी को प्यार करने लगें। जी, हाँ! यह ठीक उसी प्रकार है कि आप जिसे प्यार करते हैं उससे शादी कर लें या आपने जिससे शादी की है उसे प्यार करने लगें। दोनों ही परिस्थितियों में आप जीवन का आनन्द ले सकतें हैं; ठीक उसी प्रकार काम को प्यार करके भी आप लुफ्त उठा सकतेे हैं।
इस सन्दर्भ में मुझे स्मरण आता है कि मैं मथुरा में एक शायं ऐसे ही भ्रमण कर रहा था कि एक सज्जन निकट आकर मेरे पैरों की तरफ झुका। मुझे उसे देखकर आश्चर्य हुआ क्योंकि उम्र के लिहाज से ऐसा भी नहीं लगा कि वह कभी मेरा विद्यार्थी रहा होगा। जब बातचीत हुई तो उसने बताया, ‘सर! आप जब बी.कॉम द्वितीय वर्ष में थे तो मैं प्रथम वर्ष में था और आपने मुझे ट्यूशन पढ़ाया था।’
जब मैंने उसे उसके हालचाल पूछा तो उसने कहा, ‘सर! अब मेरी समझ में आ गया है कि अध्ययन के सामान्य स्तर से आगे जाकर अध्ययन में उतना ही मजा आता है जो मनोरंजन करने व फिल्म देखने में आता है।’ उसकी बात सुनकर मैं भी चौक गया। उस समय तक इस दृष्टिकोण से तो मैंने विचार ही नहीं किया था। विचार किया तो उसकी बात की सत्यता का आभास हुआ। वास्तव में जो कार्य को प्यार करने लगे, उसे मनोरंजन की आवश्यकता ही नहीं रहेगी। जीवन में मनोरंजन की आवश्यकता उन्हीं व्यक्तियों को पड़ती है, जो अपने कार्य को प्यार नहीं करते। चीन के दार्शनिक कन्फ्यूशियस के अनुसार, ‘आप उस कार्य का चयन करें जिसे आप प्यार करते हैं और आपको जीवन में एक दिन भी कार्य नहीं करना पड़ेगा।’ कुछ क्षण सोचने के बाद इसका भावार्थ समझ सका था। हाँ, उस समय से मुझे कभी फिल्म देखने या मनोरंजन के लिए कही जाने की आवश्यकता नहीं पड़ी; किसी का मन रखने के लिए किसी का साथ दे दूँ, यह अलग बात है। कार्य करने में कभी बोरियत ही नहीं होती, थकान का तो प्रश्न ही नहीं उठता।   
कन्फ्यूशियस का उक्त कथन अपनी जीवनवृत्ति के चयन के समय निर्णयन के महत्व को स्पष्ट करता है। हमें उसी कार्य का चयन करना चाहिए जिसको हम पसंद करते हैं। उस कार्य से हमें कभी बोरियत नहीं होगी। वह हमें आनंद प्रदान करने वाला होगा। दूसरा विकल्प यह भी हो सकता है कि हम जिस कार्य को कर रहे हैं उसी को प्यार करने लगें। यह ठीक उसी प्रकार है, कि हम या तो उससे शादी करें जिसे हम प्यार करते हैं या जिससे हमने शादी की है; उसे प्यार करने लगें। 

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