शुक्रवार, 18 जुलाई 2014

सफलता का पैमाना

सफलता का पैमाना दूसरे नहीं, 


आपके अपने प्रयास हैं!


प्रकृति ने प्रत्येक प्राणी को अनुपम(Unique) बनाया है। कोई भी दो व्यक्ति समान नहीं मिल सकते। यहाँ तक कि जुड़वा भाई या जुड़वा बहनों में भी अन्तर मिलता है। ऐसी स्थिति में जबकि प्रत्येक व्यक्ति भिन्न है, निश्चित रूप से उसकी इच्छाएँ, अभिरुचियाँ, आवश्यकताएँ, ध्येय, उद्देश्य, लक्ष्य आदि भिन्न-भिन्न होंगे। अतः भिन्न व्यक्तियों की क्षमताएँ, योग्यताएँ, संकल्पशक्ति, अभिप्रेरणा का स्तर भी भिन्न-भिन्न होगा। अब भिन्न-भिन्न व्यक्तियों के प्रयास व उनके परिणाम भी भिन्न-भिन्न ही होंगे। ऐसी स्थिति में एक व्यक्ति की सफलता के मापन के लिए दूसरे व्यक्ति से तुलना करना अनुचित है। व्यक्ति को अपनी तुलना किसी अन्य व्यक्ति से करने की अपेक्षा अपनी तुलना अपने आप से ही करनी चाहिए कि एक वर्ष पहले मैं कहाँ था और एक वर्ष बाद मैंने कौन-कौन सी सफलताएँ उपलब्धियाँ हासिल की हैं। मैं क्या लक्ष्य लेकर प्रयास कर रहा था, वह लक्ष्य प्राप्त हुआ या नहीं? 

सफलता सबको ही अच्छी लगती है किन्तु सफलता के पैमाने अलग-अलग हैं। सभी समय-समय पर सफलता प्राप्त करते भी हैं, किन्तु हम सफलता का अर्थ न जानने के कारण सफलता की अनुभूति नहीं कर पाते। हमें पता ही नहीं होता कि हम सफल हुए हैं। इसका कारण है, हम अपने प्रयासों पर ध्यान नहीं देते। हमने जो प्रयास किए हैं उनकी तुलना में परिणाम प्राप्त हो रहे हैं यह ही तो सफलता है। 
हम सफलता तो चाहते हैं, किंतु सफलता क्या है? कब कितनी सफलता मिली? इस पर विचार नहीं कर पाते। हमें कब कौन सी सफलता मिली? इसकी अनुभूति नहीं कर पाते। हम अपनी सफलता की तुलना दूसरों की उपलब्धियों से करने के कारण अपनी सफलता को असफलता समझ बैठते हैं ओर स्वयं हीन भावना के शिकार होते चले जाते हैं। सफलता के प्रक्रम में हमें अपनी उपलब्धियों की तुलना दूसरों की उपलब्ध्यिों से करके सफलता के मूल्य को कमतर नहीं करना चाहिए। हमारी सफलता का संबन्ध दूसरों की उपलब्धियों से न होकर हमारे प्रयासों से होता है। कोई भी उपलब्धि हमारे द्वारा किए गये प्रयासों का परिणाम होती है। कम्प्यूटर की भाषा में बात करें तो इनपुट पर प्रक्रिया होने के बाद आउटपुट मिलता है।

 संसाधन       प्रक्रिया           उपलब्धियाँ
                                            (सफलता)


  INPUT   +  PROCESS   =  OUTPUT


उत्पाद (OUTPUT) ही वास्तव में हमारी उपलब्धियाँ हैं। ये उपलब्ध्यिाँ ही तो सफलताएँ हैं। सफलता की मात्रा इस बात पर निर्भर है कि आपने वास्तव में कितना इनपुट किया है। इनपुट पर की गई प्रक्रिया की गुणवत्ता कैसी रही? आउटपुट की आकांक्षा सभी को होती है, किन्तु हम इस बात को नहीं समझ पाते कि आउटपुट तो इनपुट और प्रोसेस का ही परिणाम होता है अर्थात उपलब्धियों का आनन्द लेने के लिए हमें संसाधनों के आबंटन व उनके समुचित प्रबंधन के साथ उपयोग पर ध्यान केन्द्रित करना होगा।

               सभी सफलता पाना चाहते हैं किन्तु बहुत कम लोग होते हैं, जो यह स्वीकार कर पाते हैं कि वे सफल हो रहे हैं। सफलता को तभी पाया जा सकता है, जबकि हम यह स्वीकार करें कि असफलता नाम की कोई चीज शब्दकोष के सिवाय कहीं मिलती ही नहीं! छोटी-छोटी सफलताओं को स्वीकार करके ही हम जीवन का आनन्द उठा सकते हैं। वास्तव में हम दिन-प्रतिदिन क्या हर पल-क्षण कुछ न कुछ करते ही रहते हैं और उन प्रयासों के परिणामस्वरूप हम दिन-प्रतिदिन ही नहीं क्षण-प्रतिक्षण उपलब्धियाँ भी हासिल करते हैं। वह छोटी-छोटी उपलब्धियाँ ही छोटी-छोटी सफलताएँ हैं। इन छोटे-छोटे प्रयासों को नियोजित ढंग से श्रृंखलाबद्ध करने से इनकी शक्ति एकजुट होकर आपको बड़ी सफलता की ओर अग्रसर कर सकती है किन्तु आपकी सफलता की भूख निरंतर बढ़ती ही रहनी चाहिए। आपके द्वारा किए गये प्रयासों से जो भी उपलब्धियाँ हासिल हों, उन्हें स्वीकार कीजिए। किसी भी स्थिति में निराश होने की आवश्यकता नहीं हैं, क्योंकि कोई भी प्रयास कभी असफल नहीं होता।


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