मंगलवार, 19 अगस्त 2014

सहमति, सहभागिता, समन्वय और प्रतिबद्धता



उद्देश्यों की सहमति, सहभागिता, समन्वय 

और प्रतिबद्धता का सिद्धांतः


व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रहता है। समाज से अलग रहने वाला व्यक्ति या तो पागल हो सकता है या संन्यासी। निःसन्देह व्यक्ति कोई भी कार्य कर सकता है, किंतु वह अकेला ही सब कुछ नहीं कर सकता। काम करने की तो बात ही क्या है वह अकेला रह ही नहीं सकता। प्रकृति ने भी उसे साथ-साथ रहने के लिए ही बनाया है। तभी तो उसने व्यक्ति को नर और नारी दो रूपों में पैदा किया है। दोनों मिलकर ही सृजन की क्षमता रखते हैं। अकेल में न तो नर कुछ कर सकता है और न ही नारी। यही कारण है कि व्यक्ति मित्र, साथी, परिवार, कुटुंब, मोहल्ला, गाँव, समाज, देश व विश्व समुदाय की रचना करते हुए उनके साथ रहता है।
व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता किन्तु प्रक ृति ने सभी को अनुपम बनाया है। विश्व में कोई भी दो व्यक्ति समान नहीं मिलते। वे एक-दूसरे से मिलते-जुलते हो सकते हैं किंतु असमानताएँ व विभिन्नताएँ भी अवश्य मिलती हैं। इसी प्रकार विभिन्न व्यक्तियों के उद्देश्य भी भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। एक ही परिवार में परिवार के समस्त सदस्यों के उद्देश्य भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, यहाँ तक कि एक ही कार्य को करते हुए पति-पत्नी के उद्देश्य भी भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। एक ही संगठन में कार्यरत व्यक्तियों के उद्देश्य भिन्न-भिन्न हो सकते हैं, नहीं होते ही हैं। संगठन व व्यक्तियों के उद्देश्य भी भिन्न-भिन्न होते हैं। इस प्रकार कार्य करने वाले सहभागी व्यक्तियों के उद्देश्य भिन्न-भिन्न हो सकते हैं किंतु किसी भी कार्य की सफलता के लिए उस कार्य के हिताधिकारी और उस कार्य को करने वाले व्यक्तियों में समन्वय अर्थात तालमेल का होना अत्यन्त आवश्यक है।
इस सन्दर्भ में जॉर्जोपालिस का कथन है, ‘हम केवल प्रणाली की आर्थिक सफलता या टेक्नोलोजिकल कार्यक्षमता में अभिरूचि नहीं रखते, पर इससे भी अधिक महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यक्षमता में हमारी रूचि सर्वाधिक है। सामान्यतः सामाजिक क्षमता तभी हासिल होती है, जब संगठन के विभिन्न स्तरों पर कार्यरत सदस्य अपने व्यक्तिगत उद्देश्य सिद्ध करने में सफल रहते हैं, जिसमें समाधान सहभागिता और प्रतिबद्धता तथा पुरस्कार समाविष्ट रहते हैं।’
           समाधान, सहभागिता, प्रतिबद्धता, समन्वय व तालमेल के लिए आवश्यक है कि हम एक-दूसरे की आवश्यकताओं और उद्देश्यों को समझते हुए एक-दूसरे के उद्देश्यों को सहमति दें। हमें व्यक्तिगत उद्देश्यों का निर्धारण करते समय भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि हमारे उद्देश्य परिवार या संगठन के उद्देश्यों या अन्य सदस्यों के उद्देश्यों से टकराने वाले न हों। हमारे उद्देश्यों में समन्वय होना चाहिए। परिवार के उद्देश्यों में सभी के उद्देश्य समाहित होने चाहिए। हमारे उद्देश्य इस प्रकार के होने चाहिए कि ‘हाथी के पाँव में सबका पाँव’ वाली कहावत चरितार्थ हो। हम परिवार या संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए कार्य करें और हमारे उद्देश्यों की पूर्ति परिवार के उद्देश्यों की पूर्ति के साथ ही स्वयमेव हो। उद्देश्य सहमति, समन्वय व सहभागिता पर आधारित होंगे, तभी तो प्रतिबद्धता के साथ उन्हें प्राप्त करने के लिए प्रयास हो सकेंगे।

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