रविवार, 27 जून 2010

मानव संसाधन प्रबंधक की भूमिका - भाग-दो

मानव संसाधन प्रबंधक की भूमिका




हैनरी मिन्ज़बर्ग व उनके सहयोगियों द्वारा प्रबंधक की भूमिका के बारे अपने अध्ययन के बाद निम्नलिखित दस भूमिकाओं का उल्लेख किया है, जो तीन वर्गो में वर्गीकृत की गई हैं :-

अ. आपसी या पारस्परिक भूमिकाएं : सभी प्रबंधकों को अपने औपचारिक अधिकारों व अपनी स्थिति के कारण अपने अधीनस्थों व समकक्ष व्यक्तियों के साथ आपसी संबन्ध बनाए रखने पड़ते हैं। मानव संसाधन प्रबंधक का मुख्य काम कार्यरत मानव समुदाय के संबन्धों का प्रबंध करना है। अत: उसे समस्त मानव संसाधन के साथ आपसी संबन्ध बनाए रखने होते हैं। इस उद्देश्य से उसे निम्न तीन प्रकार की भूमिकाओं का निर्वहन करना होता है-

1. अध्यक्षीय या मुखिया की भूमिका :- सभी प्रबंधकों को कुछ प्रतीकात्मक व सामाजिक भूमिकाओं का निर्वहन करना पड़ता है। उदाहरणार्थ, संस्था या विभाग में आने वाले अतिथियों का स्वागत करना, समारोहों में सम्मिलित होना, अध्यक्षता करना आदि। मानव संसाधन प्रबंधक का तो मुख्य कृत्य ही कार्यरत मानव समुदाय में सामाजिक व अपनत्व की भावना का विकास करना है। मानव संसाधन प्रबंधक कर्मचारियों द्वारा अपने मुखिया के रूप में देखा जाता है। अत: उसे न केवल अपने वरिष्ठ अधिकारियों वरन अपने समकक्षों व अधीनस्थों के साथ भी सामाजिक भूमिकाओं का निर्वहन करना होता है। कर्मचारी वर्ग द्वारा मुखिया के रूप में देखे जाने के कारण उसे विभिन्न कार्यक्रमों में जाना व अध्यक्षता करनी होती है। अत: वह समय-समय पर अध्यक्षीय या मुखिया की भूमिका का निर्वहन करता है।

2. नायक या अगुआ की भूमिका :- मानव संसाधन प्रबंधक कर्मचारियों के विकास व सन्तुष्टि के द्वारा संस्था के उद्देश्यों को प्राप्त करने में योगदान देता है। कर्मचारी अपना हितचिन्तक समझकर उसे अपना नायक या अगुआ मानने लगें, यह उसकी सबसे बड़ी सफलता होगी। यह तभी होगा, जब मानव संसाधन प्रबंधक कर्मचारियों के नायक या अगुआ की भूमिका का निर्वहन करेगा।

3. सम्पर्क भूमिका :- मानव संसाधन प्रबंधक कार्यकारी अधिकारी न होकर विशेषज्ञ अधिकारी होता है। अत: वह निर्णय न लेकर निर्णय लेने में सहायता करता है। कर्मचारी वर्ग उससे ही अपेक्षा करता है, जबकि निर्णय लेने का कार्य कार्यकारी प्रबंधक का होता है। मानव संसाधन प्रबंधक संस्थान के अधिकारी व कर्मचारी ही नहीं कार्यकारी अधिकारियों से भी संपर्क बनाकर रखता है। वह तभी संस्था में अपनी विशेषज्ञता के आधार पर कर्मचारियों संबन्धी नीतियां बनवा पायेगा। वैसे भी उसे प्रबंधकों का भी प्रबंध करना है और कार्य और कार्यकर्ताओं का प्रबंध करना है और यह सब उसे अपनी संपर्क की भूमिका के बल पर ही करना होता है।

ब. सूचनात्मक भूमिकाएं : वर्तमान युग में दो कहावत प्रचलित हैं, `ज्ञान ही शक्ति है,´ (Knowledge Is Power), और `सूचना ही ज्ञान है´ (Information Is Knowledge)। इन दोनों को मिलाकर देखें तो वास्तविकता यही है कि सूचना ही ज्ञान है। यह प्रबंध के क्षेत्र में शत-प्रतिशत सही है। मानव संसाधन प्रबंधक को प्रबंधकों व कर्मचारियों के बारे में सारी सूचनाएं रखनी पड़ती है। वह निम्नलिखित भूमिकाओं का निर्वहन सूचनाओं के रखने के कारण ही कर पाता है :-

1. मॉनीटर या स्नायु-केन्द्र की भूमिका :- मानव संसाधन प्रबंधक को एक मॉनीटर की तरह संस्था व उसके वातावरण से विभिन्न प्रकार की सूचनाएं प्राप्त करनी होती हैं। इन सूचनाओं की सहायता से ही वह वातावरण में हो रहे परिवर्तनों, जन्म ले रहीं चुनौतियों तथा उत्पन्न हो रहे अवसरों का आंकलन कर सकते हैं। प्रबंधक विभिन्न स्रोतों से सूचनाएं प्राप्त करते रहते हैं।

2. प्रसारक या प्रचारक की भूमिका : मानव संसाधन प्रबंधक सूचनाओं का संग्रह निजी प्रयोग के लिए नहीं करता। वह सूचनाओं का प्रसार कार्यकारी प्रबंधकों को निर्णय लेने में सहायता करने के उद्देश्य से व अधिकारियों व कर्मचारियों में संस्था में लिए गए निर्णयों व बनाई गई नीतियों के बारे में सूचित करता है। इस प्रकार वह एक प्रसारक या प्रचारक की भूमिका का निर्वहन करता है।

3. प्रवक्ता की भूमिका : मानव संसाधन प्रबंधक अपने विभाग से संबन्धित ही नहीं समस्त संस्था की और से सेविवर्गीय नीतियों का प्रवक्ता होता है। मानव संसाधन को प्रभावित करने वाली सभी नीतियां उसके द्वारा ही घोशित की जाती है। कर्मचारी वर्ग के लिए वह संस्था के लिए प्रवक्ता की भूमिका में होता है।

स. निर्णयात्मक भूमिकाएं : यद्यपि मानव संसाधन प्रबंधक एक लाइन अधिकारी नहीं होता, तथापि दिनोदिन उसकी भूमिका में वृद्धि होती जा रही है। अपने द्वारा प्रदान की गई विशे्षज्ञ व प्रभावी सेवाओं के कारण वह उच्चस्तरीय निर्णयों को भी प्रभावित करता है। सेविर्गीय नीतियां उसकी सलाह के आधार पर ही बनाई जाती हैं। अत: विशेषज्ञ अधिकारी होते हुए भी वह निर्णयात्मक भूमिकाओं का निर्वहन करता है-

1. साहसी भूमिका : मानव संसाधन प्रबंधक मानव संसाधन के कुशलतम प्रयोग के लिए नये-नये विचारों, अवसरों व कार्यविधियों की खोज करके उन्हें संस्था में लागू करवाने के प्रयत्न करता है। इस प्रकार वह एक साहसी की भूमिका का निर्वहन करता है।

2. अशान्ति निवारक/संकटमोचक की भूमिका :- संस्था में कर्मचारियों के असन्तोष के समय हड़ताल या अन्य किसी प्रकार के आन्दोलन से कोई संकट पैदा हो जाने पर वह कर्मचारियों के साथ अपने निकट व विश्वास के संबन्धों व प्रबंधन का हिस्सा होने के कारण व संकटमोचक की भूमिका में आ जाता है। वह कर्मचारियों व प्रबंध दोनों को विश्वास में लेकर समस्या के समाधान का वातावरण बना सकता है।

3. संसाधन आबंटन भूमिका : विभिन्न विभागों की मांग के अनुसार अधिकारियों व कर्मचारियों का आबंटन मानव संसाधन विभाग द्वारा ही किया जाता है। अत: मानव संसाधन प्रबंधक मानव संसाधन आबंटन करने की भूमिका का निर्वहन भी करता है।

4. वार्ताकार भूमिका : सेविवर्गीय मामलों में मानव संसाधन प्रबंधक को समझौता वार्ताकार की भूमिका का निर्वहन करना पड़ता है। प्रबंध वर्ग का सदस्य होने के कारण वह संस्था के प्रतिनिधि की भूमिका का भी निर्वाह करता है तो कर्मचारी विभाग का मुखिया होने के कारण कर्मचारी इसकी बात पर विश्वास करने की स्थिति में होते हैं। अत: मानव संसाधन प्रबंधक वार्ताकार की भूमिका का निर्वहन भी करता है।

1 टिप्पणी:

Udan Tashtari ने कहा…

अच्छा आलेख.