रविवार, 27 जुलाई 2014

जीवन का उद्देश्यः



‘‘कोई भी मनुष्य अपने जीवन को सही प्रकार से तभी जी सकता है, जब उसे जीवन जीने का ध्येय पता हो, उद्देश्य पता हो, लक्ष्य पता हो। जब से मनुष्य इस पृथ्वी पर आया है और अब तक, जब वह चाँद व मंगल पर घर बनाने की सोच रहा है, मानव के जीवन जीने का उद्देश्य जीवन में असंतोष को समाप्त कर संतोष की प्राप्ति करना ही रहा है या यूँ कहिए कि मानव जीवन का उद्देश्य दुःखों को समाप्त कर सुख की प्राप्ति करना है, क्योंकि मनुष्य से असंतोष से दुःख मिलता है और संतोष से सुख। अतः असंतोष को समाप्त कर, संतोष की उत्पत्ति करना मानव जीवन का उद्देश्य कहा जा सकता है।’’ (‘अभावों में भाव’ से साभार)
          जीवन का उद्देश्य मौलिक व अनिर्णीत प्रश्न है। वास्तव जीवन का उद्देश्य क्या है? इस पर अनादि काल से ही चिन्तन-मनन होता रहा है किन्तु अभी तक इस का सर्वस्वीकृत उत्तर प्राप्त नहीं किया जा सका है। कवि श्री हरिवंश राय बच्चन के अनुसार-

कर प्रयत्न मिटे सब सत्य किसी ने जाना
नादान वही है, हाय, जहाँ पर दाना
फिर मूढ़ न जग क्या जो उस पर भी सीखे
मैं सीख रहा हूँ सीखा ज्ञान भुलाना।


     इसका आशय यह है कि कुछ मौलिक प्रश्न हैं, जिनका कोई सर्वस्वीकृत उत्तर आज तक प्राप्त नहीं हो पाया है; उसी प्रकार का प्रश्न मानव जीवन के उद्देश्य को लेकर है। अतः सभी अपने-अपने विचार के अनुसार अपना-अपना ध्येय और तद्नुसार अपना उद्देश्य निर्धारित कर लेते हैं। व्यक्ति को अपना उद्देश्य निर्धारित करते समय कभी भी एकांकी विचार नहीं करना चाहिए। वह जिन व्यक्तियों से संबन्धित है, जिस परिवार का वह सदस्य है, जिस देश का वह नागरिक है; सभी के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए सभी संबन्धित पक्षों की सहभागिता सुनिश्चित करते हुए ही अपने ध्येय का निर्धारण करना चाहिए। ध्येय, उद्देश्यों और लक्ष्यों को लेकर एक मत बनाना अत्यन्त जटिल कार्य है किंतु इसका निर्धारण अन्ततः व्यक्ति को ही करना होगा। यह निर्धारण ही उसके जीवन की दिशा निर्धारित करेगा और उसके प्रयासों के मूल्यांकन का आधार प्रदान करेगा।
ध्येय, उद्देश्य और लक्ष्य का निर्धारण कितना भी कठिन क्यों न हो? व्यक्ति को इस जिम्मेदारी से भागना नहीं चाहिए और न ही इस उत्तरदायित्व को किसी और पर छोड़ना उपयुक्त रहेगा। हाँ, यह प्रश्न कितना भी जटिल क्यों ना हो? व्यक्ति को इस प्रश्न पर विचार अवश्य करना चाहिए, ताकि वह अपने जीवन की दिशा निर्धारित कर सके। दिशा ही भावी जीवन की दशा की निर्धारक होती है। वही उसे सपने देखना सिखाती है। सपनों की सीमाएँ निर्धारित करती है।
      मानव ही एकमात्र प्राणी है जो सपने देखने में सक्षम है। हमारी सफलता हमारे सपनों से ही प्रारंभ होती है। बिना सपनों के सफलता की कल्पना करना ही बेमानी हो जाती है। बचपन में आपने सपनों की बड़ी ही प्रेरणादायक कहानियाँ पढ़ी व सुनी होंगी। सपने सचमुच हमें सफल बनाते हैं। हमारे भूतपूर्व वैज्ञानिक राष्ट्रपति कलाम साहब तो बच्चों से सपने देखने का ही आह्वान करते हैं। वास्तव में सपने हैं भी क्या? हमारे अचेतन मन में दबी हुई इच्छाएँ या कामनाएँ हैं। अब इन इच्छाओं को वास्तविक जीवन में लाने से पहले स्वप्न के माध्यम से तरोताजा करने में क्या बुराई है। आप अपने सपनों को उद्देश्यों में परिणत कर सकते हैं और जब उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आप प्रबंधन का प्रयोग करते हुए प्रयास रत होते हैं, तब सपनों को योजनाओं में और फिर सफलता में परिवर्तित होना कठिन भले ही लगे असंभव तो बिल्कुल नहीं है।

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