रविवार, 7 सितंबर 2014

संबन्ध प्रबंधनः


हाँ जी, अकेले व्यक्ति को भी अपने आप का प्रबंधन करने की आवश्यकता पड़ती है, जब उसका उद्देश्य अन्य व्यक्तियों के सहयोग से पूरा किया जाना हो तो उसे भी उनके साथ संबन्धों के प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती है। संबन्धों के प्रबंधन की सफलता का रहस्य यह है कि किसी से कुछ लेते हुए उसे यह अनुभव मत होने दो कि तुम उससे कुछ ले रहे हो वरन् उसे लगे कि तुम उसे कुछ दे रहे हो। प्रबंधन केवल संसाधनों के लिए ही आवश्यक नहीं है, केवल प्रयासों के प्रबंधन की आवश्यकता ही नहीं है। वर्तमान तनाव से भरे वातावरण में वैयक्तिक, पारिवारिक व सांगठनिक ही नहीं व्यक्ति के अपने आप से संबधों के प्रबंधन की भी आवश्यकता है। संबन्धों का प्रबंधन करके ही प्रकृति के स्वसक्रिय एक मात्र संसाधन मानव को स्वअभिप्रेरित किया जा सकता है। संबन्धों में तनाव न केवल व्यक्ति को निष्क्रिय करता है, वरन् उसे अवसाद में ले जाकर आत्महत्या ही ओर ले जाता है। अतः संबन्धों का प्रबंधन सफल, सन्तुलित व आनन्दपूर्ण जीवन बिताने के लिए आवश्यक है। व्यक्तिगत रूप से इसे रिश्तों को सहेज कर रखना भी कहा जा सकता है।
            मानव ही प्रकृति प्रदत्त या स्वयं द्वारा सृजित भौतिक संसाधनों का प्रयोग करके जीवन को सुविधा संपन्न व आनन्दित बनाता है। मानव को उचित समय पर उचित संसाधनों का उपयोग करने तथा उचित सहयोग लेकर उचित दिशा में उचित कार्य संपन्न करने व करवाने के लिए प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती है। प्रबंधकों की भूमिका कर्मचारियों से भिन्न होती है क्योंकि कर्मचारी चालक होते हैं, जबकि प्रबंधन संचालक। अतः जब हम प्रबंधन की बात कर रहे होते हैं तो चालक नहीं संचालक की बात कर रहे होते हैं। केस्ट और रोजेनविग के अनुसार, ‘प्रबंधन एक मानसिक(चिंतन, मनन, संवेदन आदि) कार्य है।’ दूसरे शब्दों में प्रबंधन वह शक्ति है, जो कार्य के चालन के लिए अनिवार्य तत्व है। अतः किसी भी प्रकार के कार्य के लिए प्रबंधन एक अनिवार्य तत्व है। वास्तव में वस्तु, पदार्थ, संगठन और यहाँ तक कि मानवीय तत्व कर्मचारी भी साधन होते हैं, जबकि प्रबंधन साधना है और कोई भी सफलता साधना के बिना मिलना संभव नहीं। साधन व साधना के मिलन से ही साध्य की प्राप्ति होती है। 

प्रबंधन सभी क्षेत्रों के लिए अनिवार्य हैः


प्रबंधन संसाधन नहीं है। प्रबंधन संसाधनों से भी कुछ अधिक है। प्रबंधन एक अमूर्त धारणा है, प्रबंधन एक प्रक्रिया है, प्रबंधन एक शक्ति है, प्रबंधन एक तकनीक है। वास्तव में प्रबंधन व्यक्ति के विकास के लिए सब कुछ है। प्रबंधन के बिना तकनीक व संसाधन व्यर्थ रह जाते हैं, या तो उनका प्रयोग ही नहीं हो पाता या अपव्यय होता हुआ देखा जाता है और संसाधनों की तुलना में बहुत कम परिणाम प्राप्त होते हैं। प्रबंधन संसाधनों का ही प्रबंधन नहीं करता, यह संबन्धों के प्रबंधन के माध्यम से व्यक्तियों का भी प्रबंधन करता है। अकेले व्यक्ति को भी अपनी क्रियाओं से श्रेष्ठ परिणाम प्राप्त करने के लिए प्रबंधन की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि व्यक्ति अकेला कुछ भी नहीं कर सकता, उसे अपने नितांत वैयक्तिक ध्येय की पूर्ति के लिए भी व्यक्तियों व प्रकृति के सहयोग की आवश्यकता पड़ती है। वास्तव में प्रबंधन के बिना किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती।
                प्रबंधन की आवश्यकता उद्योगों में है तो वाणिज्य में भी; प्रबंधन की आवश्यकता कारखाने में है तो घर के रसोईघर में भी; प्रबंधन की आवश्यकता फिल्म जगत में है तो मंदिर, चर्च और मस्जिद में भी; प्रबंधन की आवश्यकता शेयर बाजार में है तो घर के अर्थ प्रबंधन में भी। वास्तव में किसी भी क्षेत्र में मानवीय प्रयासों में सफलता प्राप्त करने के लिए प्रबंधन की आवश्यकता है। जिन-जिन क्षेत्रों में मानव काम करता है, जहाँ-जहाँ मानव का हस्तक्षेप है; वहाँ-वहाँ मानव प्रयासों के प्रबंधन की आवश्यकता है। व्यक्तियों का विकास ही प्रबंधन के द्वारा होता है और व्यक्ति विकसित हुए बिना प्रभावी व विश्वसनीय प्रयास नहीं कर सकता। अतः प्रबंधन के बिना किसी भी क्षेत्र में सफलता केवल सपना मात्र रह जायेगी वह वास्तविकता नहीं बन पायेगी। 

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