शनिवार, 28 दिसंबर 2013

शिक्षा का लक्ष्य

शिक्षा  का लक्ष्य

  • शिक्षा का लक्ष्य ऐसे लोगों को निर्मित करना है, जो कि नवीन कार्य करने के योग्य हों; न कि ऐसे जो अन्य पीढि़यों द्वारा किए गये कार्यो की आवृत्ति करें। वे लोग जो कि निर्माता, उपज्ञाता व आविष्कारकर्ता हैं। 
  • शिक्षा का दूसरा लक्ष्य ऐसे मस्तिष्क तैयार करना है जो आलोचना कर सकें, सत्यापन कर सकें और वे प्राप्त होने वाली प्रत्येक बात को वैसी ही स्वीकार न कर लें। 
  • आज सबसे बड़ा खतरा सभा, घोषणाओं सामूहिक अभिमतों एवं पहले से ही तैयार विचारों की प्रवृत्तियों से है। हम में व्यक्तिगत तौर पर सामना करने, आलोचना करने, प्रमाणित और अप्रमाणित में अन्तर करने की योग्यता होनी चाहिए।

       अतः आवश्यकता ऐसे शिष्यों की है, जो सक्रिय हों, अपने ढंग से कार्य करने की क्षमतायुक्त हों तथा अनुशासन के डंडे से निडर हों; जो उपलब्ध उपकरणों का सम्यक रीति से प्रयोग कर सकें और यह निश्चित कर सकें कि अमुक विचार मस्तिष्क में पहले आया और अमुक बाद में। यही नहीं उनमें सही और गलत के मूल्यांकन की अभियोग्यता और सही का समर्थन व गलत का विरोध करने की सामर्थ्य हो।

कोई टिप्पणी नहीं: