रविवार, 27 जुलाई 2014

सफलता के लिए चाहिए

सफलता के लिए चाहिए ध्येय, उद्देश्य और लक्ष्य:


जी, हाँ जब तक आपने अपने गन्तव्य का निर्धारण नहीं किया है। आप यात्रा प्रारंभ नहीं कर सकते। आपको कहीं जाना है, यह निर्धारित किए बिना आप जाने के लिए तैयार कैसे होंगे? आपको कहाँ जाना है? इसका निर्धारण किये बिना आप जाने के समय का चुनाव कैसे करेंगे? आपको कितने समय में कितनी दूरी तय करनी है? इसको जाने बिना आप सही परिवहन के पथ व साधन का चुनाव करने में सक्षम कैसे होंगे? आप जहाँ जा रहे हैं, वहाँ करना क्या है? आप जहाँ जा रहे हैं, वहाँ कौन आपकी प्रतीक्षा कर रहा है? इसे जाने बिना आपमें जाने का उत्साह कैसे पैदा होगा?

कवि हरिवंशराय बच्चन के अनुसार-

बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे-
यह ध्यान परों में चिड़िया के, 
भरता कितनी चंचलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

स्पष्ट है कि जब हमें यह पता होता है कि गंतव्य पर कोई हमारी प्रतीक्षा कर रहा है, तब जाने की अभिप्रेरणा तीव्र हो उठती है। हम शीघ्र पहुँच कर अपने कर्तव्य का निर्वहन करना चाहते हैं।
दूसरी ओर -

मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को,
भरता उर में विह्वलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

उपरोक्त कविता में कवि बच्चन ने कार्य की अभिप्रेरणा को बड़े ही सुन्दर रूप से चित्रित किया है। जब कार्य करने का आकर्षक व प्रभावी अभिप्रेरक होता है, तब कार्य स्वयं ही गति पकड़ता है। हमारा कोई अजीज हमारी प्रतीक्षा कर रहा है, यह जानकारी ही हमारे पैरों में पंख लगा देती है; जबकि यह ज्ञान कि हम जहाँ जा रहे हैं, वहाँ कौन हमारी प्रतीक्षा करने वाला है? हमारे पैरों की गति को शिथिल ही कर देता है। वास्तविक रूप में घर का यही प्रतीक्षा करने का अभिप्रेरक तो हमें सक्रिय करता है। जहाँ कोई प्रतीक्षा करने वाला नहीं, वह कितना भी भव्य भवन क्यों न हो? वह घर नहीं हो सकता। वहाँ संपत्ति की रक्षा या देखभाल या किसी उत्तरदायित्व से बँधे हम जायँ भले ही किन्तु गति में वह उड़ान तो नहीं आ सकती? अतः यात्रा प्रारंभ करने से पूर्व गंतव्य का निर्धारण ही आवश्यक नहीं है, यह भी आवश्यक है कि गंतव्य हमारी प्रतीक्षा कर रहा हो और हम भी गंतव्य तक पहुँचने के लिए व्याकुल हों!  गंतव्य से मिलन की व्याकुलता के बिना गंतव्य नहीं मिल सकता। 
          अतः सर्वप्रथम अपना ध्येय निर्धारित कीजिए, उद्देश्य निर्धारित कीजिए और फिर तात्कालिक लक्ष्य का निर्धारण कीजिए। उद्देश्य किसी भी व्यक्ति के विकास के लिए अनिवार्य तत्व हैं। उद्देश्य का निर्धारण जीवन को दिशा प्रदान करना है। अतः अपनी पिछली उपलब्धियों, अपने संसाधनों, अपनी क्षमताओं, अपनी, परिवार व समाज की आवश्यकताओं पर पूर्ण रूप से विचार करके ही सभी संबन्धित पक्षों की सहभागिता प्राप्त करते हुए ध्येय, उद्देश्य व लक्ष्य का निर्धारण करना चाहिए। 
              प्रकृति में कुछ भी निरूद्देश्य नहीं है। फिर प्रकृति की सर्वोत्तम कृति, जिसके बारे में पुनर्जन्म के समर्थक मानते हैं कि मानव योनि में जन्म चौरासी लाख योनियों में कष्ट भोगने के बाद मिलता है; का कोई कृत्य उद्देश्य-विहीन कैसे हो सकता है? मानव जैसे बुद्धिमान प्राणी की कोई भी गतिविधि निरुद्देश्य नहीं होनी चाहिए। अतः मानव का प्रत्येक प्रयास ध्येय, उद्देश्य व लक्ष्य निर्देशित होना चाहिए; तभी तो किए जाने वाले प्रयास के परिणाम का आकलन किया जाना संभव हो सकेगा।

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