बुधवार, 23 सितंबर 2009

जीवन का लक्ष्य सिर्फ़ नौकरी करना क्यों?

जीवन का लक्ष्य सिर्फ़ नौकरी करना क्यों?


मैं अध्यापन व्यवसाय में हूँ। भाषा का अध्यापक होने के नाते विद्यार्थियों को "मेरे जीवन का लक्ष्य" विषय पर निबंध लिखवाता रहता हूँ। आज तक जितने भी निबंध मेरे सामने आए सभी किसी न किसी नौकरी से सम्बंधित रहे जैसे, डाक्टर बनाना, आई.ऐ.एस.अधिकारी बनाना, सेना में जाना आदि । किसी के भी निबंध में एक सफल नागरिक बनना , समाज के लिए उपयोगी हम स्वयम नहीं होता हम विद्यार्थियों को उनके कर्तव्य के प्रति जाग्रत नहीं कर पाते। वे अपने उत्तरदायित्वों को पूर्ण करने की क्षमता अर्जित पर अपना ध्यान केंद्रित क्यों नहीं कर पाते।

रविवार, 20 सितंबर 2009

स्वयं का भी प्रबंधन करें (Self-Management)

स्वयं का भी प्रबंधन करें (Self-Management)


प्रबंध एक प्राचीनतम प्रक्रिया है। मानव सभ्यता के विकास के साथ प्रबंधन का भी विकास हुआ है। भले ही हेनरी फेयोल के प्रबंधन के सिद्धांत उस समय तक विकसित नहीं हो पाये होंगे या ऍफ़ डब्लू टेलर(F.W.Taylor) के वैज्ञानिक प्रबंध का विकास नहीं हुआ होगा, भले ही औद्योगिक क्रांति नहीं हुई होगी, किंतु प्रबंधन का अस्तित्व परिवार में किसी न किसी रूप में अवश्य रहा होगा कारखाने में नहीं, तो रसोई घर में, किसान के कार्य में, गृह-सज्जा में आदि अनेक कार्य किसी न किसी प्रकार प्रबंध की सहायता से ही समपन्न होते रहें होंगे, क्योंकि प्रबंध के बिना सामूहिक जीवन तो क्या व्यक्तिगत जीवन भी मानव के रूप में जीना सम्भव नहीं हैं। हां, प्रबंध के स्तर का विकास शनेः शनेः हुआ । तकनीकी व सिद्धांतों का विकास हुआ और प्रबंध की परिभाषा भी समय के साथ बदलती रही। पहले जहाँ दूसरों से कार्य कराना (getting things done thruogh others) ही प्रबंध माना जाता था वर्त्तमान में प्रबंध औपचारिक दलों में संगठित व्यक्तियों के द्वारा तथा उनके साथ मिलकर काम करने व कराने की कला व विज्ञान है। (getting things done through and with the people.) इस प्रकार प्रबंध दूसरों का ही नही अपना भी किया जाता है।

स्वामी रामतीर्थ ने कहा था दुनिया में एक देन ऐसी है जिसे प्रत्येक व्यक्ति देना चाहता है, लेना नहीं - प्रवचन, उपदेश या आदेश। वास्तव में प्रबंधन में भी दूसरों से कार्य कराना ही सम्मिलित किया जाता रहा, अब इस विचार में परिवर्तन आ रहा है और मानव स्वयं को भी प्रबंध का अंग मानने लगा है। वास्तविकता यही है कि हम दूसरों की अपेक्षा स्वयं को सरलता से बदल सकते हैं और दूसरों को अभिप्रेरित करने के लिए अपने आप का अभिप्रेरण आवश्यक है। स्वयम का प्रबंध व्यक्तिगत जीवन के लिए ही नहीं सार्वजनिक प्रबंधन के लिए भी आवश्यक है क्योकिं हमारी सफलता हमारे सहयोगियों को भी प्रबंध अपनाने के लिए अभिप्रेरित करती है। उपदेश की अपेक्षा अनुकरण अधिक प्रभावी सिद्ध होता है।


शनिवार, 19 सितंबर 2009

समय प्रबंधन नही, कार्य प्रबंधन

प्रबंधन मूलतः संसाधनों का किया जाता है । मानव भी अपने आप में एक संसाधन है । सामान्यत सभी देशों के सभी विभागों में मानव को एक संसाधन के रूप में स्वीकार किया जा चुका है, किंतु मानव संसाधन से हमारा आशय मानव के समय से होता है। मानव संसाधन को प्रशिक्षित करके उसकी गुणवत्ता बढ़ाई जा सकती है किंतु मानव संसाधन को भविष्य के लिए संरक्षित करके नही रखा जा सकता। क्योंकि मानव का समय ही संसाधन है और उसका संरक्षण सम्भव नहीं है।

कालचक्र अविरल चलता रहता है, इसे आज तक कोई रोक नहीं पाया है। भविष्य में भी इसमें सफलता मिलने की कोई आशा नहीं है। जिस वस्तु या संसाधन पर हमारा नियंत्रण ही नहीं है, उसका प्रबंधन भी सम्भव नहीं है। हाँ, समय अपनी गति से चलता है। अतः समय की गति के साथ हम किए जाने वाले कार्यों का प्रबंधन कर सकते हैं। हम कब क्या कार्य करें ? इस पर हमारा नियंत्रण है, अतः स्वयम पर नियंत्रण करके ही हम किए जाने वाले कार्यों को प्रबंधित करके समय का सदुपयोग कर सकते हैं। अध्यात्म में इसे ही संयम कहा जाता है।

हमें इस वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए कि समय पर नियंत्रण सम्भव नहीं है। अतः उसे प्रबंधित नहीं किया जा सकता, हम कार्यों का प्रबंधन करके ही विकास के लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं। समय के साथ कार्यों का समन्वय ही कार्य प्रबंधन है जिसे हम गलतफहमी में समय प्रबंधन कहते हैं।

शनिवार, 12 सितंबर 2009

क्षमा याचना

सभी साथियों से क्षमा चाहता हूँ। काफी समय से व्यस्तता के कारण लिख नहीं पा रहा हूँ।

शीघ्र ही पुनः आपके सामने आने का प्रयत्न करूंगा.