सोमवार, 15 अगस्त 2011

हमला प्रबन्धन

अन्ना हजारे के प्रस्तावित अनशन से सरकार कितनी घबड़ाई हुई व बोखलाई हुए है, इसे उसकी प्रतिक्रियाओं से ही समझा जा सकता है. सरकार ने पहले तो पुलिसिया हथकण्डों के द्वारा अनशन को रोकने की कोशिश की. अनशन के लिये दिल्ली में जगह देने के लिये ही राजी नहीं हुई. जब राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय दबाब के कारण अनुमति देना असंभव हो गया तो अनुमति के साथ दो दर्जन शर्तें जोड़ दीं. अब अन्नाजी सरकार के यहां बारात लेकर तो आ नहीं रहै कि गिनकर बराती लाये जायेंगे, जनता का आन्दोलन है- सभी भारतीयों को आन्दोलन में भाग लेने का अधिकार है. सरकार को किसी को भी दिल्ली आने से रोकने का अधिकार नहीं है. यदि सरकार ऐसा करती है तो वह तानाशाही होगी. 
           सरकार का अन्नाजी से अनशन को सीमित करने के लिये कहने का क्या मतलब है? जबकि अन्नाजी ने आमरण अनशन घोषित कर रखा है तो क्या सरकार चाहती है कि अन्नाजी तीन दिन में अपने प्राण त्याग दें. सरकार की अतार्किक शर्तों को मानने के लिये अन्नाजी बाध्य नहीं है. इतिहास साक्षी है कोई भी आंदोलन सरकार के रहमोकरम पर नहीं किया जाता. आन्दोलन सरकार के खिलाफ़ होते हैं और कोई भी सरकार आन्दोलनों की अनुमति नहीं देती.
          सरकार ने केवल आन्दोलन को जगह के नाम पर ही दबाने की कोशिश नहीं की, वह अन्नाजी के चरित्र-हनन पर भी उतर आई है. अन्नाजी के खिलाफ़ गढ़े मुर्दे उखाड़े जा रहे हैं. अतः जनता को उनके साथ खड़े होने की आवश्यकता है और हम उनके साथ हैं. वे हमारे लिये लड़ रहे है. अतः बिना किसी के बहकाने में आये हम उनके साथ डटे रहेगें और सरकार द्वारा प्रायोजित हमला प्रबन्धन व प्रचार प्रबन्धन को अपने जन-प्रबन्धन के द्वारा असफ़ल करते हुए अन्नाजी सफ़ल होंगे, हम सफ़ल होंगे, गणतंत्र सफ़ल होगा.
अन्नाजी संघर्ष करो- हम तुम्हारे साथ हैं.
जय हिन्द!                   जय भारत!

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